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________________ अङ्क ३-७] कुछ सामयिक बातें। युक्तिपूर्वक अच्छे अच्छे ट्रेकृ निकालकर में उसी तरह बेरोक-टोक चला जा रहा समाजमें उनका खूब प्रचार किया जाना है। बीसा और दस्ता दमड़ों में पारस्प. चाहिए। रिक सम्बन्ध तो अब और भी बहुतायतसे होने लगा है। स्वयं सेठ माणिकचन्द जीके परिवारमें अनेक दस्सा कम्या कुछ सामायिक बातें। ब्याही जा चुकी हैं। अभी पिछले ही वर्ष सेठ माणिकचन्दजीके एक भतीजेकी (ले० श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी। ) शादी शोलापुरके एक दस्सा-कुटुम्बमें हुई १-अन्य जातियोंकी कन्यायें है। और यह बात तो अभी बिलकुल लेनेका प्रस्ताव। ताजी है कि पं० अर्जुनलालजी सेठी (खण्डेलवाल) की कन्या भी शोलापुरके पाठकोंने दिगम्बर जैन समाजकी एक दुमड़-कुटुम्बमें ब्याही गई है और दुमड़ आतिका नाम अवश्य सुना होगा। उसका व्यवहार यथापूर्व जा रहा है। स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्दजीने श्वेताम्बरियों के साथ भी इस जातिमें अपने जन्मसे इसी जातिको पवित्र किया कुछ विवाह हुए हैं। था । गुजरात, मालवा, बागड़ और इसी तरह गुजरातमें मेवाड़ा नामको दक्षिणके कुछ जिलों में इस जातिके बहु- एक दिगम्बर जैन जाति है । इसकी संख्यक जैनी रहते हैं। जैन डिस्कृरीके जनसंख्या २१६० है। स्वर्गीय सेठ लल्लूअनुसार इस.जातिकी जनसंख्या २०६४ भाई प्रेमानन्द एल. सी.ई. इसी जातिके है। अन्य जातियोंके समान यह भी बीसा थे। इस जातिमें अबतक ७५ कन्यायें और दस्सा इन दो उपभेदोमें बँटी हुई दूसरी जातियोंकी ब्याही जा चुकी है है। इसमें कन्याओंकी संख्या कम है, और आतिने उनका अनुमोदन किया है। इस कारण विवाहके योग्य युवाओंकी अहमदाबादकी कई श्वेताम्बर जैन संख्या बहुत बढ़ती जाती थी । हमें सूरत- जातियों में भी इस तरहके विवाह प्रचलित के एक धनी और विचारशील सजनके हो गये हैं। द्वारा अभी मालूम हुआ है कि सूरतकी खण्डेलवाल जातिकी उन्नतिका बीड़ा दमड-बिरादरीने कितने ही वर्ष पहले- उठानेवाली खराडेलवाल महामा उठानेवाली खण्डेलवाल महासभाको इन से ऐसा प्रस्ताव पास कर रक्खा है कि बातों पर विचार करना चाहिए, यदि जिस विवाह योग्य पुरुषको अपनी जाति- वास्तवमें वह अपनी जातिका कल्याण में योग्य कन्याकी प्राप्ति न हो सके, उसे करना चाहती है तो। वह देखे कि बरअधिकार है कि वह अन्य किसी ऐसी जैन नगर, इन्दौर, लश्कर, आगरा आदि या अजैन जातिकी कन्याके साथ अपना स्थानों में अविवाहित खण्डेलवाल युवामोंविवाह कर ले जिसके साथ भोजनादि- की संख्या कितनी है और उनके चरित्रका सम्बन्ध हो और ऐसी दशामें वह की क्या दशा है। उनमेंसे कितने लोगोंने जातिच्युत नहीं समझा जायगा। इस जातिकी और गैरजातिकी विधवाओको प्रस्तावके अनुसार कुछ दुमड़ भाइयोंने घरोंमें डाल रक्खा है और यह जाहिर इतर जातिकी कन्याओंके साथ विवाह कर रक्खा है कि हमने इन्हें रसोई बनाने. किया भी है और उनका व्यवहार जाति के लिए रख छोड़ा है, और कितने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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