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________________ .३३ अंक १२] देशकी वर्तमान परिस्थिति। किसीने तलवार उठाकर हिंसा करना. परंतु सरकारके इस चक्करमें पड़कर नहीं चाहा और न शांतिको भंग करना कहीं हमें भी भूल न कर बैठना चाहिए। पसन्द किया। यह सब, अधिकांशमै, हमें समझना चाहिए कि जिसका आसन महात्मा गांधीजीके उस महान् उपवास. डोलता है, वह उसके थामनेकी सभी कुछ का फल है जो उन्होंने बम्बईकी प्रशांतिके चेष्टाएँ किया करता है । घबराया दुमा समय धारण किया था। इस उपवास- मनुष्य क्या कुछ नहीं कर बैठता और ने देशवासियोंके हृदयमें शांति और यही सब सोच समझकर हमें अपने कर्त. अहिंसाकी उस ज्योतिको, जो पहले कुछ व्यके पालन में बहुत ही सतर्क और सावदुर्बल और कम्पित अवस्थामें थी, बहुत धान रहने की ज़रूरत है। ऐसा न हो कि कुछ दृढ़ और बलाढ्य बना दिया है। सरकारके किसी घृणितसे घृणित कार्यपर ऐसी हालतमें यदि यह कहा जाय कि . उत्तेजित होकर,' कष्टोंको सहन करने में सरकारने इस कृत्यके द्वारा, अपने पैरमें कातर बनकर और इष्ट-मित्रादिकोंके वि. माप ही कुल्हाडी मारी है,तो शायद कुछ योगमें पागल होकर, हम अशांति कर बैठे अनुचित न होगा । यह इस अनुचित और हिंसापर उतर आवे। यदि ऐसा दमनका अथवा इन बेजा और बे मौका हमा तो सर्वनाश हो जायगा। सारी करी सख्तियोंका ही नतीजा है जो भारतमे कराई पर पानी फिर जायगा और सर. प्रिन्स आफ वेल्सका उतना भी स्वागत कारका काम बन जायगा; क्योंकि सरकार नहीं हो रहा है जो कि दूसरी हालतमे इस प्रान्दोलनको बन्द करके हमारे चुप जरूर होता । उच्चाधिकारियोने शायद न बैठनेकी होलतमें, ऐसा चाहती ही है यह सोचा था कि बड़े बड़े लीडरोको और इसी में अपना कल्याण समझती है। जेल में भेज देनेसे हम जनताके द्वारा शाह परंतु हमारे लिये यह बिलकुल ही भक. जादे साहबका अच्छा स्वागत करासकेगे। ल्याण की बात होगी । हम पशुबलके द्वारा परन्तु मामला उससे बिलकुल उलटा सरकारको जीत नहीं सकते-इस विषय निकला और वे पहली खट्टी छाछसे के साधन उसके पास हमसे बहुत भी गये। ही ज्यादा है-औरन इस प्रकारकी जीत हमारी रायमें यदि सरकार सचमुच हमें इष्ट ही है, क्योंकि वास्तवमें ऐसी जीत ही मारतका हित चाहनेवाली है, तो कोई जीत नहीं होसकती। उसमें हृदयउसका यह कार्य बहुत ही प्रदरदर्शिता का काँटा बराबर बना रहता है। हाँ,मात्म और नासमझीका हुआ है। इस समय बलके द्वारा हम उसपर ज़रूर विजय पा सरकार अधिकार मदसे उन्मत्त है। वह सकते है, और यही सच्ची तथा स्थायी किसीकी कुछ सुनती नहीं और न स्वयं जीत होगी। सरकार यदि पशुबलका उसे कुछ सूझ पड़ता है। तो भी प्रजाकी प्रयोग करती है तो उसे करने दीजिए। ओरसे बराबर शांति जल छिडका जाने- हमारी नीति उसके साथ 'शठं प्रति पर जब उसका नशा उतरकर उसे होश शाठ्यं की न होनी चाहिए-हमें पशुबलः । आवेगा तो वह जरूर अपनी भूल मालूम का उत्तर आत्मबलके द्वारा सहन-शीलता. करेगी और उसे अपनी वर्तमान कृति में देना होगा और इसीमें हमारी विजय ( कर्तृत) पर घोर पश्चात्ताप होगा। है। हमें क्रोधको क्षमासे, अन्यायको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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