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अनेकान्त
[किरण।
साहित्य नष्ट हो गया है और कितना ही साहित्य जैन- वह उपलब्ध हो जाय । कविने इस ग्रन्थको भाषाढ़ शुक्ला शास्त्रभण्डारों में अभी दबा पड़ा है जिसके प्रकाशमें लाने- त्रयोदशीको प्रारम्भ करके चैत्र कृष्णा त्रयोदशीको ।। की खास आवश्यकता है। यही कारण है कि अपभ्रंश महीने में समाप्त किया है। इस ग्रन्थकी एक प्रति जयपुर भाषाका अभी तक कोई प्रामाणिक इतिहास तय्यार नहीं में मैंने सं० १५५६ की लिखी हुई सन् ४४ के मई महीने किया जा सका । प्रस्तु, इस लेख में निम्न ग्रन्थोंका परि में देखी थी, और डाक्टर हीरालालजी एम. ए. डी. चय दिया जाता है जो विद्वानोंकी दृष्टिसे अभी तक प्रोझल लिटको इस ग्रन्थकी एक प्रति सं० १११. में प्राप्त हुई थे। उनके नाम इस प्रकार हैं-णेमिणाहचरिउ लचमण-,
थी। सम्भव है अन्य ग्रंथभण्डारोंमें इससे भी प्राचीन देव सम्भवणाहचरिउ और वरांगचरिउ कवि तेजपाल. प्रतियाँ उपलब्ध हो जायं। सुकमालचरिउके कर्ता मुनि पूर्णभद्र, सिरिपालचरिउ और २. सम्भवणाहचरिउ-इस ग्रंथके कर्ता कवि तेजजिनरत्तिकथाके कर्ता कवि नरसेन, णेमिणाहचरिड और
पाल हैं, जो काष्ठासंघान्तर्गत माथुरान्वयके भट्टारक चन्दप्पहचरिउके कर्ता कवि दामोदर, बाराहवासारके
सहस्त्रकीर्ति, गुणकीर्ति. यशःकीर्ति मलयकीर्ति और गुणकर्ता कवि वीर।
भद्रकी परम्पराके विद्वान थे। यह भहारक देहली, ग्वालि.
यर, सोनीपत और हिसार आदि स्थानों में रहे हैं। पर यह १. णेमिणाहचरिउ-इस ग्रन्थ के कर्ता कवि लक्ष्म
यह पट्ट कहाँ था इस विषयमें अभी निश्चयतः कुछ नहीं णदेव हैं। इनका वंश पुरवार था और पिताका नाम रयण
कहा जा सकता है, पर उक्त पट्टके स्थान वही हैं जिनका या रत्नदेव था । इनकी जन्मभूमि मालवदेशके अन्तर्गत नामोल्लेख ऊपर किया गया है। कवि तेजपालने अपने गोनन्द नामके नगरमें थी, जहाँ पर अनेक उत्तुंग जिन- जीवन और माता-पितादिक तथा वंश एवं जाति आदिका मदिर और मे जिनालय भी था । वहीं पर कविने कोई लेन । पहले किसी व्याकरण ग्रन्थका निर्माण किया था जो बुध- हैं जिनमें जैनियोंके तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथजीका जीवन जनोंके कण्ठका श्राभरण रूप था, परन्तु वह कौनसा परिचय दिया हाना है। इस ग्रन्थकी रचना भादानक ग्याकरण ग्रन्थ है, उसका कोई उल्लेख देखनेमें नहीं पाया देशके श्रीनगरमें दाऊदशाहके राज्यकालमें की गई है। और न अभी तक उसके अस्तित्वका पता हो चला है।
श्रीप्रभनगरके अग्रवाल वंशीय मित्तलगोत्रीय साहू गोनन्द नगर कहाँ बसा था. इसके अस्तित्वका ठीक पता
लखमदेवके चतुर्थ पुत्र थोल्हा, जिनकी माताका नाम नहीं चलता; परन्तु इतना जरूर मालूम होता है कि यह
महादेवी और प्रथम धर्मपत्नीका नाम 'कोल्हाही; और नगरी उज्जैन और भेलमाके मध्यवर्ती किसी स्थान पर
दूसरी पत्नीका नाम प्रासारही था, जिससे त्रिभुवनपाल रही होगी। कवि लक्ष्मण उसी गोनन्द नगरमें रहते थे,
और रणमल नामके दो पुत्र उत्पब हुए थे। थीमहाके पाँच वे विषयोंसे विरक्त और पुरवार वंशके तिलक थे, तथा भाई और भी थे, जिनके नाम शिडसी, होलु, दिवसी, रात दिन जिनवाणीके रसका पान किया करते थे । कविके
मल्लिदास और कुन्थदास थे । ये सभी भाई और उनकी भाई अम्बदेव भी कवि थे, उन्होंने भी किसी ग्रन्थकी संतान जैनकि उपासक थे। रचना की थी, उस ग्रन्थका नाम, पारमाण भार रचना- लखमदेवके पितामह साह हलुने जिन विम्ब प्रतिष्ठा काल आदि क्या था यह सब अन्वेषणीय है।
भी कराई थी. उन्हींके वंशज थीवहाके अनुरोधसे कवि ___ कविवर लक्ष्मणकी एक मात्र कृति 'णेमिणाहचरिउ' तेजपालने उक्त सम्भवनाथ चरितकी रचना की है । ग्रन्थमें ही इस समय उपलब्ध है जिसमें जैनियोंके बाईसवें तीर्थ- रचनाकालका कोई समुल्लेख नहीं है, भट्टारकोंकी नामावली कर श्रीकृष्णके चचेरे भाई भगवान नेमिनाथका जीवन- जो ऊपर दी गई है उनमें सबसे अन्तिम नाम भट्टारक परिचय दिया हुआ है। इस ग्रन्थमें ७ परिच्छेद या गुणभद्रका है, जो भट्टारक मलयकीर्तिके शिष्य थे, और संधियाँ हैं, जिसके श्लोकोंकी आनुमानिक संख्या १३०५ सं० १९०० के बाद किसी समय पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए थे, है। ग्रन्थकी अन्तिम प्रशस्तिमें रचनाकाल दिया हुआ उनका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दीका अन्तिम चरण नहीं है। सम्भव है ग्रन्थकी किसी अन्य प्राचीन प्रतिमें और सोलहवीं शताब्दीका प्रारम्भिक काल जान पड़ता है।
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