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श्रङ्क १२ ]
विरोधी सरकारको ठीक मार्ग पर लाने के लिये इससे अच्छा दूसरा उपाय नहीं हो सकता । परन्तु इस पर अमल करने वालोंको स्वयं अहिंसक, अत्याचार रहित निष्पाप और प्रेमकी मूर्ति बन जाना होगा; तभी उन्हें सफलता मिल सकेगी । यह नहीं हो सकता कि हम स्वयं तो अन्याय, अत्याचार और पापकी मूर्ति बने रहें और दूसरोंके इन दोषों को छुड़ानेका दावा करें। यदि हम खुद दूसरोंपर अन्याय और अत्याचार करते हैं तो हमें इस बातकी शिकायत करनेका कोई अधि कार नहीं है कि हमारे ऊपर क्यों अन्याय और अत्याचार किये जाते हैं । यदि हमारा आत्मा स्वयं पापोंसे मलिन है तो हम दूसरोंके पाप-मलको दूर करानेके पात्र नहीं हो सकते । इसीसे असहयोगका यह संग्राम श्रात्मशुद्धिका एक यज्ञ माना गया है, जिसमें हमें अपने उन संपूर्ण दोष, त्रुटियों और कमजोरियां की आहु तियाँ देनी होगी जिनसे लाभ उठाकर ही सरकार हम पर शासन कर रही है और हमें काकी पुतलियोंकी तरहसे नचा रही है । और यही वजह है कि कांग्रेसने इस महामंत्रकी साधनांके लिये, साधनोपायके तौर पर, चार मुख्य शर्ते रक्खी हैं, जिन्हें चार प्रकारके व्रत अथवा तप कहना चाहिए और जिनका पालन करना प्रत्येक सहयोगी तथा देशप्रेमीका प्रथम कर्तव्य है । वे चार शर्तें हैं १ अहिंसाशांति, २ स्वदेशी, ३ हिन्दू-मुसलिम एकता और ४ अछूतोद्धार। इनमें भी अहिंसा तथा शांति सबसे प्रधान हैं और वही इस समय सूलियत के साथ कसौटी पर चढ़ी हुई है।
देशको वर्त्तमान परिस्थिति ।
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हमें कसौटी पर सच्चा उतरने और वर्तमान परीक्षा में पास होनेके लिये इस
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वक्त देशके सर्वप्रधान नेता महात्मा गाँधीकी उन उदार और महत्वपूर्ण शिक्षाओंपर पूरी तौर से ध्यान देनेकी खास जरूरत है जो बराबर उनके पत्रों-यंग इंडिया, नवजीवन और हिन्दी नवजीवनमें प्रकाशित हो रही हैं। हमारा इस समय यही खास एक व्रत हो जाना चाहिए कि हम जैसे भी बनेगा, सब कुछ सहन करके शांति की रक्षा करेंगे, सरकारकी श्रोरसे शांति भंग करानेकी चाहे जितनी भी उत्तेजना क्यों न दी जाय और चेष्टाएँ क्यों न की जायें, परन्तु हम शांतिको जरा. भी भंग न होने देंगे-अपनी तरफसे कोई भो ऐसा कार्य न करेंगे जिसका लाजिमी नतीजा शांति भंग होता हो और बराबर अपने निर्दिष्ट मार्ग में आगेकी ओर कदम बढ़ाते हुए अमन कायम रक्खेंगे। इसी में सफलताका सारा रहस्य छिपा हुआ है ।
संकटकी जो घटाएँ इस समय देशपर छाई हुई हैं वे सब क्षणिक हैं और हमारी जाँचके लिये ही एकत्र हुई जान पड़ती हैं। उनले हमें जरा भी घबराना और विचलित होना नहीं चाहिए । हमारे दृढ़प्रतिश और कर्मनिष्ठ होते ही वे सब तितर बितर हो जायँगी, इस बातका पूरा विश्वास रखना चाहिए । मंत्रों तथा विद्यार्थीके सिद्ध करने में उपसर्ग आते ही हैं। जो लोग उन्हें धैर्य और शांतिके साथ झेल लेते हैं वे ही सिद्धि-सुखका अनुभव करते हैं। असहयोग मंत्र और स्वराज्य-निधिकी सिद्धिके लिये हमें भी कुछ उपसर्गो तथा संकटोको धैर्य और शांति के साथ सहन करना होगा, तभी हम स्वराज्य- सिद्धिके द्वारा होनेवाले अगणित लाभोंसे अपनेको भूषित कर सकेंगे। बिना कष्टसहन के कभी कोई सिद्धि नहीं होती ।
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