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जैनहितैषी।
[भाग-१५ सफल करे और उन्हें तकलीफसे बचावे। जातिके लड़के दूसरी जातिकी लड़कियोंआवश्यकता है-मनुष्य परमार्थ में स्वार्थ से विवाह न करें, तो ज़रूरत है बिरादरीसमझे। इस जगह मैं नवीन मन्दिर- में ऐसा नियम करने की. कि जहाँतक हो, निर्माणके सम्बन्धमें कुछ कहूँ तो अनुचित हमारे नौजवान भाई कुंवारे न रहे और नहीं होगा। माना कि प्रतिष्ठा कराना उनको कन्यायें मिल सकें। यह तबतक पुण्य और प्रभावनाका कारण है; परन्तु न होगा जबतक कि बालविवाह, वृद्धदेखने में आता है कि कई मन्दिर जीर्ण विवाह, बेजोड़ विवाह आदि सत्यानाशी हो रहे हैं और उन्हें सुधारने की कोई फ़िक्र रीतियों का समूल संहार न कर दिया नहीं करता। इसी तरह कई जगह पूजा जावे । और विवाहके खर्चका नियम यहाँप्रक्षालके लाले पड़ रहे हैं और समाज तक बना दिया जावे कि पढ़े लिखे योग्य ध्यान नहीं देता। ऐसी सूरतमें नवीन तरुण युवाको पढ़ी लिखी सुशीला कन्या मन्दिर बनाया जाना वास्तव में जैनधर्म- कमसे कम खर्च में भी मिल सके. यहाँकी अवहेलना करना है । पहले इन तक कि लड़के लड़कियों का विवाह ५) मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करना चाहिये तकमें हो जावे और किसी प्रकारकी और पूजा प्रक्षालका इन्तजाम । मेरी कठिनाई न हो। ऐसे विवाहों में हमारे सम्मतिमें इस समय ऐसे कामों में अधिक भाई वैसी ही दिलचस्पीके साथ भाग पुण्य प्रतीत होता है। हाँ, जहाँपर जैन ले, जैसा कि वे लाख रुपये खर्च करनेमन्दिर नहीं हो वहाँपर जैन मन्दिर अवश्य वालेके विवाहमें लेते हैं । हाँ, इस बातकी बनने चाहिये। बाकी हमारे दानका भी बड़ी भारी आवश्यकता है कि विवाह उपयोग जातिके अभ्युदयके कामों में होना होनेके पहले वरकी इतनी योग्यता हो ही चाहिये । जैसे-विद्यामन्दिर, पुस्तका. जानी चाहिए कि वह गृहस्थीको अच्छी . लय, जाति भाइयोंके सहायतार्थ फण्ड तरह चला सके और समाजके लिए भारआदि दान देकर खुलवाना।
रूप न हो । यहाँ यह कह देना भी अत्यन्त.. हमारे शास्त्रों में जीर्णोद्धारका भी से ज्यादे आवश्यक है कि विवाहके समय महान पराय लिखा है। इसलिये ऐसे ऐसे कन्याकी अवस्था १३ और पुरुषकी १८कार्यों में द्रव्य लगाना उचित है। मेरा १६ वर्षसे किसी हालतमें कम न हो। मतलब यह नहीं है कि नवीन प्रतिष्ठा "खर्चेमें ही मान मर्यादा मानना भयंकराना मैं अच्छा नहीं समझता,-नहीं। कर भूल है। बस, हमारी समाजको ऐसे ज़मानेकी हालतको देखकर द्रव्य, क्षेत्र, नियम बना देने चाहिएँ, जिनसे न तो काल, भावका विचार करते हुए अब कोई मजबूर होकर ज्यादे खर्च ही करे दानकी प्रथाको पलटना मेरी रायमें बहुत और न खर्चके कारण कोई लड़काकुँवारा ज़रूरी जचता है।"
ही रहे। बल्कि जमानेको देखते हुए इस ____फजूलखर्ची और कुरीतियोंको दूर समय सुपात्र कुँवारीको परणा देना मैं करनेकी प्रेरणा करते हुए आपने यह पुण्यका काम नहीं तो शुभ काम तो भी कहा
अवश्य कहूँगा। क्योंकि जातिके अस्तित्व.. "यदि आप चाहते हैं कि हमारी को कायम रखने के लिए ऐसे विवाह जाति विधवाविवाह आदि कुप्रथाओंसे आदिकी कुप्रथाएँ नष्ट हो जावेगी।" बची रहे, यदि आप चाहते हैं कि हमारी व्यापार और झगड़े टंटोपर आपने
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