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श्रुत सागर, माघ २०५५
६ सितम्बर १९९८ को जगदगुरु श्री विजयहीरसूरीश्वरजी महाराज के ५०२वीं स्वर्गारोहण तिथि निमित्त एवं राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्री पद्मसागरसरीश्वरजी म.सा. के ६४वें जन्मदिन के शुभ अवसर पर समारोह आयोजित किया गया. पूज्यश्री को जन्मदिन की शुभ कामना अर्पित करने के लिये इन्द्रप्रस्थ एवं हरियाणा के सिद्धदाता पीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित जगद्गुरु श्रीमत् सुदर्शनाचार्यजी महाराज पधारे, आपने सस्नेह पूज्यश्री को कम्बल बहोराकर हार्दिक शुभकामना व्यक्त की. आपने मंगल प्रवचन में बताया कि इस जगत में सन्तों का जन्म लेना ही सार्थक है. दुनियावाले जन्मदिन मनाते है यह तो विडम्बना है. जब कि संसार को अपना सर्वस्व देकर भी कुछ लेते नहीं है, ऐसे सन्तों का परोपकारमय जीवन ही पूजनीय है. उन्हीं का जन्मदिन शुभ है बाकि तो व्यर्थ में ही जनम गँवाकर जीवन को समाप्त करते हैं. पूज्य आचार्यश्री ने शुभाशीर्वचन देते हुए कहा कि जिनके पवित्र जीवन से सम्राट अकबर ने प्रेरणा पाई थी और उनके द्वारा पूरे भारतवर्ष में जीवदया का पालन करवाया था ऐसे जगद्गुरु हीरसूरिमहाराज के उपकार भुलाये नहीं जा सकते. जजिया कर से पूरे हिन्दू और जैन समाज को मुक्त कराया था. ५०२ वर्ष बाद भी वे आज अपने सत्कार्यों से जीवित हैं. गणिवर्य श्री देवेन्द्रसागरजी म. ने इस अवसर पर प्रासंगिक उदबोधन किया. इस समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में गुजरात के मुख्यमन्त्री श्री केशुभाई पटेल ने पूज्य गुरुदेव के चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित किये. आपने पूज्य गुरुदेव के समाजोपयोगी बहुमूल्य कर्तव्यों की अनेकशः अनुमोदना की और गुजरात के मुख्य मन्त्री होने के नाते अपना सहयोग हर तरह से करने की विनती की.
समारोह में उपस्थित अन्य नेतागण सर्वश्री बुटासिंहजी (भू. पू. सांसद), गुलाबचन्दजी कटारीया (शिक्षा मन्त्री, राजस्थान). बिमलभाई शाह (परिवहन मन्त्री, गुजरात) आदि तथा अनेक शहरों से पधारे अतिथियोंने पूज्यश्री के चरणों में हार्दिक वंदना सह शुभकामनायें अर्पित की. जीवदया हेतु दो लाख से उपर चंदा इकठ्ठा कर सुखाग्रस्त प्रदेशों में अबोल पशुओं के घास-चारे के लिये भिजवाया गया. समारोह के अन्त में साधर्मिक वात्सल्य से पधारे हुए सभी महेमानों की सुन्दर भक्ति की गई. सम्पूर्ण चातुर्मास में देश-विदेश के अतिथियों का तांता लगा हुआ था.
*राष्ट्र सन्त पू. आचार्य श्री की पावन निश्रा में पूज्य उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. के सामाधिमय कालधर्म निमित्त श्री नारणपुरा जैन संघ द्वारा ३६ छोड के उद्यापन सहित प्रभु भक्ति स्वरूप अष्टाह्निका महोत्सव एवं विशाल रूप से गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया.
पूज्य आचार्य श्री के अगले चातुर्मास हेतु साबरमती जैन संघ के आगेवानों ने मिलकर आग्रह पूर्ण विनती की एवं पूज्य श्री ने उन्हें सम्मति देकर अनुग्रहित किया.
*कडी नगर में प.प. राष्ट्रसंत शासन प्रभावक आचार्य श्रीमत पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा आदि मुनिवरों की निश्रा में दि. २६.१२.९८ से ३०.१२.९८ तक जिनभक्ति महोत्सव मनाया गया. श्री कडी जैन संघ के सभी परिवारों ने मिलकर सुन्दर आयोजन किया. पू. मुनिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी म.सा. एवं मुनिवर्य श्री पद्मरत्नसागरजी म.सा. की जन्मभूमि होने के नाते उनका दीक्षा के बाद यहाँ प्रथम बार पधारना हुआ. श्रीसंघ ने बहुत हर्षोल्लास से अगवानी की. महोत्सव दरम्यान देवद्रव्य-साधारण द्रव्य की आशातीत उपज हुई. पाँचों दिवस तीनों टाइम का साधर्मिक भक्ति के साथ बाहर से पधारें सभी महेमानों की विशिष्ट भक्ति की गई. श्री अर्हद महापूजन, शान्तिस्नात्र महापूजन में लोंगो ने तन-मन-धन से उदारता पूर्वक प्रभु भक्ति का लाहा लिया. महोत्सव का भरपूर लाभ उठाने वाले श्रीसंघ ने अश्रुपूर्ण नयनों से बिदाई वेला में गुरूभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया.
२३ जनवरी ९९ के दिन श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा में भीनमाल जैन संघ के २०० आगेवानों का पधारना हुआ. शेठ श्री घेवरचंदजी नाहर द्वारा भीनमाल में निर्मित नूतन जिन मंदिर की प्रतिष आचार्यश्री को विनती करने आए श्री भीनमाल जैन संघ के श्रेष्ठियों का श्री महावीर जैन केन्द्र में हार्दिक स्वागत किया गया. पूज्यश्री ने ज्येष्ठ सुदि ग्यारस के दिन प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त प्रदान कर उन्हें अनुग्रहित किया. प्रौढ़ प्रभावी व्यक्तित्व के धनी आचार्यश्री के दो शब्दों से प्रेरित हो श्रेष्ठियों ने [शेष पृष्ठ १२ पर
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