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________________ जैन विद्या सारे ग्रन्थ की भाषा अर्धमागधी है और उसमें कहीं-कहीं अपभ्रंश का प्रभाव है । 7 इसमें श्रुतपंचमी का माहात्म्य बताने वाली जयसे कहा, नन्दकहा, भद्दा कहा, वीरकहा, कमलाकहा, गुरणाणुरागकहा, धरणकहा, देवीकहा, विमलकहा और भविसयत्तकहा ये दस कथायें हैं । यह व्रत कार्तिक शुक्ला पंचमी को होता है। इस दिन शास्त्रों के पूजन, अर्चन, सम्मार्जन, लेखन आदि का विधान किया गया है । 44 महेन्द्रसूरि लिखित भविष्यदत्तकथा तथा भविष्यदत्ताख्यान नामक दो कथानों का उल्लेख जिनरत्न कोष में किया गया है पर डॉ. चौधरी का कथन है कि महेश्वरसूरि को ही भूल से महेन्द्रसूरि लिखा गया है । उचित भी यही प्रतीत होता है । उक्त कथाओं में अन्तिम कथा को लेकर अपभ्रंश और संस्कृत में पर्याप्त काम हुआ है। लगभग सभी प्रालोचक यह स्वीकार करते हैं कि इसी कथा को मूलाधार बनाकर धनपाल ने 'भविसयत्त कहा' काव्य लिखा । भविसयत्तकहा इस काव्य के लेखक धनपाल हैं। धनपाल नाम के चार कवियों का उल्लेख जैन साहित्य में देखने को मिलता है। प्रथम धनपाल उक्त काव्य के लेखक हैं ( आगे इनके सम्बन्ध में विस्तृत विचार किया जायगा ) । दूसरे धनपाल फर्रुखाबाद जिले के सांकाश्य में जन्म लेनेवाले काश्यपगोत्री ब्राह्मण देवर्षि के पौत्र और सर्वदेव के पुत्र थे । संस्कृत और प्राकृत दोनों पर ही इनका असाधारण अधिकार था । इन्होंने "तिलकमंजरी" और "पाइलच्छीनाममाला" नामक ग्रंथों की रचना की है। तिलकमंजरी न केवल जैन या संस्कृत साहित्य श्रपितु विश्व साहित्य की बेजोड़ कथा रचना है । इनका समय विक्रम की . ग्यारहवीं शती स्वीकार किया गया है। 10 ये श्वेताम्बराचार्य थे । तीसरे धनपाल " तिलकमंजरी कथासार" के लेखक हैं । इस ग्रंथ में यद्यपि तिलकमंजरी की ही कथा है, पर कुछ परिवर्तन भी किये गये हैं । श्रगहिल्लपुर के पल्लीवाल कुल में उत्पन्न श्रामन कवि के ये पुत्र थे । श्रामन ने नेमिचरित नामक महाकाव्य की रचना की है । उक्त ग्रंथ कार्तिक सुदि 8 वि. सं. 1261 को समाप्त हुआ 11 अतः इनका समय विक्रम की 13 वीं शती मानना चाहिये । ये दिगम्बर जैन थे। चौथे धनपाल " बाहुबलि - चरिउ " के लेखक हैं । इस ग्रंथ की प्रति आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर तथा श्रीमहावीरजी में सुरक्षित है । 12 इनका स्थान पल्हापुर था । पिता का नाम सुहडदेव और माता का सुहादेवी था । इनका समय विक्रम की पन्द्रहवीं शती है | 13 भविसयत्तकहा के लेखक घनपाल धक्कड़ नामक वणिक् वंश में उत्पन्न हुए । पिता का नाम माएसर और माता का धनश्री था । इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा आदि का उल्लेख नहीं किया है। जैकोबी तथा डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री प्रादि आलोचको ने सैद्धान्तिक विवेचन के आधार पर इनका दिगम्बर मतानुयायी होना सिद्ध किया है । 14 डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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