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________________ महाकवि धनपाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व - डॉ. जयकिशनप्रसाद खण्डेलवाल 1000 ई. है और दिगम्बर जैन मत के अनुयायी धनपाल धक्कड़ वैश्य थे। उनके पिता का नाम मातेश्वर और माता का नाम धनश्री था। धनपाल का विशेष परिचय नहीं मिलता । उनका स्थितिकाल विवादास्पद है । धनपाल नाम के चार लेखक हुए हैं जिनमें दो संस्कृत के और दो अपभ्रंश के हैं । संस्कृत के गद्यकाव्यकार धनपाल का समय उनकी 'तिलकमंजरी' पर बाणभट्ट की कादम्बरी का प्रभाव स्पष्ट है । 1 अपभ्रंश के एक कवि धनपाल ने 'बाहुबलि चरित' की रचना की है । 2 धक्कड़ वंश के कवि हरिषेण ने वि. सं. 1044 में 'धर्मपरीक्षा' नामक ग्रन्थ की रचना की। दिलवाड़ा के वि. सं. 1287 के तेजपाल के शिलालेख में धर्कट जाति का उल्लेख मिलता है । इस प्रकार दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक धक्कड़ वंश प्रसिद्ध रहा है । हमारे प्रतिपाद्य कवि धनपाल की एकमात्र अपभ्रंश रचना 'भविसयत्तकहा' है । इस काव्यग्रन्थ में धनपाल की अन्य किसी रचना के लिखे जाने का उल्लेख नहीं है । कहा जाता है कि धनपाल को सरस्वती का वरदान प्राप्त था । स्थितिकाल - राहुल सांकृत्यायन ने प्राचीन कवियों की रचनाओं का संकलन 'काव्यधारा' नाम से किया है। इसमें धनपाल का समय 10वीं शती माना है। उन्होंने इनकी भाषा को 'पुरानी हिन्दी ' माना है । श्री मोतीलाल मेनारिया ने जैन कवि धनपाल का समय
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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