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________________ - अङ्क १-४] - कुछ सामयिक बाते। . स्त्रियाँ ५०२ जायज करार दें। पहला उपाय धर्मशास्त्राविवाहितायें ... ... २२३ नुमोदित है और दूसरा अभी विवादग्रस्त कन्यायें ११ से कमकी ... १२६ है। जबतक दूसरा उपाय विवादग्रस्त है कन्यायें ११ से अधिककी ... ५ तयतक पहलेका ग्रहण कर लेने में कमसे विधवायें ... ... ... १४५ कम विचारशील स्वएडेलवालोको तो इन अंकोंसे मालूम होगा कि जहाँ हमारी समझमें कोई एतराज नहीं होना ५६६ पुरुष हैं वहाँ स्त्रियाँ केवल ५०२ हैं; चाहिए । अर्थात् स्त्रियोंकी संख्या पुरुषोंसे लगभग १२ प्रति सैंकड़े योही कम है। इसके सिवा ३-गिरजाघरोंकी षिक्री। सारी कन्याओंकी संख्या १३४ है, परन्तु जैसे हमारे यहाँ मन्दिरोंके बनानेकी कुँवारोंकी संख्या २६२ है। अर्थात् सारी धुन है वैसे ही एक समय विदेशोंमें थी। कन्याओंके ब्याहे जानेपर भी लगभग वहाँ ज़रूरत हो या नहीं, इसका खयाल १२८ कुँवारे ऐसे बच रहेंगे जिनके किये बिना, पुण्य और नाम कमानेके विवाह, उक्त प्रान्तमें, किसी तरह हो ही लिए उपासनामन्दिर या गिरजाघर बनाये नहीं सकेंगे-उनके लिए कन्यायें मिलही जाते थे, यद्यपि अब ईसाई देशों में पहले नहीं सकेंगी ! ५०२ स्त्रियों से १४५ स्त्रियाँ जैसी धर्मभावनायें नहीं रही हैं, इसलिए विधवा हैं ! यह संख्या कितनी भयानक ये उपासनामन्दिर बहुत नहीं बनते, है! सौके पीछे २० से अधिक स्त्रियाँ फिर भी जो पहले बने हुए हैं और इन विधवा हैं यदि इसमेंसे - स्त्रियाँ अधिक दिनों भी जो थोड़े बहुत बन जाते हैं, उम्रकी समझ ली जायँ तोप्रति सैकड़े:. उन्हींके मारे लोग परेशान हैं। अभी त्रियाँ तो अवश्य ही वैधव्यका असह्य लन्दन शहरसे एक खबर आई है कि दुःख भोग रही हैं। वहाँ प्रार्थनामन्दिर इतने अधिक हैं और अच्छा हो यदि खण्डेलवाल महासभा उनमें आनेवालोंकी संख्या इतनी कम भी इसी तरह समस्त खण्डेलवाल जैनियों- होती है कि उनमें से १७गिरजाघर गिरा की मनुष्य-गणना प्रकाशित करनेकी दिये जायेंगे और वह जगह २२ करोड़ व्यवस्था करे।और फिराइसके बाद विचार रुपयों में बेच दी जायगी! इस समाचारकरे कि अपनी रक्षाके लिए उसे क्या करना से पाठक समझ सकेंगे कि संसारमें अब उचित है । जातिके मसले जातीय दशा- उपयोगिता और अनुपयोगिताका खयाल पर विचार करनेसे ही हल होगे। जो कितना अधिक बढ़ गया है और धार्मिकदशा नागपुर प्रान्तीय खण्डेलवालोंकी है क्षेत्रों में भी अब उसकी घुस-पैठ किस यदि वही दशा सारी खण्डेलवाल जाति- ढंगसे हो रही है। हम लोगोंको भी इससे की है और हमारा विश्वास है कि वह कुछ सीखना चाहिए । जो लोग अंधाधुन्ध लगभग वैसी ही होगी-तो खण्डेल- मन्दिरोंकी संख्या बढ़ा रहे हैं और इसी. वालोको अपनी जातिकी और उसके को धर्मप्रभावना समझ रहे हैं, उन्हें चरित्र की रक्षा करनेके लिए हमारी राय- सावधान हो जाना चाहिए। भारतके में केवल यही उपाय शेष रह जाता है कि विचार संसारमें भी बड़े बड़े परिवर्तन हो वे या तो अन्य जातिकी कन्याओंको लेना रहे हैं। वह दिन अधिक दूर नहीं दिखप्रारम्भ कर दे और या विधवा-विवाहको लाई देता जब कि मन्दिरोंकी यह ज्यादती For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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