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________________ सनामार। कासुपूज्य चरित्रं __ अर्थः-ते(त्या) जइ वे पहोर रात्रि गयाबाद पाछी आवीने (बीजी) सघळी सखीओ निद्रावश होते छते राजकुमारीने कहे-15 सान्वय वा लागी के, ॥ १८ ॥ भाषान्तर भूपप्रहितसत्कारधारिनारीशतान्विता। न्यभालयं भुजभृतः समस्तानपि तानहम् ॥ १९ ॥ अन्वयः-भूप प्रहित सत्कार धारि नारी शत अन्विता अहं समस्तान् अपि भुजभृतः न्यभालयं ।। १९ ॥ ॥६६॥ अर्थः--राजाए मोकलेला (तांबूल आदिक ) सत्कारना पदार्थोने उपाडनारी एकसो स्त्रीओनी साथे जइने में ते सर्वे राजकुमारोनी परीक्षा करी के. ॥ १९ ॥ कन्दर्पहस्तशस्त्रीषु स्त्रीषु तासु गतास्वमी । विविधां विदधुर्वीरा विकृतिं कृतिताकृते ॥ २० ॥ ____ अन्वयः-कंदर्प हस्त शस्त्रीषु तासु स्त्रीषु गतासु अमी वीराः कृतिताकृते विविधां विकृति विदधुः. ॥ २० ॥ अर्थः कामदेवनी कटारीसरखी एवी ते स्वीओ त्यां गये छते ते शरचीरो कामचेष्टामाटे नाना प्रकारना विकारोने धारण करवा लाग्या. कलाकलापरुचिरः सुरोचिलॊचनप्रियः। कश्चिदात्मनि भूपेन्दुः पितामकलयत् ॥ २१ ॥ ___ अन्वयः-कला कलाप रुचिरः, सुरोचिः, लोचन प्रियः कश्चित् भूपेंदुः आत्मनि पिड्गतां अकलंकयत्. ॥ २१ ॥ अर्थ:-कलाओना समूहथी मनोहर, उत्तम कांतिवाळो, तथा आंखोने आनंद आपनारो, एवो कोइक राजा पोतामां लंपटपणानुं कलंक धारण करतो हतो. ॥२१॥ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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