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________________ जैनविद्या अपभ्रंश भाषा के इस महत्त्व को देखकर ही संस्थान ने सर्वप्रथम अपभ्रंश भाषा के रचनाकारों पर ही विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है । प्रस्तुत अंक में कवि धनपाल के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व तथा उसकी काव्य प्रतिभा से पाठकों को परिचित कराने के साथ साथ उसकी रचना के साहित्यिक एवं काव्यात्मक महत्त्व को उजागर किया गया है। उसकी कथा, कथारूप, भावबोध, धार्मिक परिवेश, उसमें नीतितत्त्व, युग और समाज के सन्दर्भ, जीवन में प्रतिबिम्ब आदि विषयों पर अधिकारी विद्वानों द्वारा प्रकाश डाला गया है । इसके अतिरिक्त अपभ्रंश भाषा की एक माध्यात्मिक रचना "समाधि" सानुवाद प्रकाशित की जा रही है । प्रमुख पांच जैन पुराणों-हरिवंशपुराण, महापुराण, पाण्डवपुराण, पद्मपुराण एवं वीरवर्धमानपुराण में आगत सूक्तियों का भा संस्थान में एक संकलन तैयार किया गया है जिसका कुछ अंश भी इस अंक में छापा गया है। गतांक में हमने यह विशेषांक धनपाल एवं धवल पर निकालने की सूचना दी थी किन्तु धवल से सम्बन्धित केवल एक ही रचना हमें प्राप्त हुई प्रतः विवश होकर इस अंक को धनपाल तक ही सीमित करना पड़ा । महाकवि धवल का हरिवंशपुराण अब तक ज्ञात एक मात्र रचना है और वह भी अप्रकाशित है इस कारण साधनों के अभाव में विज्ञजन हमें अपनी रचनायें भेजने में असमर्थ रहे। धवल पर विशेषांक अब आगे प्रकाशित होगा। हमने हरिवंशपुराण की फोटो स्टेट प्रतियां कराली हैं जो लेखकों को लेखन में सुविधा प्रदान करने हेतु कुछ दिनों के लिए उनके पास भेजी जा सकती हैं। प्रागामी विशेषांक इसी भाषा के महाकवि वीरु पर होगा। जिन विद्वान् रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रेषित कर अथवा अन्य प्रकार से हमें अपना सहयोग दिया है उनके हम कृतज्ञ हैं । संस्थान समिति तथा सम्पादक-मण्डल के सदस्यों, सह-सम्पादकों एवं अपने अन्य सहयोगी कार्यकर्ताओं के प्रति भी उनके द्वारा प्रदत्त परामर्श, सहयोग प्रादि के लिए आभार प्रकट करते हैं । मुद्रणालय के स्वामी, मैनेजर आदि भी सुसज्ज कलापूर्ण मुद्रण हेतु समान रूप से धन्यवादाह हैं । (प्रो.) प्रवीणचन्द्र जैन सम्पादक
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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