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________________ भविसयत्तकहा में युग और समाज के संदर्भ -डॉ० रामगोपाल शर्मा "विनेश" अपभ्रंश भाषा का सर्वप्रथम प्रकाशित काव्य “भविसयत्तकहा" (भविष्यदत्त कथा) महाकवि धनपाल की एक महत्त्वपूर्ण प्रबन्ध-कृति है । सन् 1918 ई. में एच. याकोबी द्वारा जर्मनी से और भारत में सन् 1923 ई. में बड़ौदा से इसका प्रकाशन हुआ था। __ धनपाल नाम के चार कवियों का उल्लेख मिलता है । "भविसयत्तकहा" के रचयिता धनपाल का समय पन्तःसाक्ष्य के आधार पर चौदहवीं शताब्दी ठहरता है । स्वयं धनपाल ने उस समय दिल्ली के सिंहासन पर मुहम्मदशाह का प्रासीन होना बताया है । यह मुहम्मदशाह ही मुहम्मदबिन तुगलक था जिसका शासनकाल 1325 से 1351 ई. तक स्वीकार किया गया है । इतिहासकारों के अनुसार इस समय देश की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी तथा कई बार अकाल पड़े थे । धनपाल अपने काव्य में इसी संदर्भ में अपनी मनुभूतियों को काल-जयी बनाता है। "भविसयत्तकहा" में कथा-शैली की वस्तु-व्यंजना है और उसी माध्यम से धनपाल अपने युग और समाज के बिखरे संदर्भ प्रस्तुत करता है । यद्यपि काव्य में युग की प्रार्थिक दशा की विषमतामों और नागरिकों की विपन्नता का विस्तार से भिन्न-भिन्न प्रसंगों में वर्णन है, तथापि कथा की मूल भित्ति भरत क्षेत्र के कुरुजांगल (रोहतक, हिसार,
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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