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को महाराज'
अङ्क ३-४]
हाथीगुफाका शिलालेख। वेलका. जो जीवनवृत्तान्त* या इतिहास लिया था। यह कलिंगका द्वितीय राजमालूम होता है वह इस प्रकार है:- वंश होगा।मौर्य-शासनके अन्तिम समयमें नाम और उपाधि । चेतवंशी राजाओंके अधीन कलिंग फिर
स्वतन्त्र हो गया होगा। इस प्रकार इसी सम्राटका नाम 'खारवेल' (सं० क्षार- तृतीय कलिंग-राजवंशमें खारवेल हुए,
ऐसा मालूम होता है। लिखा है और साथ ही आपकी दो उपाधियोंका भी उल्लेख किया है। एक 'ऐर'
केतुभद्र। (ऐल) और दूसरी 'महामेघवाहन'। ऐर शिलालेखकी ११वीं पंक्तिमें 'केतुभद्र' उपाधिको जायसवाल महाशय 'आर्य'
का उल्लेख है, जो १३०० वर्ष पूर्व विद्यशब्दसे सम्बद्ध बतलाते हैं।
मान् था । वह इसी वंशका राजा था।
इस प्रकार ईसाके (१३०० +१६०) १४६० वंश।
वर्ष पूर्व केतुभद्र रहा होगा । हिन्दू शिलालेखकी प्रथम पंक्तिसे यह शात पुराणोंके अनुसार महाभारत युद्ध ईसा. होता है कि महाराज खारवेल 'चेतराज' के १४२४ वर्ष पूर्व हुआ है। महाभारतके के वंशमें उत्पन्न हुए थे। और अन्तिम भीष्मपर्वमें कलिंग-सेनाके सेनानी केतुपंक्तिमें उन्हें राजर्षि वंश और कुलमें भद्र' का वर्णन है; जी भीमके साथ उत्पन्न हुआ प्रकट किया है। इससे यह युद्ध में वीरगतिको प्राप्त हुआ था। सम्भव पता चलता है कि खारवेलका वंश भाय्या- है, इसी केतुभद्रके उपलक्ष्यमें खारवेलने, वर्तके किसी प्राचीन राजवंशकी शाखा पंक्ति ११ में उल्लिखित, उत्सव किया हो। होगा। सम्भव है 'ऐर' शब्दका प्राचीन
___ यौवराज्य और राज्याभिषेक। भारतवर्षके प्रसिद्ध राजवंश 'ऐल' से सम्बन्ध हो, ऐसा श्रीयुत जायसवालजी- पन्द्रह वर्ष कुमार-क्रीड़ामें विताका मत है।
कर तथा अनेक विद्याओंमें नैपुण्य प्राप्त शिलालेखकी तीसरी पंक्तिमें खार- करके श्रीखारवेल १६वे वर्ष में युवराज वेलका तृतीय कलिंग-राजवंशमें होना पदपर विराजमान हुए और उन्होंने नौ बतलाया गया है। हिन्दू पुराणों के अनु. वर्षतक युवराजके तौर पर शासन किया। सार महाभारत-युद्धके समयसे १३०० ऐसा लेखकी दूसरी पंक्तिसे मालूम होता वर्ष उपरान्ततक कलिंग-वंश चला आया है। साथ ही, यह भी जान पड़ता है कि था, और महापद्मके कुछ पूर्व उसका अन्त सिंहासन कुछ पहले हीसे ख़ाली था और हो गया था। नन्दवर्द्धनने कलिंगको २४ वर्षकी अवस्था पूर्ण होनेपर राज्याजीत लिया था । मौर्य-राजाओके पूर्व भिषेकका समय नियत हो चुका था । कलिंग फिर स्वतन्त्र हो गया था और शायद उस समय २४-२५ वर्षसे पहले अशोकने उसे पुनः अपने अधीन कर राज्याभिषेक होनेकी प्रथा न रही हो,और
शायद यही वजह हो कि अशोक भी • इस जीवन-वृत्तान्तके लिखने में हमें सबसे अधिक राज्याधिकारी होनेके ३, ४ वर्ष बाद सहायता श्रीयुत के० पी० जायसवालके तद्विषयक निबन्ध- अभिषिक्त हुए थे। से मिली है । अतः हम इसके लिए उनके खास तौरसे खारवेल यद्यपि जैन थे, परन्तु वैदिक आभारी है।
लेखक। विधानोंके अनुसार उनका महाराज्या
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