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________________ ।।९ ।। सनत्कुमार। | तथाहि-प्रसन्नीकर्तुमिव तां कश्चित्तत्पादसोदरम् । आरोपयन्नृपो मूर्ध्नि लीलातामरसं रसो ॥ १५॥ || सान्वय चरित्रं अन्वयः-तथाहि-कश्चित् रसी नृपः तां प्रसन्नीकर्तुं इव, तत्पाद सोदरं लीला तामरसं मूनि आरोपयत् ॥ १५ ॥ भाषान्तर | अर्थः-ते आवी रीते-कोइक रसीओ राजा तेणीने जाणे खुशी करवामाटे होय नही : तेम तेणीना चरणोसरखा क्रीडामाटे. ना लालकमलने ( पोताना) मस्तकपर धारण करवा लाग्यो. ॥ १५ ॥ अस्य धानि निधास्ये त्वामित्यस्यै कथयन्निव । कश्चित्करेण निःसोमं सीमन्तमणिमस्पृशत् ॥ १६ ॥ ___ अन्वय:-अस्य धाम्नि त्वां निधास्ये, इति अस्यै कथयन इव, कश्चित् निःसीम सीमंतमणि अस्पृशत् ॥ १६ ॥ । अर्थः-आनी जगोए तने स्थापन करीश, एम जाणे तेणीने कहेतो होय नही ! तेम कोइक कुमार (पोताना ) अनुपम मुकुटने | स्पर्श करतो हतो. ॥१६॥ | कङ्कणे पाणिपुष्पाणि कोऽपि न्यधित लोलया। ग्रहान्नवापि तां लब्धं तज्जुषः पूजयन्निव ॥ १७ ॥ ___ अन्वयः-कः अपि लीलया कंकणे पाणिपुष्पाणि न्यधित, तां लब्धं तज्जुषः नव अपि ग्रहान् पूजयन् इव. ॥ १७ ॥ सा अर्थः-कोइक कुमार तो क्रोडाथी ( पोताना ) कंकणपर हाथांना पुष्पो मुकतो हतो, ते जाणे के तेणीने मेळववामाटे तेमां | रहेला नवे ग्रहोने पूजतो होय नही ! एम देखातो हतो. ॥ १७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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