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________________ . जैनहितैषी। [भाग १५ इस कार्यको भली भाँति प्रारम्भ करनेका श्रीयुत के. पी. जायसवालजी इस श्रेय डा० भगवानलालको प्राप्त है। लेखकी विशेषताओंका उल्लेख करते हुए श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवालकी लिखते हैं किप्रार्थनापर बिहार और उड़ीसाके वर्तमान लेफ्टिनेण्ट गवर्नर सर एडवर्ड गेटने "ईसवी सनसे पूर्वकी कुछ शताश्रीयुत आर. डी. बनर्जी द्वारा उक्त ब्दियोंका इतिहास जाननेके लिये यह शिला-लेखकी प्रतिलिपि तैयार कराई । " धनजा द्वारा उक्त शिलालेख अत्यन्त उपयोगी है। अशोकबनर्जी साहबने एक प्रतिलिपि अपने लिये के पश्चात् यह दूसरा शिलालेख है। भी तैयार की। बादमें जायसवाल महा. पहला लेख वेदीश्रीका नानाघाटवाला शय और बनर्जी साहबने स्वतन्त्र रूपसे लेख है। परन्तु मौर्य-कालसे पूर्व-समयका इस लेखका अर्थ निकालनेका यत्न किया। निर्णय करने और जैन-धर्मका इतिहास और अन्त में दोनों सज्जनोंने अपने अपने जाननेकी दृष्टिसे यह शिलालेख उन कार्योको मिलाया। यद्यपि बहुत बातोंमें सम्पूर्ण शिलालेखोंसे सबसे अधिक महत्वउक्त दोनों महाशय सहमत हो गये, फिर __ का है जो अबतक देशमें पाये गये हैं। भी कई बातोंमें उनमें परस्पर मत-भेद इस लेखसे यह भी प्रमाणित होता है कि बना ही रहा, और महाशय जायसवाल जैन-धर्मका प्रचार उड़ीसामें भी हुआ और सम्भवतः वीर सम्बत् १०० के भीतर ने दिसम्बर १६१७ के "Journal of Bihar&Orissa Research Society". वह वहाँ राज-धर्म बन गया था। इससे में अपने विचार प्रकाशित किये। बिहार और उड़ीसाके एक ही देशमें केवल प्रतिलिपिसे सन्तोष न करके परिगणित होनेका ऐतिहासिक प्रमाण मिलता है। इस देशके सामाजिक-इतिजायसवालजीने कुछ कालके अनन्तर हासकी एक अत्यन्त आवश्यक बातका पुनः श्रीमान् सर एडवर्ड गेट साहबसे । उक्त शिला-लेखको स्वयं अध्ययन करनेके भी पता इस लेखसे चलता है । वह यह है कि ईसासे लगभग १७२ वर्ष पूर्व लिए सरकारी सहायताकी प्रार्थना की। प्राचीन उड़ीसाकी जनसंख्या ३५ लाख श्रीमान् लाट साहबने आपकी प्रार्थना थी। इससे कौटिल्यके अर्थशास्त्र और स्वीकार की और मि० हरनन्दन पाण्डेय, मेगास्थनीज़के ग्रन्थमें वर्णित इस बातकी असिस्टेंट सुपरिंटेंडेण्ट पुरातत्त्व विभाग, केवल पुष्टि ही नहीं होती कि हमारे पूर्वज पूर्वीय मण्डलको, इस कार्यके लिए उस मनुष्यगणना करते थे, बल्कि इससे स्थानपर आवश्यक सहायता देनेकी प्राचीन कालमें उत्तर-भारतकी समस्त हिदायत की। जनसंख्याका भी पता चल सकता है। कोई ७ दिनके कठिन परिश्रमके अन इस शिलालेखसे पुराणों में वर्णित, अंध्रन्तर महाशय जायसवालजीने मिस्टर वंशीय तृतीय नृपति, सातकर्णि प्रथमके पाण्डेयजीकी सहायतासे उक्त शिला भो इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। और लेखको फिरसे पढ़ा; जिसका नतीजा सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसी यह हुआ कि अब बहुत कम स्थानोंपर यह शिलालेखमें सबसे पहले मुरीय-नृपति लेख भस्पष्ट रह गया है, और पहलेसे बहुत सी बातें अब इसके द्वारा अधिक (चन्द्रगुप्त) के सम्वत्का उल्लेख है।' बात हुई हैं। इस शिलालेख परसे सम्राट् खार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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