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________________ सान्वय भाषान्तर (॥१२॥ सानत्कुमरद अन्वयः-अथ अयं गुणैः स्तुतः कः अपि ध्रुव धरा अधीश सुतः, अहद्भक्तानां वार्तानां अर्हः, इति सः अवदत् ॥ १॥ अर्थः-पछी आ गुणोबड़े प्रशंसनीय कोइक पण खरेखर राजानो पुत्र संभवे छे, माटे जिनभक्तोनी वार्ता (सांभळवाने) योग्य चरित्रं छे, एम विचारी तेणे कयु के, ॥१॥ ॥१२०॥ भवतः कुलमाकारादेव देव विभाव्यते॥ दक्षत्वं लक्ष्यते साक्षात्प्रतिप्रश्नतः पुनः॥२॥ ___ अन्वयः-(हे) देव! भवतः आकारात् एव कुलं विभाव्यते, पुनः प्रवृत्ति प्रश्नतः साक्षात् दक्षत्वं लक्ष्यते ॥ २ ॥ अर्थः-(हे ) देव ! आपनु आकृतिथीज (उत्तम) कुल जणाइ आवे छे, तेमज आ वृत्तांतना प्रश्नथी साक्षात् डहापण पण देखाइ आवे छे. ॥२॥ तद्वार्ताकथनस्थानमसमानमसि प्रभो। सकर्णाकर्णय त्वं मे विचारकवचं वचः ॥३॥ ___ अन्वयः-तत् (हे) सकर्ण : असमानं वार्ता कथन स्थान असि, स्वं मे विचार कवचं बचः आकर्णय ?॥३॥ अर्थ:-माटे (हे) चतुर पुरुष! तमो आ वृत्तांत संभळाचवामाटे (उत्तम) स्थान समान छो, (अने तेथी) तमो मारु विचाररूपी बखतरवाळ (ध्यान आपवा लायक) वचन मांभळो ? ॥३॥ धर्मेऽहं विहितानन्द आनन्द इति नामतः। नन्दिग्रामेऽत्र वास्तव्यो वस्तुव्यवहृतिस्थितिः॥४॥ अन्धयः-आनंदः इति नामतः अहं धर्मे विहित आनंदः, अत्र नंदिग्रामे वास्तव्यः, वस्तु व्यवहृति स्थितिः ॥ ४ ॥ ॐॐॐॐॐ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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