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________________ वर्ष ३, किरण ३] ज्ञातवंशका रूपान्तर जाटवंश [ २४१ तंत्रवादी ज्ञातसंघ से भिन्न नहीं है, क्योंकि ज्ञाति थी-प्रयोगों में संस्कृतके 'ज्ञ' का 'ज' एवं 'त' का संघके जो सिद्धांत महाभारतके उपर्युक्त श्लोकों में 'ट' उच्चारण हुआ मिलता है । न्याय-व्यादेखने को मिलते हैं, वे ही सिद्धांत ज्ञातवंशी करण-तीर्थ पंडित वेचरदासजी ने कई प्राचीन भगवान महावीरके सांसारिक एवं त्यागीजीवनमें प्राकृत व्याकरणोंके आधार पर जो नया 'प्राकृत देखनेको मिलते हैं। जैसे कि एकेश्वरवाद, व्याकरण' बनाया है, उसमें नियम लिखा है किईश्वरकर्तृत्ववाद, स्त्री-शूद्रके मोक्ष के लिये अनधि- _ "संस्कृत 'ज्ञ' का 'ज' प्राकृत में विकल्प से कारित्ववाद आदि वादों का भगवान ने प्रतिवाद होता है, और यदि वह 'ज्ञ' पदके मध्यमें हो तो किया है। साथ ही, विरोधियों के विचारोंको भी उसका 'ज' होता है, जैसे कि संजा-संज्ञा-सण्या।" विवेक-पूर्वक अपनाने की सहिष्णुताको रखने पृष्ठ ४१ __ऊपर लिखे नियम से 'ज्ञात' के 'ज्ञा' का 'जा' वाले स्याद्वाद का, कर्मप्रधानवादका, किसी को । कष्ट न देनेके रूप में अहिंसावाद का और इसी । होना स्वाभाविक ही नहीं नियमानुकूल भी है। ' प्रकार के और भी अनेक सुन्दर वादों का सुचारु सम्राट अशोककी धर्मलिपि ___प्राचीन शिलालेखोंमें सम्राट अशोककी जो रूप से प्रतिपादन तथा व्यवहार उनके जीवन में धर्मलिपियां अंकित हैं, उनमें तकार का और ओतप्रोत मिलता है। ये बातें ऐसी हैं, जो सारे संयक्त तकारका टकार हुआ मिलता है, और जैनासंसार की प्रजामें अशान्तिको मिटानेवाली गमोंकी भाषा में उस स्थानपर प्राकृत प्रक्रिया और शान्तिको देनेवाली हैं। देनेवाली हैं। के अनुसार तकार का डकार हुआ और संयुक्त हमारे जीवन-संस्कार भी हमें अपने पूर्वजोंकी त्तकारकां 'त' ही हुआ मिलता है:एक प्रकारकी बहुमूल्य देनगियां है। भगवानका अशोकलिपि आगमभाषा संस्कृत पुण्य जीवन-कल्पतरु ज्ञातवंशकी दिव्य भूमिको पाटिवेदना पडिवेअणा प्रतिवेदना हत का श्रेय-भागी बनाता है। भगवान के व. पटिपाति पडिवत्ति प्रतिपाति तीर्ण होने पर हिरण्यसे, सुवर्णसे, धनसे, धान्यसे, कट कड, कय कृत राज्यसे, साम्राज्य-संपत्ति सं, और भी अनेक प्रकार मट मड, मय मृत से बढ़नेवाला वह ज्ञातवंश आज कहां है किस कटव, कटविय कायव्व कर्तव्य कित्ति कीर्ति रूपमें है ? यह पुरातत्वके अभ्यासियोंके लिए परम किात, किाट अन्वेषणीय विषय है। अशोकलिपि के इन उदाहरणों से 'ज्ञात' ज्ञात का जाट शब्दमें पड़े हुए तकार का टकार होना भी प्रमाणित रूपान्तर परिस्थितिको देखते हुए करीब दो होता है । इस हालत में यह बात भली प्रकार हजार वर्ष हुए, 'ज्ञात' का 'जाट' हो गया प्रतीत मानी व जानी जा सकती है कि अशोक के जमाने होता है। क्योंकि दो हजार वर्ष पूर्वकी प्राकृत में 'ज्ञात' शब्द का रूपान्तर 'जार' बन गया हो भाषाके जो कि सर्वसाधारणकी बोलचालकी भाषा तो कोई ताज्जुब नहीं। -प्रा०का० पृ०३८
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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