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________________ सान्वय भाषान्तर ।। ९१ ॥ सनत्कुमार। | समाकृष्ट इवोत्कृष्टः पुण्यैः पुंसां स्थिरायुषाम् । स पुरीमण्डनो जज्ञे स्वःखण्ड इव मण्डपः ॥ १॥ | चरित्रं ___अन्वयः-स्थिर आयुषां पुंसां पुण्यैः समाकृष्टः इव, उत्कृष्टः सः मंडपः स्वः खंडः इस पुरी मंडनः जज्ञे. ॥१॥ अर्थः-स्थिर आयुवाळा पुरुषोना पुण्योवडे जाणे खेंचाइ आवेलो होय नही! एवो ते उमदो मंडप स्वर्गना प्रदेशनीपेठे (ते ) नगरीने शोभावनारो थयो. ॥१॥ ध्वनिस्तूर्यस्य पुस्फूर्ज दूरमूर्जस्खलोदयः । मण्डपान्तःसमुद्घान्तस्मरार्णवरवच्छविः ॥ २॥ __ अन्वयः-ऊर्जस्वल उदयः, समुद्भात स्मर अर्णव रव च्छविः तूर्यस्य ध्वनिः मंडपांतः दूरं पुस्फूर्ज. ॥ २॥ अर्थः-अति उछळतो तथा कामरूपी महासागरनी गर्जना सरखी भ्रांति करावनारो, बाजित्रोनो नाद ते मंडपनी अंदर दूरसुधी | विस्तार पामवा लाग्यो. ॥ २॥ तं मण्डपमखण्डश्रीमालमालोकितुं तदा । पूर्वशैलशिरोभूषा पूषाभूत्कुतुकादिव ॥३॥ ___अन्वयः-तदा अखंड श्री माल तं मंडपं आलोकितुं कुतुकात् इव पूर्व शैल शिरः भूषा पूषा अभूत. ॥ ३ ॥ अर्थः-ते वखते अविच्छिन्न शोभानी श्रेणिवाला ते मंडपने जोवाना कुतूहलथी जाणे होय नहीं ! तेम पूर्वाचलना शिखरने शोभावनारो (सूर्योदय) प्रभात थयो. ॥ ३ ॥ ॐRRRRRAHASAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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