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________________ सनत्कुमार सान्वय ॐ चरित्रं भाषान्तर R55 ॥५४॥ जातरूपमयं बिभ्रजातरूपमयं वपुः। दृष्टश्च कामः कीरेण गतश्चोत्पत्य तत्पुरः ॥८॥ ____ अन्वयः-ततः मरकत श्मश्रु भ्र कुंतल कनीनिकः, बाल प्रवाल निष्पन्न पद पाणि रद च्छदः, ।। ७७॥ पद्मराग दल श्रेणि पिनद्ध नख पद्धतिः, जीवद्भिः इव अंगैः कांचित् कांचित् क्रियां कल्पयन्, ॥ ७८ ॥ हसन इच अल्प भिन्न ओष्ठ दृश्य मौक्तिक कंदरुक्, प्रसाद स्मितया दृशा पुरःसरान् पश्यन् इव, ॥ ७९ ।। जातरूपं जात रूपमयं वपुः बिभ्रत् अयं कामः कीरेण दृष्टः, च उत्पत्य तत्पुरः गतः ।। ८० ॥ चतुर्भिः कलापकं ।। अर्थः-पछी (श्याम रंगना) मरकतमणिसरखां डाढीमूछ, भृकुटी, वाळ, तथा आंखोनी कीकीवाला, नवां कुपलीयांनी बनेली पग, हाथ तथा दांतोनी कांतिवाला, ।। ७७ ।। माणिक्यपत्रनी श्रेणिसरखी जडेली नखमालावाळा, जाणे जीवतां होय नही! एवा | उपांगोवडे कंईक कंइक क्रिया करता, ।। ७८ ।। जाणे हसता होय नहिं ! एम स्वल्प खुल्ला ययेला होठमांथी देखाती मोतीना कंदसरखी (दांतोनी ) कांतिवाळो, कृपावडे हसती दृष्टिथी आगळ उभेलाओने जाणे जोता एवा, ॥ ७९ ॥ मनोहर रूपवाळा सु वर्णमय शरीरने धारण करता, एवा आ कामदेवने ते शुके जोया, अने तेथी ते उडीने तेनी पासे गयो. ।। ८० ।। च. क. ॥ 8| ततः कौतूहलाद् दृश्यमानः क्ष्मानाथकन्यया । काममूर्ति प्रति प्रोचे वाचमित्युत्सुकः शुकः ॥ ८१ ॥ अन्वयः-ततः क्ष्मा नाथ कन्यया कौतूहलात् दृश्यमानः उत्सुकः शुकः काम मूर्तिप्रति इति वाचं पोचे. ।। ८१ ॥ अर्थः-पछी ते राजपुत्री जेने आश्चर्यथी जोइ रही छे, एवो (ते) उत्सुक थयेलो शुक (ते ) कामदेवनी मूर्तिपते आवीरीतर्नु 45547 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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