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________________ किरण ६ ] तद्देशीय साहित्य कनारी भाषामें प्रथम लक्षणशास्त्र 'कविराजमार्ग' लिखे जानेका श्र ेय भी सम्राट् अमोघवर्षके राज्यकालको है । किन्तु वह स्वयं रचयिता थे या केवल प्रेरक थे यह अब भी विवादग्रस्त है। प्रश्नोत्तरमालाका रचयिता भी विवादका विषय है क्योंकि इसके लिये श्री शंकराचार्य, विमल तथा अमोघवर्ष प्रथमके नाम लिये जाते हैं। डा० एफ० डबल्यू. थोमसने तिब्बती भाषाके इसके अनुवादकी प्रशस्तिके आधार पर लिखा है कि इस पुस्तिकाके तिब्बती २ भाषा अनुवादके समय अमोघवर्षं प्रथम इसका कर्त्ता माना जाता था । अतः बहुत सम्भव है कि वही इसका कर्त्ता रहा हो । दशवीं शतीके मध्य तक दक्षिण कर्नाटकके चालुक्यवंशीय सामन्तोंकी राजधानी गंगधारा भी साहित्यिक प्रवृत्तियोंका बढ़ा केन्द्र हो गई थी। यहीं पर सोमदेवसूरि ३ ने अपने 'यशस्तिलकचम्पू' तथा 'नीतिवाक्यामृत' का निर्माण किया था । यशस्तिल्लक यद्यपि धार्मिक पुस्तक है तथापि लेखक ने इसको सरस चम्पू बनाने में अद्भुत साहित्यिक सामर्थ्यका परिचय दिया है। द्वितीय पुस्तक राजनीतिकी है। कौटिल्य के अर्थशास्त्रकी अनुगामिनी होनेके कारण इसका स्वतन्त्र महत्त्व नहीं थांका जा सकता है तथापि यह साम्प्रदायिकतासे सर्वथा शून्य है तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र से भी ऊँची नैतिक दृष्टिसे लिखा गया है। राष्ट्रकूटकालमें जैनधर्म महाकवि पम्प इस राज्यकाल में कर्नाटक जैनधर्मका सुदृढ़ गढ़ था । तथा जैनाचार्यों को यह भली भांति स्मरण था कि उनके (1) इ० एण्टी ११०४ पृ० १६६ (२) ज० ब० प्रा० रो० ए० सो० १२ पृ० ६८० (३) यशस्तिलक चम्पू पृ० ४१६ Jain Education International [ २८७ परमगुरु तीर्थंकरने जनपद की भाषाओंमें धर्मोपदेश दिया था । परिणामस्वरूप १० वीं शती में हम कनारी लेखकोंकी भरमार पाते हैं । जिनमें जैनी ही अधिक थे । इनमें प्राचीनतम तथा प्रधानतम महाकवि पम्प थे इनका जन्म ६०२ ई० में हुआ था । मान्ध्रदेशके निवासी होकर भी कनारी भाषा आदि कवि हुए थे। इन्होंने अपनी कृति आदि पुराणको १४१ ई० में समाप्त किया था, यह जैन ग्रन्थ है । अपने मूल ग्रन्थ 'विक्रमाजु'न विजय' में इन्होंने अपने श्राश्रयदाता 'अरिकेशरी '४ द्वितीयको अर्जुन रूपले उपस्थित किया है । अतः यह ग्रन्थ ऐतिहासिक रचना है। इसी ग्रन्थसे हमें इन्द्र तृतीयके उत्तर भारत पर किये गये उन आक्रमणोंकी सूचना मिलती है जिनमें उसका सामन्त अरिकेशरी द्वितीय भी जाता था । इस कालके दूसरे ग्रन्थकार 'असंग' तथा 'जिनभद्र' थे जिनका उल्लेख है । पून कवि १० वीं शतीके तृतीय चरण में पूनने किया है यद्यपि इनकी एक भी कृति उपलब्ध नहीं हुए । यह संस्कृत तथा कनारी भाषामें कविता करनेमें इतने अधिक दक्ष थे कि इन्हें कृष्ण तृतीयने उभयकुल चक्रवर्तीकी उपाधि दी थी। इनकी प्रधान कृति 'शांतिपुराण'५ है । महाराज मारसिंह द्वितीयके सेनापति चामुण्डरायने 'चामु डराय पुराण' को दसवीं शतीके तीसरे६ चरण में लिखा था६ रन्न भी प्रसिद्ध कनारी कवि थे। इनका जम्म १४६ ई० में हुआ था। इनका अजितनाथ पुराण ७, ३३३ में समाप्त हुआ था जैनधर्म ग्रन्थोंका पुराण रूपमें रचा जाना बताता है कि राष्ट्रकूट युगमें जैनधर्मका प्रभाव तथा मान्यता दक्षिण में असीम थी । -(व अभिनन्दन ग्रंथसे ) (४) कर्नाटक भाषाभूषण, भूमिका० पृ० १३-४ ५) कर्नाटक भाषाभूषण भूमिका० पृ० १५ (६) एपी० इ० भा० १ पृ० १७५ (७) एपी० इ० भाग ६ पृ० ७२ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527323
Book TitleAnekant 1954 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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