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________________ २२२ अनेकान्त [पौष, वीर-निर्वाण सं०२४१६ से भी जो वक्ष उगे हैं उनके पत्ते, फूल और फल भी लमें तरह २ के पौदे और फल फूल देखकर एकदम आपसमें समान है यही हाल अन्य सब वृक्षों, पौदों और यही मानने लगता है कि ऐसी कोई अलौकिक शक्ति बेलोंका है । इससे वह समझ लेता है कि भिन्न२ प्रकार- ज़रूर है जो इस जंगल में ऐसे २ वृक्ष, पौदे और बेलें के वृक्ष, और पौदे, और बेलें किमी अलौकिक शक्तिके बनाकर, उनपर ऐसे २ सुंदर पत्ते, फूल, और फल द्वारा पैदा नहीं किये जाते हैं। किन्तु अपने २ बीजके लगाती है, जिनको देखकर अक्ल दंग रह जाती है । स्वभावसे ही वे भिन्न प्रकारके पैदा होते हैं, जिनपर उनकी ऐसा विचार आते ही वह उस अलौकिक शक्ति के प्रभाअपनी ही अपनी तरहके पत्ते फूल और फल लगते हैं । वसे काँप उठता है और उसको प्रसन्न कर उसके द्वारा इस अपनी बातको निश्चय करनेके वास्ते जब वह जंगलों अपने कार्य सिद्ध करनेकी फ़िकरमें लग जाता है, कल्पसे तरह २ के बीज बटोर कर घर ले जाता हैं और अपने नाके घोड़े दौड़ाता है और सिवाय इसके और कुछ आँगनमें डालकर उनको पानी देता है तो वहां भी भी सूझ नहीं पाता है कि जिस प्रकार अपनेसे प्रबल जंगलके समान प्रत्येक बीजसे उस ही प्रकारके पौदे, पत्ते मनुष्यकी खुशामद कर बड़ाई गाकर और उसको उसके फूल और फल पैदा होते हैं, जिस प्रकारका वह बीज इच्छित पदार्थकी भेंट चढ़ा उसको खुशकर उससे अपना होता है, तव वह अपनी इस बातका पूर्ण श्रद्धान कार्य सिद्ध कर लिया जाता है, इस ही प्रकार इन कर लेता है कि इन तरह २ के वृक्षों, पौदों, बेलों और अलौकिक शक्तियोंको भी प्रसन्न करलिया जाता है। उनके सुन्दर २ पत्तों, फूलों, और फलोंको बनाने वाली यही संसारके अनेक धर्मोकी बुनियाद है, जो जैनकोई अलौकिक शक्ति नहीं है किन्तु यह सब अपनी२ धर्मसे बिल्कुल ही विपरीत है । जैनधर्म ऐसी अलौकिक क्रिस्मके बीजोंके स्वभावसे ही बन जाते हैं जिनको उनके शक्तियोंको नहीं मानता है, इस ही कारण वह तो किसी अनुकूल हवा,मिट्टी, पानी आदि मिलनेसे उसी बीजकी भी अलौकिक शक्तिकी खुशामद करने और उसको भेंट किस्मका पौदा उग श्राता है, दूसरी किस्मका नहीं इस चढ़ाने के स्थानमें बबूल के बीजसे बबूल और नीमके कारण अब वह जब भी जिस किस्मका फल पैदा करना वीजसे नीम पैदा होनेके समान निश्चयरूप अपने ही चाहता है, तभी उस किस्मका बीज बोकर इच्छित किये हुए . प्रत्येक बुरे, भले कर्मका फल फूल फल पैदा कर लेता है और दूसरोंको भी इस प्रकार भोगना बताकर अपने ही कर्मोकी सम्हाल रखने, फल फूल पैदा करना सिखा देता है। इसी ही से यह अपनी ही नियतों, ( भावों और परिणामों ) को शुभ सिद्धान्त स्थिर हो जाता है कि जो कोई कांटेदार बबूल और उत्तम बनाये रखनेकी शिक्षा देता है जिस प्रकार का बीज बोता है उसकी ज़मीनमें काँटेदार बबलका आगमें ऊँगली देनेसे हाथ जलेगा ही, कड़वी वस्तु ही पेड़ उगता है, जो नीमका बीज बोता है उसके यहां खानेसे मुँह कड़वा होगा ही, अाँखमें लाल मिर्च पड़ कड़वे नीमका वृक्ष और जो मीठे आमकी गुठली बोता जानेसे जलन पैदा होगी ही, इस ही प्रकार हमारे प्रत्येक है उसके यहां मीठे श्रामका ही वृक्ष उगता है, इसमें कृत्यका फल हमको भोगना पड़ेगा ही, इसमें कोई फल किसी भी अलौकिक शक्तिका कोई दखल नहीं है। देनेवाला नहीं पायगा, किन्तु जिस कृत्यका जो फल परन्तु जो बुद्धिसे काम लेना नहीं चाहता वह जंग- है वह वस्तु स्वभावके अनुसार आपसे आप अवश्य
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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