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________________ भक ३-४] सेठ लालचन्दजी सेठीका भाषण । लय बना दे और उनमें उत्तमसे उत्तम भाषामें जवाब देते हैं, जिससे द्वेष उत्तरीव्यापारिक शिक्षा धार्मिक शिक्षाके साथ त्तर बढ़ता है। जैनसमाजके उपदेश स्वरूप दी जावे जिससे यह लोक और परलोक समाचारपत्रोंको भाषा-समितिका विषय दोनों सुधरें और जिनमेंसे श्रादर्श नव- नहीं भूल जाना चाहिये। युवक तैयार होकर निकलें। . कितने ही भाइयोंकी सम्मतिमें चन्द प्राथमिक शिक्षाके लिये जगह जगह पत्र का वहिष्कार आवश्यक अँचता है। जो हमारी जातीय पाठशालाएँ हैं उनका परन्तु इस विचार-स्वातन्त्र्यके जमानेमें पठनक्रम भी ऐसा रक्खा जाय जो विद्या- इस तरहके बहिष्कार तो बहुत कम चल र्थियोंको उच्च शिक्षा प्राप्त करानेमें उप- सकते हैं । आवश्यकता तो यह है कि योगी हो। इसके सिवा, जहाँ जहाँ पाठ- अहितकर लेखोका योग्यतापूर्वक जवाब शालाएँ नहीं हैं, वहाँ वहाँ अवश्य छपाया जाय । उनको मनानेका यही एक खुलनी चाहिये। इस तरह पाठशालाओं अच्छा साधन है। मेरे खयालसे इस तरह आदिका उचित प्रबन्ध करके जातिका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। एक भी बच्चा अशिक्षितन रखना चाहिये। मैं वर्तमान सामाजिक पत्रोंमें 'जैनऔर मेरी सम्मतिसे जो माँ बाप अपने हितैषी' और 'जैनमित्र की प्रशंसा किये बच्चोंको नहीं पढ़ावें, उनको जातिसे उचित बिना नहीं रहूँगा, जिनका सम्पादन बड़ी दण्ड अवश्य दिया जाना चाहिये। योग्यतासे किया जाता है। बल्कि 'जैनसमाजका भविष्य बालकोपर ही निर्भर हितैषी' के कितने ही लेख तो बड़ी खोजहै । मैं यह भी चाहता हूँ कि शिक्षालयोंमें के साथ लिखे जाते हैं। हालाँकि मैं उसके और और पढ़ाई के साथ साथ सेवाधर्म भी कितने ही लेखों और कितने ही विचारोंसिखाया जावे।" से सहमत नहीं हूँ।" समाचार-पत्रोंकी आवश्यकता और दानकी प्रथाका उल्लेख करते हुए उनपर अपने विचार प्रकट करते हुए आपने आपने सखेद प्रकट किया कि- "आजकल कहा-"जातिकी कुरीतियाँ मिटाने, जातिमें हमारे समाजमें गुप्तदानकी परिपाटी अच्छी नीतियाँ और सदाचार फैलाने, बहुत कम हो गई है । इससे अपने कई गति करने और उत्साह बढ़ाने में समा- असहाय बन्ध और महिलामोको हम चारपत्र भी बड़े अच्छे साधन हैं । खेद है बहुत कुछ सहायता नहीं पहुंचा पाते। कि सारे दिगम्बर जैन समाजमें दो तीन- मैं ऐसे दानको वास्तवमें दान न कहकर को छोड़कर ये भी नहींके बराबर हैं। सहायता कहना ज्यादा उचित समझता उनसे जैसा चाहिये वैसा फायदा नहीं हूँ। हमारे असहाय भाइयोको सहायता पहुँचता । हमारे सामाजिक पत्र ऐसे होने ज़रूर दी जाय। मगर हम चाहे कि बा. चाहिये, जो प्राचीन गौरवको प्रकट करते कायदा नाम दर्ज करके और रसीद लेकर हुए हमें आदर्श बनानेमें सहायक हो। सहायता दें, तो इसमें कदापि सफलता माजकलकी दुनियाँमें तोसमाचारपत्रोंके नहीं हो सकती। सहायता तो जितनी • बिना काम ही नहीं चल सकता। गुप्तसे गुप्त दी जाय उतनी ही अच्छी बात प्रायः देखने में आता है कि जो समा- है। प्रत्येक धनवामका फर्ज है कि वह चारपत्र किसीके खिलाफ कोई लेख अपने शहरके असहाय स्त्री पुरुषोंको छापता है, तो दूसरे पत्र उसका द्वेषपूर्ण पूरी पूरी सहायता देकर अपना जन्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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