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________________ २४० 1 अनेकान्त [ पौष, वीर निर्वाण सं० २४६६ श्रीकृष्ण प्रजातंत्रवादी थे साम्राज्यवादी संध यह बात महाभारतसे ही सिद्ध है कि, श्री- जब श्रीकृष्णजीका संघ अपने एक राजनैतिक कृष्ण प्रजातंत्रवादी थे । और उनके विरोधी सिद्धांतके आधार पर अपना प्रभाव बढ़ाने लगा, दुर्योधन, जरासंध, कंस, शिशुपाल आदि शासक तो दूसरा साम्राज्यवादी संघ अपना आतंक राजालोग साम्राज्यवादी सिद्धांतके पक्षपाती थे। जमानेके लिये प्रजाको पीड़ित करने लगा। प्रजाइसीलिए उनका श्रीकृष्णके साथ हमेशा विरोध तंत्री सिद्धांतोंसे ज्ञातिसंघने पीड़ित प्रजाकी रक्षा रहता था। विरोधियोंसे संघर्ष सफलतापूर्वक कर की, पीड़ितोंकी रक्षा करनेसे उसका क्षत्रियत्व सकनेके लिए एवं समाजकी सुख-शांतिके स्थायि- स्वयं सिद्ध होगया । इसीलिये कल्पसूत्रमें " नायात्वके लिये श्रीकृष्णने एक संघ स्थापित किया णं खत्तियाणं " पद पड़ा हुआ उचित ही प्रतीत था। संघके सदस्य आपसमें संबंधी होते हैं। उन होता है। श्रीकृष्णके ज़मानेसे ही क्षत्रियोंके ज्ञातिमें परस्पर ज्ञातिका-सा संबन्ध होता है। इसलिए संघकी नीव पड़ी, जो आगे चलकर शातिसंघके रूप उस संघका नाम " ज्ञाति संघ” प्रसिद्ध हुआ। में परिणत होगई। कोई भी राजकुल या जाति शातिसंघमें शामिल ज्ञातवंश के गोत्र होसकती थी। वह संघ व्यक्तिप्रधान नहीं होता ज्ञातवंशमें काश्यप वाहिक आदि कई गोत्र था। अतः उसमें शामिल होते ही सदस्योंकी जाति मौजूद थे। यह बात हमें भगवान महावीर के या वंशके पूर्व नामोंकी कोई विशेषता नहीं रहती पिता सिद्धार्थ क्षत्रियके परिचयसे जाननेको मिलथी। सब सदस्य जातिके नामसे पहचाने जाते थे। ती है। जैसे कि-"नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्यस्स समयके प्रभाव से उनमें भी कई एक राजवंशके खत्तियस्स कासवगुत्तस्य ।” यहाँ यदि कोई ऐसी शंको लोग साम्राज्यवादी विचारोंके होगये, और करे कि "नायाणं" इत्यादिका 'प्रसिद्ध क्षत्रियों में 'सम्राट' या 'राजा' उपाधिको धारण करने लगे। काश्यप गोत्रवाला सिद्धार्थ क्षत्रिय' ऐसा अर्थ किया सब दूसरे प्रजातंत्रवादी ज्ञाति के लोग 'राजन्य' कह- जाय तो नाय-ज्ञात का अर्थ विशेष्य नहीं रहता, लाने लगे। जातिके विधान, नियम और शासन- विशेषण होता है। तो फिर ज्ञातवंश कैसे सिद्ध प्रणालीमें विश्वास रखने वाले लोग आगे चलकर होगा ? इसका उत्तर यह है, कि नाय-ज्ञात विशे'शाति' उपाधि वाले हुए। षण नाम नहीं बल्कि विशेष्य नाम है। इसीलिये 'ज्ञांश् अवबोधने' इस धातु से यदि 'ज्ञात' तो भगवान महावीरके लिए जैनसूत्रोंमें 'नायपुत्त' शब्दकी उत्पत्ति मानी जाय तो इसका सीधा अर्थ प्रयोग मिलता है। यदि 'नाय' शब्द प्रसिद्ध अर्थका प्रसिद्धताका सूचक है। कहीं कहीं 'ज्ञात' शब्द ही द्योतक माना जाय तो 'नत्यपुत्त' का अर्थ देखनेमें आता है, वह 'जानकार' अर्थका सूचक प्रसिद्धपुत्र' ही होगा, जो प्रसंगमें असंगत है। है। सभी अर्थ यथासंभव समुचित प्रयुक्त किये भगवान महावीरका ज्ञातवंश जासकते हैं। भ० महावीरका ज्ञातवंश महाभारत के प्रजा
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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