SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सान्वय सनत्कुमार चरित्रं भाषान्तर ॥१३४॥ वारंवारं आकाश गिरं श्रुत्वा कृत्यविद् जनः मुदा नागं पुरस्कृत्य मुनि वंदितुं अगात्. ।। ५० ॥ युग्मं ॥ अर्थः--अहो ! (आ) महान् मुनीश्वरना स्पर्शना महिमाथी अति सुगंधी थयेलो आ वायु आ नागना विषना दोषनो नाश क रनारो थयो छ, ॥ ४९ ॥ एम वारंवार थती आकाशवाणीने सांभळीने कृतज्ञ लोको हर्षथी (ते) नागने आगळ करीने मुनिने वांदवा गया. ।। ५० ।। युग्मं ।।। सुरासुरनरस्तूयमानातिशयवैभवम् । मुनिं नत्वात्तधमों मे भ्राताभ्येति महोत्सवैः ॥ ५१ ॥ अन्वयः-मुर असुर नर स्तूयमान अतिशय वैभवं मुनि नत्वा अत्त धर्मः मे भ्राता महोत्सवैः अभ्येति. ॥ ११ ॥ अर्थः-देवो, दानवो अने मनुष्योबडे स्तुति करातो छे, अतिशयोनो वैभव जेनो, एवा (ते) मुनिने वांदीने, तथा जैनधर्म स्वीकारीने मारो (ते) भाइ महोत्सवपूर्वक आवे छे, ॥ ५१ ॥ रयान्मया नयाधीश गत्वोकः प्रति संप्रति । वस्तु विस्तार्यमेवास्ति तोरणस्वस्तिकादिकम् ॥ ५२ ॥ __ अन्वयः-(हे) नयाधीश ! संप्रति मया स्यात् ओकःपति गत्वा तोरण स्वस्तिक आदिकं वस्तु विस्तार्य एव अस्ति. ॥ ५२॥ अर्थः-हे न्यायी राजकुमार : हवे मारे तुरत घेर जइने तोरण तथा स्वस्तिक आदिक पदार्थों त्यां गोठवबाना छे. ॥५॥ एवमुक्त्वा गते तस्मिन्नानन्दं सुन्दराननः । भृपभूर्भूतसद्भावः प्रागल्भी गर्भमभ्यधात् ॥ ५३ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy