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मथुराके जैनस्तुपादिकी यात्राके महत्वपूर्ण उल्लेख
(श्री अगरचन्द नाहटा)
___ मथुराकी खुदाईसे जो प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है वह सूची में शौरसेन देशको राजधानीके रूप में मथुराका उल्लेख जैन इतिहास और मूर्तिपूजा आदिको प्राचीनताकी दृषिसे पाया जाता है तत्परवर्ती साहित्य 'वसुदेवहिण्डी' श्वीx बहुत ही महत्वपूर्ण है, मथुराका देवनिर्मित स्तूप तो जैन शताब्दीका प्राचीनतम प्राकृत कथा ग्रन्थ है, इसके श्यामासाहित्यमें बहुत ही प्रसिद्ध रहा है, प्रस्तुत लेख में हम विजय लंभकमें कंस अपने श्वसुरसे मधुराका राज्य मांगता प्राचीन जैन साहित्यसे ई० १७वीं शताब्दी तकके ऐसे है, और अपने पिता उग्रसेनको कैद कर स्वय मथुराका उल्लेखोंको संगृहीतकर प्रकाशित कर रहे हैं, जो मथुरासे शासक बन जाता है । उद्धरण है-इस ग्रंथके प्रारंभमें जंबू जैनोंके दीघ कालीन संबंध पर नया प्रकाश डालेंगे, उनसे स्वामोका चरित्र दिया गया है। उसमें मथुराकी कुबेरदत्ता पता चलेगा कि कब-कब किस प्रकार इन स्तूपादि- वेश्याका १८ नातों वाला विचित्र कथानक है फिर की यात्राके लिये जैन यात्री मथुरा पहुँचे। इन उल्लेखोंसे आगमोंकी चूर्णियां और भाष्योंमें भी मथुराके सम्बन्धमें मथुराके जैन स्तूपों व तीर्थ के रूप में कब तक प्रसिद्धि रहो, महत्वपूर्ण उल्लेख मिलते है। डा. जगदीशचन्द्र जैनने इसका हम भली-भांति परिचय पा जाते हैं सर्व-प्रथम जैन इन उल्लेखों का संक्षिप्त अपने 'जैन ग्रन्थोंमें भौगोलिक साहित्यमें मथुरा सम्बन्धी उल्लेखोंकी चर्चा की जाती है। सामग्री और भारतवर्ष में जैनधर्मका प्रचार' नामक लेखमें जैन-साहित्यमें मथुरा
दिया गया है, जिसे यहां उद्धृत कर देना आवश्यक समश्वे. जैनागमों में एकदश अंग सत्र सबसे प्राचीन ग्रन्थ
मता हूँ माने जाते हैं। भगवान महावीरकी वाणीका प्रामाणिक
__ 'मथुराके पास-पासका प्रदेश शूरसेन' कहा जाता है, संह इन ग्रंथों में मिलता है जहां तक मेरे अध्ययन,मथुराका
मथुरा अत्यन्त प्राचीन नगरी मानी जाती है। जहां जैनसबसे प्राचीन उक्लेख इन " अंग सूत्रोंमेंसे छ? ज्ञाता
श्रमणोंका बहुत प्रचार था। (उत्तराध्ययन चुणी)। सूत्र में जाता है, प्रसंग है द्रौपदीके स्वयंवर मंडपका
उत्तरापथमें मथुरा एक महत्व पूर्ण नगर था। जिसके स्वयंवर मंडपमें आनेके लिये अनेक देशके राजाओंको
अन्तर्गत १६ ग्रामोंमें लाग अपन घरोंमें और चौराहों पर द्रौपदीके पिता अपने दूतोंके द्वारा आमंत्रण पत्र भेजता है,
जिन मूर्तिकी स्थापना करते थे। अन्यथा घर गिर पड़ते इनमें एक दूत मथुराके 'घर नामक राजाके पास भी जाता
थे। (वृहद् कल्पभाष्य)। इं, इससे उस समय मथुराका शासक 'धर' नामक कोई मथुरा में एक देवनिर्मित स्तूप था। जिसके लिये जैनों राजा रहा था, ऐसा ज्ञात होता है। इसी द्रौपदी अध्ययनके और बौद्धोमें झगड़ा हुआ था। कहा जाता था कि इसमें श्रागे चलकर दक्षिण में पांडवोंने मथुरा मगरी बसाई. इनका जैनोंकी जीत हुई और स्तूप पर उनका अधिकार हो भी उल्लेख मिलता है, इसलिये बृहद्कल्पसूत्रमें उत्तर गया. (म्यवहार भाष्य) मथुरा और दक्षिण मथुरा, इन दो मथुराओं का नाम मथुरा आर्यमंगू व आर्यरक्षित आदि जैन श्रमणोंका मिलता है, वहांके उल्लेखानुसार शालिवाहनका दडनायक विहार स्थल था। यहां अनेक पाखंडी साधु रहते थे, अतदोनों मथुरा पर अधिकार करता है, परवतीं प्रबंधकोषमें एव मथुराको 'पाखडी गर्भ कहा गया है। (भावश्यक भी यह अनुश्रुति सी मिलती है।
चूर्णी, आचारांग-चूर्णी श्रावकचरित्र) अंगसूत्रोंके बाद उपांगसत्रोंका स्थान है। इनकी -
xयह ग्रन्थ ७वीं शताब्दीका है, विना किसी प्रामासंख्या १२ मानी गई है, जिनमें से पन्नवणा (प्रज्ञापनासूत्र) में साढ़े पच्चीस प्रार्य देशोंकी सूची दी गई है। इन
णिक अनुसंधान के अनुमानसे श्वीं शती लिख दिया गया
है। उसकी रचना ७वीं शताब्दीसे पूर्वकी नहीं है। लेखकका यह कथन अभी बहुत ही विवादापन्न
-प्रकाशक . -प्रकाशक १. इसके कारणके लिये देखिये विविध तीर्थकरूप ।
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