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________________ वीतराग-स्तवन' के रचयिता अमर कवि (श्री अगरचन्द नाहटा) अनेकान्त वर्ष १२ किरण ३ के प्रथम पृष्ट पर अमर- कवि अमरचन्द्रका समकालीन ग्रन्थकारोंमें सबसे कवि-रचित 'वीतराग-स्तवनम्'प्रकाशित हुआ है। महावीर- पहला उल्लेख सं. ११३४ में रचित प्रभाचन्द्रसूरिके जी अतिशय क्षेत्रके शास्त्र-भंडारकी सं० १८२७ की लिखित प्रभावकचरित्र में पाया जाता है । इस ग्रन्थके जीवदेवसूरिप्रतिसे नकल करके इसे प्रकाशित किया गया है । सम्पाद- प्रबन्धके अन्तमें कहा गया है "जिनके वंशमें आज भी कीय नोटमें इसके रचयिवाके सम्बन्धमें लिखा है कि- अमर जैसे तेजस्वी प्रभावक हैं" श्लोक इस प्रकार है"इसके कर्ता अमरकवि, जिनके लिये पुष्पिकामें 'वेणी "अद्यापि तत्प्रभावेण तस्य वंशे कलानिधिः भवे प्रभावककृपाण' विशेषण लगाया गया है, कब हुए है और उनकी सूरिरमराभ स्वतेसा ॥२००॥'इस उल्लेखसे मुनि कल्यादूसरी रचनायें कौन-कौन हैं यह अभी अज्ञात है। ग्रन्थ णविजयजीने आत्मानन्द जैनसभा भावनगरसे प्रकाशित प्रति सं० १८२७ की लिखी हुई है अतः यह स्तवन इसके इस ग्रन्थकी गुजराती अनुवादके पर्यालोचनमें यह सूचित पूर्वकी रचना है इतना तो स्पष्ट ही है, परन्तु कितने किया है कि सं० १३३४ तक जबकि यह प्रभावकचरित्र पूर्वकी है यह अन्वेषणीय है।" बना, कवि अमरचन्द विद्यमान थे। इसीलिये 'अद्यापि' इस सम्पादकीय टिप्पणीको पढ़ते ही 'वेणीकृपाण' शब्द व्यवहृत हुमा है। इस उल्लेखसे इस कविकीविशेषण वाले श्वेताम्बर बायड़गच्छीय जिनदत्तसूरिके शिष्य प्रसिद्धि व महत्वका भली भांति पता लग जाता है। समकवि चक्रवर्ती अमरचन्दका स्मरण हो आया। यह स्त्रोत्र कालीन विद्वान उस वंशके महत्वको बतलानेके लिये उस भी सम्भव है किसी श्वेताम्बर जैनस्तोत्रसंग्रहमें प्रकाशित वंशके तेजस्वी नक्षत्रके रूपमें कवि अमरचन्द्रका नामोल्लेख हो चुका हो इस विचारसे 'जैनस्तोत्रसंदोह' प्रथम भागके करता है यह उनके लिये कम गौरवकी बात नहीं। अंतमें प्रकाशित जैनस्तोत्रोंकी सूची छपी है उसे देखने सं० १४०५ में रचित प्रबन्धकोश' अपरनाम 'चतुपर विदित हुया कि यह स्तोत्र भ्रातृचन्द्र ग्रन्थमाला विंशतिप्रबन्ध' में तो इस कविका परिचायक स्वतंत्र प्रबंध अहमदाबादसे प्रकाशित जिनेन्द्रनमस्कारादि संग्रह में प्रका- (१३) ही पाया जाता है । उस प्रबन्धके अनुसार वायड़शित होने के साथ-साथ प्रस्तुत जैनस्तोत्रसंदोह प्रथम भाग- गच्छके परकायप्रवेश विद्यासम्पन्न जीवदेवसूरि (जिनका में भी छपा है। इन दोनों ग्रन्थों में यह 'सर्वजिनस्तव' के प्रबन्ध भी इसी ग्रंथमें है) के सतांनीय जिनदत्तसूरिके नामसे अज्ञात रचयिता (निर्माणकार) के उल्लेखसह छपा बुद्धिमानोंमें चूड़ामणि आप सुशिष्य थे । कविराज अरिसिंहहै । परन्तु इस जैनस्तोत्रसंदोह ग्रन्थमें प्रकाशित स्तोत्रोंकी से इन्हें 'सिद्धसारस्वत' मंत्र मिला, जिसकी आराधना २१ अनुक्रमणिकाको देखने पर वहाँ रचयिताका नाम 'अमर- दिन तक आचाम्ल तपके साथ निद्राजय, आसनजय, कषायचन्द्रसूरि' लिखा हुआ मिला। इससे विदित होता है कि जय करते हुए एकाग्र चित्तसे की थी। स्वगच्छके महाइस ग्रन्थके पृ०२६ में जब इस स्तोत्रका मुद्रण हुश्रा तब भक्त विवेकके भंडार रूप कोष्टागारिक पद्मश्रावकके भवनइसके रचयिताका नाम ज्ञात न हो सका था, परन्तु इसके के एकान्त भागमें साधना करते हुए श्राप पर सरस्वतीदेवी सम्पादक चतु विजयजीको इस ग्रन्थकी अनुक्रमणिका प्रसन्न हुई और २१वें दिन प्रत्यक्ष प्रगट होकर अपने तैयार होनेके समय इसके रचयिताके नामका आधार मिल कमंडलुका जल पिलाते हुए इन्हें वरदान दिया कि 'तू गया । इसीलिये प्रस्तावनामें स्तोत्रकारोंका परिचय देते हुए सिद्ध कवि और राजमान्य होगा।' हुआ भी वैसा ही। अमरचन्द्रसूरिका परिचय भी दिया गया है। अनेकान्तके आपने काव्यकल्पलता (कविशिक्षा), छंदोरत्नावली, सम्पादक और पाठकोंकी जानकारीके लिये इस स्तोत्रके सूक्तावली, कलाकलाप एवं बालभारत नामक ग्रन्थोंकी रचयिता अमरचन्द्र कविका संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रकाशित रचना की । बालभारतके सर्ग ११ श्लोक ६ में प्रभात कर रहा हूँ। विशेष जाननेके लिये आपके जो तीन ग्रन्थ समयका वर्णन करते हुए आपने इस भावको दर्शाया है प्रकाशित हो चुके हैं उनकी प्रस्तावना देखना चाहिये। महादेवकी तपःसाधनासे कामदेव हतप्रभाव हो चुका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527318
Book TitleAnekant 1953 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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