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________________ ( ११ ) थे। अभिलेखों से तो यहाँ तक सूचना मिलती है कि न केवल चैत्यों की व्यवस्था के लिए, अपितु मुनियों के आहार और तेलमर्दन आदि के लिये भी संभ्रांत वर्ग से दान प्राप्त किये जाते थे। इस प्रकार इस काल में जैन साधु मठाधीश बन गया था। फिर भी इस सुविधाभोगी वर्ग द्वारा जैन-दर्शन, साहित्य एवं शिल्प का जो विकास इस युग में हुआ, उसकी सर्वोत्कृष्टता से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यद्यपि इस चैत्यवास में सुविधावाद के नाम पर जो शिथिलाचार विकसित हो रहा था, उसका विरोध श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में हुआ। श्वेतांबर परंपरा में सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्र ने इसके विरोध में लेखनी चलाई। 'सम्बोधप्रकरण' में उन्होंने इन चैत्यवासियों के आगमविरुद्ध आचार की खुलकर आलोचना की, यहाँ तक कि उन्हें नर-पिशाच तक कह दिया। चैत्यवास की इसी प्रकार की आलोचना आगे चलकर जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि आदि खरतरगच्छ के आचार्यों ने भी की। ईस्वी सन् की दसवीं शताब्दी में खरतरगच्छ का आविर्भाव भी चैत्यवास के विरोध में हुआ था जिसका प्रारम्भिक नाम सुविहितमार्ग या संविग्नपक्ष था। दिगम्बर परम्परा में इस युग में द्रविणसंघ, माथुरसंघ, काष्ठासंघ आदि का उद्भव भी इसी काल में हुआ, जिन्हें दर्शनसार नामक ग्रन्थ में जैनाभास कहा गया है। तन्त्र और भक्ति मार्ग का जैन धर्म पर प्रभाब : वस्तुतः गुप्तकाल से लेकर दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी तक का युग संपूर्ण भारतीय समाज के लिये चरित्रबल के ह्रास और ललित कलाओं के विकास का युग है। यही काल है जब खजुराहो और कोणार्क के मन्दिरों में कामुक अंकन किये गये। जिन-मन्दिर भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रह सके । यह वही युग है जब कृष्ण के साथ राधा और गोपियों की कथा को गढ़कर धर्म के नाम पर कामुकता का प्रदर्शन किया गया। इसी काल में तन्त्र और वाममार्ग का प्रचार हुआ। जिनकी अग्नि में बौद्धभिक्षुसंघ तो पूरी तरह जल मरा किन्तु जैनभिक्षुसंघ भी उसकी लपटों की हुलस से बच न सका। अध्यात्मवादी जैन धर्म पर भी तन्त्र का प्रभाव आया। हिन्दु परम्परा के अनेक देवी-देवताओं को प्रकारान्तर से यक्ष, यक्षी अथवा शासन देवियों के Jain Education International onal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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