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________________ हमारी तीर्थयात्राके संस्मरण (लेखक : परमानन्द जैन शास्त्री ) . श्रवणबेलगोलसे चलकर हम लोग हासन पाए। विध दान देने में दक्ष और विनयादि सद्गुणोंसे अलंकृत, हामन मैसूर स्टेटका एक जिला है। यहाँ वनवासीके प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवकी 'शष्या थी, जो मूलसंघ देशीयकदम्बवंशी राजाओंने चौथी पांचवीं शताब्दीसे ११ वीं गण पुस्तकगच्छके विद्वान् प्राचार्य मेघचन्द्र विद्यदेवके शताब्दी तक राज्य किया है। यहांका अधिकांश भाग जैन शिष्य थे, जिनका स्वर्गवास शक सं०.१०३७ (वि० संवत् राजाओंके हाथ में रहा है। इस जिले में पूर्वकालमें जैनियोंका ११७२) में मगशिर सुदि १४ बृहस्पतिवारके दिन सद्बड़ा भारी अभ्युदय रहा है। वह इस जिले में उपलब्ध ध्यानसहित हा था। उनके शिष्य प्रभाचंद्र सिद्धांतदेवने मूर्तियों, शिलालेखों ग्रन्थभंडारों और दानपत्रों आदिमे महान महादण्डनायक गंगराज द्वारा उनकी निषद्या बनवाई थी। सहजही ज्ञात हो जाता है। हासनमें ठहरने का कोई विचार जिनकी मृत्य शक संवत् १०६८ (वि० संवत् १२०३) नहीं था किन्तु रोड टैक्सको जमा करनेके लिए रुकना में आश्विन सदि १० वृहस्पतिवारके दिन हुई थी । पड़ा। यहां केवल लारीका हा टैक्स नहीं लिया जाता किन्तु शान्तलदेवीके पिताका नाम 'मारसिङ्गय्य और माताका सवारियोंसे भी फी रुपया सवारी टैक्स लिया जता है। नाम माचिकम्वे था। इनकी मृत्यु शान्तलदेवीके बाद हुई इसमें कुछ अधिक विलम्ब होते देख म्युनिस्पल कमेटीके थी। शान्तलदेवीने शक सं० १.१० (वि० सं० ११८५) एक बागमें हम लोगांने घाज्ञा लेकर भोजनादिका कार्य शुरु में चैतसदि के दिन शिवगङ्ग' नामक स्थानमें शरीरका किया । मैं और मुख्तार साहब नहा-धोकर शहरके मंदिर में दर्शन करनेके लिए गए । शहरमें हमें पासही में दो जिन राजा विष्णुवर्द्धन एक वीर एवं पराक्रमी शासक था। मन्दिर मिले। जिनमें अन्य तीर्थंकर प्रतिमाओंके साथ इसने मांडलिक राजाभों पर विजय प्राप्त की थी और मध्यमें भगवान पार्श्वनाथकी मूर्ति विराजमान थो । दर्शन अपने राज्यका खूब विस्तार किया था । पहजे इस राजा. करके चित्तमें बड़ी प्रसन्नता हुई । परन्तु यहाँ और कितने की आस्था जैनधर्मपर थी किन्तु सन् १९१७ में रामानुजके मन्दिर हैं, यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका और न वहाँ के प्रभावसे वैष्णवधर्म स्वीकार कर लिया था, और उसीकी जैनियोंका ही कोई परिचय प्राप्त हो सका । जल्दीमें यह स्मृतिस्वरूप बेलूर में विष्णुवर्द्धनने केशवका विशाल मंदिर सब कार्य होना संभव भी नहीं है । मन्दिस्जीसे चलकर भी बनवाया था। यह मन्दिर देखने योग्य है। कहा जाता कुछ शाक-सब्जी खरीदी और भोजन करनेके बाद हम है कि जैनियोंके ध्वंस किए गए मन्दिरोंके पत्थरोंका लोग । बजे के करीब हासनसे २४ मील चलकर बेलूर उपयोग इसके बनाने में किया गया है। उस समय हलेविडपाए। यह वही नगर है,जिसे दक्षिण काशी भी कहा जाता में जैनियोंके ७२० जिनमन्दिर थे। जैनधर्मका परित्याग था; क्योंकि यहां होयसल राजा विष्णुवर्द्धनने जैनधर्मसे करनेके बाद विष्णुवर्द्धनने उन जैनमन्दिरोंको गिरवा कर वैष्णवधर्मी होकर 'चेन्न केशव' का विशाल एवं सुन्दर नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया था, इतना ही नहीं; किन्तु उस मन्दिर बनवाया था । बेलूरसे ११ मोल पूर्व चलकर समय इसने अनेक प्रसिद्ध २ जैनियोंको भी मरवा दिया हम लोग 'हलेबीड' श्राये। इसे. दोर या द्वारसमुद्र भी था और उन्हें अनेक प्रकारके कष्ट भी दिये थे, जैनियोंके कहा जाता है। साथ उस समय भारी अन्याय और अत्याचार किये गए थे जिनका उल्लेख कर मैं समाजको शोकाकुल नहीं बनाना 'हलेबीड' पूर्व समयमें जैनधर्मका केन्द्रस्थल रहा है: किमी समय यह नगर जन धनसे समृद्ध रहा है और इसे चाहता होयसल वंशके राजा विष्णुवर्द्धनकी राजधानी बननेका भी देखें, जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख नं. ४७ (१२७)। सौभाग्य प्राप्त हुश्रा है। राजा विष्णुवर्द्धनकी पट्टरानी x शिलालेख नं०५०(१४०)। जैनधर्म-परायणा, धर्मनिष्ठा, व्रत-शीला, मुनिभक्ता, चतु- +शिलालेख मं०५३ (१४३)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527323
Book TitleAnekant 1954 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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