SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सनत्कुमार सान्वय चरित्रं भाषान्तर ॥३५॥ । अर्थः-सर्व खेचरोने मारी नाखवानी बुद्धिवाळा, तथा भयंकर आंखोवाला एवा ते दुष्ठे आकरा तपोवडे राक्षसी विद्यार्नु सा-13 धन करेलु छे. ॥१३॥ तत्ततः संकटं शड्रमानाः क्वापि न निर्ववुः । नवोत्तरशतद्रसङिनः खेचरेश्वराः ॥१४॥ अन्वयः तत् ततः संकटं शंकमानाः नव उत्तर शत द्रंग संगिनः खेचरेश्वराः क अपिन निर्ववुः ॥ १४ ॥ अर्थः-तेथी तेनाथी संकट पामवानी शंका करता, एवा एकसो नव नगरोना खेचर राजाओ क्यांय पण निरांत पाम्या नही. अद्य तद्भयचिन्तातिगतनिद्रस्य मे निशि । पुरोऽभूत्कामिनी काचिदियत्ता रूपसंपदाम् ॥ १५॥ ___ अन्वयः-तद्भय चिंता आर्त गत निद्रस्य मे पुरः अद्य निशि रूप संपदा इयत्ता काचित् कामीनी अभूत् ॥ १५ ॥ अर्थः-ते भयनी चिंताना दुःखथी गयेली छे निद्रा जेनी, एवो जे हुं, तेनी आगळ आजे रात्रिए रूप अने समृद्धिनी सीमासरखी कोइक स्त्री आवीने उभी, ॥ १५ ॥ मकरध्वजराजस्य राजधानीव जङ्गमा । दर्शयन्ती दृशं भावमयीमित्याह मामियम् ॥ १६॥ __ अन्वयः-गकर ध्वज राजस्य जंगमा राजधानी इव इयं भावमयीं दृशं दर्शयती मां इति आह. ।। १६ ॥ अर्थः-कामदेवनी जंगम राजधानी सरखी, एवी ते स्त्री (पोतानी) स्नेहभाववळी दृष्टि देखाडती थकी मने एम कहेवा लागी के, जानीहि मां महेन्द्रस्य महिषर्षी मोहदयते । मनो बद्धानुरागं तु सुभग त्वदगुणेषु मे ॥ १७॥ PACANCARRORICALCORRENA For Private Personal Use Only Jan Education Interfon www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy