SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५५ सुखड़ी का प्रसाद चढ़ाने हेतु तांता लगता है. उसी तरह भगवती पद्मावती देवी की नयनाभिरम्य प्रतिमा सबको दर्शन के लिये लालायित करती है. माताजी को चुनरी चढाने हेतु दूर-दूर से आये दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है. यहां के श्री महावीरालय जिनमंदिर का दर्शन वंदन पूजन करना भी जीवन में एक लाहा लेना है. एक बार दर्शन करनेवाला बार-बार यहां आने के लिये हमेशा उत्सुक रहता है. यही तो है श्री महावीरालय की श्रद्धा का बेनमुन उदाहरण. प्रिय वाचक ! आप इस मंदिर में कई खुबियों का विहंगावलोकन कर सकते हैं. लकड़ी के दरवाजों पर दक्षिण शैली में भगवान श्री महावीरस्वामी के भवों का हुबहु चित्रण किया गया है. तदुपरांत भगवान श्री आदिनाथ एवं भगवानश्री पार्श्वनाथ के मुख्य प्रसंगों का शिल्प देखने को मिलता है. रंग मंडप में एवं स्तंभों पर जैन शिल्पकला के सुंदर नमुने बनाये गये हैं. इसके अतिरिक्त गुरुमंदिर, रत्नमंदिर, ज्ञानमंदिर, पौषधशाला सभी स्थानों की बेनमुन वास्तुकला से युक्त निर्मिति एवं भव्यता, सूचकज्ञानगर्भितता सचमुच में जैन धर्म का हार्द समझने में उपयोगी सिद्ध हुई है." पृष्ठ १६ का शेष] श्रुतभक्त उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म.सा. उपाध्यायजी का व्यक्तित्व सरल, आकर्षक एवं सदैव प्रसन्नचित्त मुख उनके अन्तेवासियों एवं भक्तों को सदैव स्मरण कराता रहेगा. उन्हें सभी जीवों से प्रेम था. उनमें गजब की समता एवं सहनशीलता की भावना थी. अन्तिम दिनों से कुछ ही सप्ताह पूर्व डॉक्टरों ने उन्हें जानलेवा कैन्सर होने की पुष्टि की. इस जानकारी से वे विह्वल नहीं हुए. इस बातको उपाध्यायजी ने बड़ी ही सहजता के साथ लिया और कहा मैं मौत से नहीं डरता, मैं तैयार हैं. उन्होंने अपने शरीर और आत्मा को अलग कर दिया था. यही कारण था अपने अन्तिम २७ दिनों के अस्पतालवास के दौरान उन्होंने अपने चिकित्सकों सहित सभी को आश्चर्यान्वित कर दिया था. मृत्यु का उन्होंने जिस प्रकार स्वागत किया वह प्रशंसनीय एवं अनुपम उदाहरण है. डॉक्टरों द्वारा घोषित उनके जीवन काल से अधिक उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति एवं तपबल से पूर्ण जीवन जी कर नवकार महामन्त्र का स्मरण करते हुए समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. बड़े-बड़े डॉक्टर्स भी इस घटना से आश्चर्यान्वित तथा धार्मिकता के रस से ओतप्रोत हयें, उनके लिए ऐसा पहला अवसर था. उनका अन्तिम चातुर्मास अहमदाबाद स्थित नारणपुरा में था. इसी दौरान कैन्सर होने की बात प्रकाश में आई. इस घड़ी में समस्त संघ ने तत्परता के साथ जो कुछ हो सकता था किया किन्तु काल के उपर किसका वश है? उनके अवसान से जैन संघ को अपूरणीय क्षति हुई है. दिवंगत उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी के प्रति मैं कामना करता हूँ कि उनकी आत्मा को मोक्षाभिमुख परम सामग्री उत्तरोत्तर मिलती रहे तथा यह धरती ऐसे वीरपत्रों से सदा भरी रहे... उद्गार "શ્રી મહાવીર જૈન આરાધના કેન્દ્રમાં પૂ. ગુરુજીએ મને પોતે સાથે આવીને પુસ્તકોનું સંગ્રહાલય અને પૌરાણિક મર્તિઓ અને હસ્તલિખિત તાડપત્રો અને અનેક દુર્લભ વસ્તુઓ બતાવી. આ અદૂભુત સંગ્રહાલય અને પુસ્તકાલય છે. મારા જ્ઞાનમાં આવી વસ્તુઓ હયાત હશે એવી કલ્પનાજ નહોતી. આ કાર્યને હું બિરદાવું છું. પૂ. ગુરુદેવે સમાજ માટે કરેલું આ કાર્ય અતિ વિરલ છે તેમને મારા શત શત પ્રણામ..." કેશુભાઈ પટેલ, મુખ્ય મંત્રી, ગુજરાત રાજ્ય "This is the first religious institution which I have seen where there is an ideal mixture of religion, knowledge, history and modern technology. A very impressinve place, where one can not only learn a lot about Jainism but also the rich history and heritage of India. The wealth of information one can gather by spending a couple of hours here is worth more than visiting number of other institutions." R. C. Choudhury, IAS, Director General, NIRD, Hyderabad For Private and Personal Use Only
SR No.525258
Book TitleShrutsagar Ank 1999 01 008
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1999
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy