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________________ ३८२ जैनहितैषी । सरकारको पहले असहयोगकी साध नामे विश्वास नहीं था। वह उसकी चर्चाको महज एक प्रकारकी बकवाद और बच्चोंकासा खेल समझती थी । परन्तु अबतक इस दिशा में जो कुछ काम हुआ है, उससे जान पड़ता है कि सरकारका श्रासन डोल गया है और वह उसे थाम"नेके लिये बिलकुल ही आपसे बाहर हो गई है। उसने इस बातको भुला दिया है कि प्रजापर ही राज्यका सारा दारोमदार (आधार) है । प्रजाको असंतुष्ट रखकर उसपर शासन नहीं किया जा सकता और न डरा धमकाकर किसीको सत्यकी सेवासे बाज रक्खा जा सकता है। उसकी हालत बहुत ही घबराई हुई पाई जाती है और ऐसा मालूम होता कि वह इस समय 'मरता क्या न करता' की नीतिका अनुसरण कर रही है। यही वजह है कि उसने अपनी उस घबराहटको हालतमें, मनमाने कानून बनाकर, कानूनका मनमाना अर्थ लगाकर और मनमानी आशाएँ जारी करके, देशके प्रायः सभी सेवकों, शुभचिन्तकों, सहायकों और बड़े बड़े पूज्य नेताओं तकको बड़ी तेजीके साथ गिरफ़ार करना, और मनमानी सजा देकर जेल में भेज देना प्रारंभ कर दिया है। इल कार्रवाई से सरकार को बड़ी ही कमजोरी पाई जाती है और इससे उसने अपनी रही सही श्रद्धाको भी प्रजाके हृदयों से चलायमान कर दिया है। शायद सरकारने यह समझा था और अब भी समझ रक्खा है कि इस प्रकारकी पकड़ धकड़के द्वारा वह प्रजाको भयकम्पित बनाकर और उसपर अपना अनुचित रोब जमा * लार्ड रीडिंगने स्वयं अपनी घबराहटको स्वीकार किया है। देखो 'वन्देमातरम' ता० १६-१२-२१ Jain Education International [ भाग १५ कर उसे अपने पथसे भ्रष्ट कर देगी, और इस तरह पर देश में स्वराज्य तथा स्वाधीनताकी जो श्राग सुलग रही है, वह या तो एक दम बुझ जायगी और या जनता उत्तेजित होकर अशांति धारण करेगी, कुछ उपद्रव तथा उत्पात मचावेगी और तब उसे पशु बलके द्वारा कुचल डाला जायगा । परन्तु परिणाम इन दोनोंमेंसे एक भी निकलता हुआ मालूम नहीं होता । सरकार के निष्ठुर व्यवहार और निरपराधियोंकी इस पकड़ धकड़ने उन लोगों के वज्र हृदयको भी द्रवीभूत कर दिया है। और वे भी सरकार की इस घातक पालिसीकी निन्दा करने लगे हैं, जो अभी तक इस आन्दोलन में शरीक नहीं थे और बिलकुल ही तटस्थ रहते थे अथवा सरकारके सहायक बने हुए थे । स्वराज्यकी आग बुझने अथवा दबने के बजाय (स्थानमें) और अधिकाधिक प्रज्वलित हो रही है और सरकार के इस दमनने उसपर मिट्टीका तेल छिड़कने का काम किया है । लोगों का उत्साह बराबर बढ़ रहा है और वे स्वराज्य सेनामें भरती होकर खुशी खुशी हजारोंकी संख्या में कुंडके कुंड जेल जा रहे हैं और ऐसी जेल यात्राको अपना अहोभाग्य समझ रहे हैं, जो देश के उद्धार और उसे गुलामीसे छुड़ाने के उद्देश्य से की जाती है । यह सब कुछ होते हुए भी प्रशांतिका कहीं पता नहीं। ला० लाजपतराय, पं० मोतीलाल नेहरू मौ० अबुलकलाम आजाद और देशबन्धु सी. श्रार० दास जैसे बड़े बड़े नेताओं तथा कुछ प्रतिष्ठित महिलाओंके पकड़े जाने और जेल भेजे जाने पर भी लोग शांत रहे । लार्ड रीडिंगने, शांतिके इस यशके समय, तलवार से स्वराज्य मिलना बतलाया ! और इस तरह पर, प्रकारांतर से हिंलाको उत्तेजना दी। परन्तु फिर भी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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