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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५५ श्री महावीरालय : एक परिचय पं. मनोज जैन श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा तीर्थ के श्री महावीरस्वामी जिन प्रासाद को हम श्री महावीरालय के नाम से जानते हैं. इस जिनालय में मूलनायक प्रभु महावीरदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठित है. अतीव मनोहर और दर्शनीय वीर प्रभु की यह प्रतिमा दर्शन करने वालों का मन मोह लेती है. महावीरालय का शिल्प स्थापत्य भारतवर्ष के नूतन जिनमंदिरों में एक श्रेष्ठतम उदाहरण माना जाता है. देवविमान तुल्य शोभायमान यह जिनप्रासाद यूं देखा जाय तो एक फूलगुलाबी रंग लिये सुन्दर दहेरासर नजर आता है. हजारों-लाखों लोगों का वर्षभर में यहां दर्शनार्थ आवागमन होता है. भगवान महावीरदेव की अलौकिक मूर्ति के दर्शन कर भक्तजन आत्मिक आनन्द का अनुभव करते हैं. विषय कषाय के त्रिविध ताप को शान्त करके भक्तजनों के तन-मन को अपूर्व शान्ति का अनुदान करने वाला यह महावीरालय अपनी अनेक विशिष्ट खुबियों से परिपूर्ण है. कभी फुरसद की पलों में आप इस मंदिर में निरीक्षण करेंगे तो अवश्य आपको यहां धर्म, कला और विज्ञान का समन्वय देखने को मिलेगा. आज से ठीक बारह साल पहले निर्मित श्री महावीरालय में ज्योतिष की दृष्टि से अद्भुत संगणना की गई है. इस केन्द्र के स्वप्न दृष्टा महान जैनाचार्य गच्छाधिपति श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराजा के कालधर्मदिन की स्मृति में श्रद्धाञ्जलि के रुप में प्रतिवर्ष २२, मई के दिन दुपहर में दो बजकर सात मिनट पर (आचार्यश्री के अग्नि संस्कार के समय को लक्षित कर) सूर्य की किरणें शिखर से होकर मूलनायक भगवान महावीर के भाल तिलक को देदीप्यमान करती हैं. इस प्रसंग पर हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. ___ पुरातन काल से ही हमारे ऋषि मुनियोंने ज्योतिषशास्त्र को बहुत महत्त्व दिया है और इस विज्ञान का यहाँ अभूतपूर्व विकास हुआ है. जिस प्रकार कोई भवन नीचे की भूमि को प्रभावित करता है उसी प्रकार आकाश में रहे ज्योतिषचक्र के नीचे पृथ्वी और तद्गत जीव जन्तुओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है. वृक्ष के नीचे भूमि पर जो छाया गिरती है. वह वृक्ष की प्रकृति के अनुरूप ही होगी, छाया में भी वही गुण दिखेंगे तथा छाया से प्रभावित वस्तु में भी वैसे ही गुणों का प्रभाव पड़ेगा. इसी प्रकार ज्योतिषीय ग्रहों का प्रभाव जीव सृष्टि उपर होता है. जैन ग्रन्थों में ग्रह नक्षत्र ताराओं का विस्तृत वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, क्षेत्रसमास, लोकप्रकाश आदि में मिलता है. श्री महावीरालय में ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में लेकर ज्योतिर्विज्ञान का रहस्यमय समन्वय किया गया है. नौ ग्रहों की संकलना तीर्थंकर परमात्मा की मूर्तियों से जुड़ी है. जैन शास्त्रों में कहा गया है कि तीर्थंकर परमात्माओं के जन्म समय में सभी ग्रह उच्च स्थिति में रहते हैं. वे सभी ग्रहों के अधिष्ठायक देवता अपने परिवार सहित भगवान के प्रति सेवक की भांति रहते हैं और इतना ही नहीं परंतु इन तीर्थंकर प्रभु के दर्शन, वंदन, पूजन करनेवाले भक्तजनों को भी शुभत्त्व प्रदान करते हैं . अशुभ प्रभाव को नष्ट कर शुभकारक बन जाते हैं. दर्शनार्थियों को इन नौ ग्रहों का अनुकूल प्रभाव मिले इसलिये उन उन ग्रहों के आधिपत्यवाले तीर्थंकरों की मूर्तियां यहाँ प्रतिष्ठित की गयी है. भावभक्ति से इन प्रतिमाओं के दर्शन, पूजन करनेवाले भव्यजीवों के सभी आधि, व्याधि एवं उपाधियों का सहज ही निवारण हो जाता है. बशर्त श्रद्धा प्राण तत्त्व है. श्री महावीरालय में भूतल स्थित गर्भगृह में विराजमान प्रभु आदिनाथ की अचिन्त्य प्रभावयुक्त मूर्ति के दर्शन वंदन से भव्य जीवों के दुरित दूर होते देखा गया है. इस प्रतिमा को स्वरुप बदलते कई बार श्रद्धालुओंने अनुभव किया है. घण्टों सामने बैठकर भी जी नहीं करता कि सामने से हटा जाय, यही तो उनके चमत्कार का प्रत्यक्ष प्रभाव है. महावीरालय के भूतल स्थित में एक देरी में विराजमान श्री माणिभद्रवीर देव की मूर्ति अनन्य प्रभावशाली है. प्रति गुरुवार को यहाँ सुखड़ी का प्रसाद चढाया जाता है. मनोकामना सिद्धि के लिये भक्तजनों का यहाँ For Private and Personal Use Only
SR No.525258
Book TitleShrutsagar Ank 1999 01 008
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1999
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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