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________________ सान्वय चरित्रं भाषान्तर सनत्कुमार | नृपो रिपुद्विपक्रूरकेशरी शृरकेशरी । त्वां प्रत्युपैति काम्पील्यपुरायतनदेवता ॥ ५० ॥ युग्मम् ॥ ___अन्वयः-(हे) स्वामिन् ! जगत् जय आरंभ जंभमाण प्रयाणकः, भूरि भू रमण कछेद मेदखि प्रसरत् मदः ॥ ४९ ॥ रिपु द्विप क्रूर केशरी, कांपील्यपुर आयतन देवता शूरकेशरी नृपः त्वांप्रति उपैतिः ॥ ५० ॥ युग्मं ॥ अर्थः-हे स्वामी! जगतने जीतवाना प्रारंभमाटे प्रसरतुं छे प्रयाण जेनु, तथा घणा राजाओनो विनाश करवाथी अति मदोन्मत्त थयेलो, ।। ४९ ॥ शत्रुरूपी हाथीओने (विदारवामां) प्रचंड केसरीसिंहसरखो, अने कांपील्यपुररूपी मंदिरनो देव, एवो शूरकेशरी नामनो राजा आपनापर चडी आवे छे. ॥ ५० ॥ युग्मं ।।। इति वाक्श्रुतिसक्रोधः स्कन्धावाराय दुर्धरः। रथसिन्धुरगन्धर्वभटाध्यक्षान्नृपोऽदिशत् ॥ ५१ ॥ ___अन्वयः-इति वाक् श्रुति सक्रोधः दुर्धरः नृपः रथ सिंधुर गंधर्व भट अध्यक्षान् स्कंधावाराय आदिशत्. ।। ५१ ।। अर्थः-एवीरीतनुं वचन सांभळवाथी क्रोधातुर थयेला, तथा एकदम आवेशमा आवेला ते सिंहराजाए रथ, हाथी, घोडा तथा सुभटोना सेनापतिओने (सैन्य तैयार करी) छावणी नाखवामाटे हुकम कर्यो. ॥५१॥ प्रयाणकम्बुनादेषु काममम्बरचुम्बिषु । सज्जमानासु सेनासु भटेषूत्कटकेषु च ॥ ५२ ॥ तां मत्वा जयिनी यात्रामेत्य तत्राधिकोद्यमः । कुमारो मस्तकन्यस्तहस्तः क्षमापं व्यजिज्ञपत् ।५३।युग्मम्। अन्वयः-प्रयाण कंबु नादेषु कामं अंचर चुंबिपु, सेनासु सजमानामु, च भटेषु उत्कटेषु, ।। ५२ ।।ता यात्रा जयिनी मत्वा, 155555555 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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