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________________ सान्वय भाषान्तर ॥१४॥ सनत्कुमार। | टणीए (आवीने) तेने कयु के, ॥ ८६ ।। चरित्रं इहास्ति पुरवास्तव्यः स्तोतव्यगुणभूषणः । तारापीडधराधीशोपाध्यायस्तारकाभिधः ॥ ८७॥ अन्वय:-इह पुरवास्तव्यः स्तोतव्य गुण भूषणः, तारकाभिधः तारापीड धरा अधीश उपाध्यायः अस्ति. ॥ १७ ॥ ॥१४५॥ अर्थः-आ नगरनो रहेवासी, तथा प्रशंसापात्र गुणोना अलंकारवाळो, तारकनामनो तारापीडराजानो उपाध्याय छे. ॥ ८७ ॥ पूर्वपत्न्यां प्रमीतायां कुलश्रीशीलशालिना। एतेनोद्वाहिता रूपमहिता रोहिताह्वया ॥८॥ अन्वयः-पूर्वपत्न्यां प्रमीतायां कुल श्री शील शालिना एतेन रूप महिता रोहिताहया उद्वाहिता. ।। ८८ ॥ अर्थः-प्रथमनी पत्नी गुजरीजवाथी, कुल, लक्ष्मी तथा शीलथी शोभता एवा ते उपाध्याये मनोहर रूपवाळी रोहितानामनी स्त्रीने परणेली छे. ।। ८८ ।। जराजर्जरगात्रोऽहमियं तु नवयौवना । चलान्यक्षाणि चेत्येष दत्ते नास्या बहिर्गतिम् ॥ ८९ ॥ ___ अन्वयः-अहं जरा जर्जर गात्रः, इयं तु नव यौवना, च चलानि अक्षाणि, इति एष अस्याः बहिः गति न दत्ते. ।। ८९ ॥ अर्थ:--हुं तो वृद्धपणाथी शिथिल शरीरवाळो छु, अने आ रोहिता तो खीलतां यौवनवाळी छे, वळी इंद्रियो चपल होय छे, 8| एम विचारी ते उपाध्याय तेणीने (घरनी) बहार जवा देतो नथी. ॥ ८९ ॥ -RAKHRESS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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