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________________ ... जैनहितैषी। [भाग १५ विवाह न होनेके कारण परस्त्री तथा लेना और उसके साथ पापमय जीवन वेश्यागामी बन गये हैं । वह यह भी देखे व्यतीत करते हुए वंश और जाति किजिन लोगोंने किसी तरह अपने विवाह उज्ज्वल करना। इसके लिए खंडेलवाल दो दो चार चार हजार रुपये देकर कर जातिने स्वाधीनता भी पूरी दे रक्खी है। लिये हैं, वे कर्जमें किस तरह जकड़े हुए एक ओर तो खण्डेलवाल जातिके हैं और इसके कारण उनका चरित्र उद्धारका बीड़ा उठानेवाले कहते हैं कि कितना उन्नत हो गया है ! यदि उससे धर्मशास्त्र विधवा-विवाह करनेकी भाशा . और कुछ नहीं बन सकता है तो वह एक नहीं देते, इसलिए वह निषिद्ध है; और बार गणना करके यही हिसाब लगा देखे दूसरी ओर जब धर्मशास्त्रों से यह बतकि हमारी जातिमें विवाहयोग्य अवस्थाके लाया जाता है कि उनके अनुसार एक कुमारों और कुमारिकाओं की संख्यामें वर्णकी विभिन्न जातियोंका ही नहीं, कितना अन्तर है। और फिर सोचे कि किन्तु विभिन्न वर्गों का भी विवाह अनु-. अपनी रक्षाके लिए उसे अन्य जातियोंके चित नहीं है, तम आतिके वर्तमान नियमोंसाथ विवाहसम्बन्ध स्थापित करनेकी की दुहाई दी जाती है ! ऐसी दशामें कितनी आवश्यकता है। समझमें नहीं आता कि धर्मशास्त्रोकी .. यह निश्चित है कि खण्डेलवाल जाति- आशा विशेष मान्य है या जातिके में कन्याओंकी बहुत कमी है और मुख्यतः नियमोंकी। इसी कारण इस जातिमें अविवाहित हमारी समझमें दूमड़ और मेवाड़ा युवकोंकी संख्या बढ़ रही है, फिर भी भाइयोंने अपनी जातिकी रक्षा करने के खण्डेलवाल महासभाके संस्थापक पं० लिए जो उपाय किया है, वह बहुत ही धन्नालालजीने कलकत्तेके अधिवेशनमें प्रशंसनीय है और उसका अनुकरण सभी बहुविवाहका प्रतिपादन किया था। जहाँ जैन आतियोंको करना चाहिए और उन एक एक कुमारके बाँटमें एक एक कन्या जातियोंके लिए तो इससे अच्छा रामभी नहीं पड़ती है, वहाँ वे चाहते हैं कि बाण उपाय मिल ही नहीं सकता जिन कुछ मनचले धनी लोग दो दो चार चार जातियों में कन्यायें दुर्मूल्य हो रही हैं। स्त्रियाँ भी चाहें तो रख लें और इस तरह २-नागपुर प्रान्तके खण्डेलवाल । वे और भी सैंकड़ों युवकोंको विवाहसे गत वर्ष नागपुर प्रान्तीय खण्डेलवाल वंचित रक्खें। जैनसभाके मन्त्री श्रीयुत सेठ चेनसुखजी . बेचारे अविवाहितोंकी दशा बड़ी छावड़ाने अपने प्रान्तकी मनुष्यगणना .करुणाजनक है। न तो वे जातिमें ही बहुत ही सावधानीसे की थी और उसकी कन्यायें पाते हैं और न गैर जातिकी भोर रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी। हम अपने ही ताक सकते हैं । न उनके हककी रक्षा- पाठकोंका ध्यान उसकी नीचे लिखी हुई के लिए बहुविवाहकी और वृद्धविवाह- संख्याओंकी ओर आकर्षित करते हैं:की ही प्रथायें रोकी जा सकती हैं और न पुरुष ५६६ विधवा-विवाहकी ही उन्हें इजाज़त दी विवाहित ... ... जाती है। बस, उनके लिए केवल एक ही कुँवारे १४ वर्षके भीतरके .... १५१ मार्ग खुला है और वह यह कि किसीको कुँवारे १४ वर्षके ऊपरके ... रसोई-दारिन या नौकरानी बनाकर रख पत्नीरहित (विधुर) ... ७८ २२६ १११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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