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समस्त दिगम्बर जैन पंचोंसे अपील ।
विजय किस पक्षकी होगी, इस बातका समस्त दिगम्बर जैन पंचोंसे पूरा पूरा भविष्य वर्तमानमें बतलाना
असम्भव है। मुकदमेबाज़ीमें दोनों पक्ष अपील।
सदाके लिए पराजित ही हो जाते हैं।
आज जो पक्ष विजयकी कामनामें खुश प्रिय महानुभावो, धर्मस्नेहपूर्वक जय है कल वही पक्ष कोर्ट में जाकर पराजित जिनेन्द्र।
हो जाता है और जो पक्ष आज पराजित ' आपको भारतवर्षीय दिगम्बर जैन है कल वही विजयसे खुश हो जाता है। तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा यह तो विदित होही सरकारी कोटोंमें सदैव सत्यकी ही विजय चुका होगा, कि प्रसिद्ध परमपूज्य तीर्थ या अत्याचारका परिहार हो, ऐसा नहीं राज श्रीसम्मेदशिखरके सम्बन्धमें अाज है; बल्कि कभी कभी इससे विपरीत भी कितने ही वर्षोंसे हमारे और श्वेताम्बरी हुआ करता है-असत्य सत्य और सत्य भाइयोंके दरम्यान कोटोंमें झगड़े चल असत्य हो जाया करता है। इसके अतिरहे हैं जिनमें दोनों पक्षकी ओरसे लाखों रिक्त, फैसला होनेके बाद धनकी बर्बादीके रुपये बर्बाद हो चुके फिर भी उक्त झगड़े- कारण दोनों जयपराजय-पक्ष वास्तवमें का अन्त होने में नहीं आया। हालमें इन्हीं मुकद्दमेबाज़ीकी पूर्व अवस्थाकी अपेक्षा झगड़ोंके लिए दिगम्बर जैनसमाजकी सदैव पराजित ही बने रहते हैं। जिसमें ओरसे २० लाख रुपया एकत्र किये थोडीसी भी बुद्धि है वह विचार करनेसे जानेका प्रस्ताव पास हुश्रा है और करीब इस बातको समझ सकता है कि इन २॥ लाख रुपया एकत्र भी हो चुका है। मुकदमोंके लड़नेसे चाहे कितने ही जोरोंयद्यपि प्रत्येक समाज क्या मनुष्यमात्रको से वे क्यों न लड़ाये जावें और उनमें अपने धार्मिक स्वत्वोंकी रक्षाका अधिकार चाहे कितना ही रुपया क्यों न खर्च किया प्राप्त है और उसके लिए यत्न भी होना जावे, तीर्थोके झगड़े कभी नहीं मिटेंगे। चाहिए, तो भी एक ही धर्मपिताकी दो यदि आज एक झगड़ा मिट जायगा तो भिन्न भिन्न सन्तानोंका परस्पर इस कल कोई दूसरा खड़ा हो जायगा और 'प्रकार मुकदमेबाज़ी करना मानो जैनधर्म- परसों तीसरा । इनकी परम्परा अापसमें के पवित्र उद्देश्यको तिलांजलि देना है। निपटारा किये बिना सदैव चलती रहेगी। जोजैनधर्म परम वीतराग भावनाको प्रज्व- आजतक हमारी समाजका लाखों लित करनेवाला, मनुष्यमात्रके हृदयसे रुपया इसी मुकदमेबाजीमें बर्बाद हो द्वेष और ईर्ष्याके बीजोको जीर्ण शीर्णकर चुका तो भी अभीतक हमारी समाज मध्यस्थ वृत्तिकी जड़ जमानेवाला और सफलीभूत नहीं हुई। ऐसे कठिन समयसंसारमें सबसे उत्कृष्ट त्यागभावकी शिक्षा में जब कि देशमें जहाँ तहाँ दुर्भिक्ष पड़ देनेवाला है, उसी विश्व-पूज्य जैनधर्मके रहे हैं, लाखों निर्धन अन्नके बिना तड़प इन पवित्र उद्देश्योपर मुकद्दमेबाज़ीके द्वारा तड़पकर मर रहे हैं, बुंदेलखण्ड आदि कालिमा फेरकर अपने द्रव्यबलका अनु- प्रान्तोंमें स्वयं जैनियोंके ही बच्चे टुकड़ोंके चितव्यवहार और अपव्यय करना धार्मिक लिए मुहताज हो रहे हैं, समाजके मध्यम तथा आर्थिक दृष्टिसे पतनका ही कारण श्रेणीके गृहस्थोंके व्यवसाय वाणिज्यमें भी होगा। दूसरे मुकहमेषाज़ीके द्वारा अंतिम पहले जैसी आमदनी अब नहीं रही है,
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