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अपनी पुस्तक में यहांतक लिख दिया है, कि "जाट लोग एक ओर राजपूतों के साथ और दूसरी ओर अफगानोंके साथ मिलगये हैं । किन्तु यह छोटी छोटी जाट-जातिकी शाखा सम्प्रदाय पूर्वीय अंचल के राजपूत और पश्चिमीय अंचल - अफ़ग़ान १- और बलूची के नाम से अभिहित
हैं ।"
अनेकान्त
जाटों की वर्तमान सत्ता
कर्नल टॉडके शब्दों में जहां ज्ञातों-जाटोंकी राजनैतिक हानि हुई वहां कनिंघम के शब्दों में उनकी सामाजिक जनसंख्या की भी काफी हानि हुई है। फिर भी ज्ञात- जाट वंशकी सत्ता आज भी भारतमें आदरकी दृष्टिसे देखी जाती है । भरतपुर, पटियाला, नाभा, धौलपुर, मुरसान, झींद, फरीद कोट आदि कई राजस्थानोंमें जाटवंशीय राजा, महाराजा ही राज्य करते हैं । वे लोग अपने आपको जाट कहलाने में ही अपना गौरव समझते हैं। पंजाब और यू०पी० में जाटोंकी इज्जत राज पूतोंसे भी बढ़ी चढ़ी है। पंजाब केसरी महाराजा रणजीतसिंह इसी वंशका कोहेनूर था ।
[ पौष, वीर निवाण सं० २२६६
धमें महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध इतिहासकार श्री पी० सी० वैद्यने हिस्ट्री आव मीडीयावल हिन्दू इण्डिया में काफ़ी मीमांसा की है, और साबित किया है, कि जाट लोग हूणों की संतान नहीं, प्रत्युत हूणों को जीतनेवाले थे ।
जाट हूणों आदिकी संतान नहीं कई भ्रांत लेखकोंने जाटोंको हूणोंकी संतान सिथियनों की संतान बना दिया है। पर बात पुरातत्व सर्वथा अप्रमाणित है । इस संब
और
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"जाट गूजर और मराठा इन तीनों में ( · ) जाटोंका वर्णन सबसे पुराना है। महाभारतके कर्णपर्व में इनका वर्णन 'जंटिका' नामसे मिलता है । उनका दूसरा वर्णन हमको "अजय जर्टो हूणान् ” वाक्यमें मिलता है, जोकि पांचवीं सदीके चन्द्रके व्याकरणमें है, और यह प्रकट करता है कि, जाट हूणोंके संबन्धी ही नहीं किन्तु शत्रु थे। जाटोंने हूणोंका सामना किया और उनको परास्त किया, अतः वे पंजाब के निवासी ही होंगे और धावा करनेवाले तथा घुस पड़ने वाले नहीं । क्या उपर्युक्त वाक्य यह साबित करता है, कि मन्दसौर के शिलालेखवाला यशो - धर्मन जिसने, कि हूणोंको लगातार परास्त किया था, जाट था ? वह जाट होगा । क्योंकि यह मालूम हो चुका है कि जाट मालवा - मध्यभारत में सिन्धकी भांति पहुँच चुके थे ।" ( हिस्ट्री ऑफ मीडीयावल हिन्दूइण्डिया, पृ० ८७-८८)
इसी विषय में 'जाट इतिहास' में पृष्ठ ५९ पर लिखा है: --
१ - जैनसूत्रों में आनेवाली आद्र कुमारकी कथा में श्रद्र के देशके राजा का श्रेणिकके सभा के संबंध पर जनरल कनिंघम के ऊपर लिखे विचार क्या कुछ प्रकाश नहीं डालते ? जरूर डालते हैं। भाद्र कदेश वर्तमानका 'एडन बंदर' अथवा इटली के मुसोलिनी की फासिस्ट नीति का शिकार बने हुए अल्बानियाके पास के 'एड्रियाटिक' से हो सकता है। आद्रक राजा के पूर्वज भारत से उधर गये द्दों और वहां राज्य कायम करके रहने लग गये हों। श्रेणिक के पूर्वजोंसे उनका कोई संबंध हो और वह आपसमें बराबर आदान प्रदानके जरिये बना हुआ हो, इसका कोई ताज्जुब नहीं है । अनार्य देशमें रहनेसे आद्र के राजा आदि अनार्य माने गये हों यह भी होसकता है । कुछभी हो आर्द्र के राजा और श्रेणिक महाराजका प्रेम सकारण ही होगा । संभावित कारणोंमें पूर्वसंबंध भी एक कारण हो सकता है । सूयगडांग सूत्रके दूसरे श्रुतस्कंध के छठे माइकाध्ययनको नियुक्ति इस संबंध में कुछ प्रकाश डालती है।