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________________ अङ्क ५-६] योग-चिकित्सा। २३१ अनुसार शिथिल हो जाओ। मैं पहले भी कई कम मत समझना । देखो, गुरुत्वाकर्षणका नियम बार कह चुका हूँ कि शिथिल होनेकी क्रिया कितना सरल है, परंतु उसका प्रभाव विश्वव्यापी बहुत ही आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है । इस है । संसारके सब बड़े बड़े नियम ऐसे ही हैं। प्रवृत्तिके समय साधकके ज्ञानतंतुओंको इतना उनका महत्त्व उनके उपयोगसे प्रगट होता है । श्रम पड़ता है कि यदि दिवसमें १० मिनिट सर्यकिरणोंका आकर्षण । भी शिथिल होनेका अभ्यास न रक्खा जाय तो ऊपर बताई हई रीतिसे ही सूर्य-किरणोंमें उसका जीवनतत्त्व अल्प समयमें ही क्षीण हो व्याप्त, प्राणोंको पोषण करनेवाली महान् शक्तिजाय । वर्तमान समयमें आयुष्यके घट जानेका का आकर्षण किया जा सकता है । प्राचीन यह भी एक कारण है । अच्छा, शिथिल हो ऋषि लोग सूर्यका पूजन करते थे, सूर्यको अर्घ जाने पर तुम अपने मन और शरीरकी परीक्षा करो। हर । देते थे, सूर्यका आवाहन करते थे, सूर्यकवच नेत्र बंद करके ऐसी कल्पना करो कि “ मेरे र पढ़ते थे और सूर्यके प्रकाशमें बैठकर संध्या आसपासका समस्त वातावरण एक परम चेतन । चतन वंदन करते थे। इसका मतलब यह है कि वे शक्ति ( energy) से भरपूर है । यह चेतन उपलिखित क्रियाओं द्वारा सूर्यमेंसे 'रेडियम' विश्वव्यापी है । इस अनन्त चेतन समुद्रके मध्य हम और ऐसे दूसरे आयुष्यवर्धक तत्त्वोंको शरीरमें अकेले बैठे हुए हैं। सारे संसारमें हम और चेतन खींचते थे। यदि तुम चाहो, संकल्प करो तो शक्ति के सिवा और कुछ नहीं है ।" तुम अन्य तुम भी वैसा करनेमें समर्थ हो सकते हो। सब मनुष्योंको-सब पदार्थाको थोड़ी देरके प्रातःकालके पहले प्रहरमें जब सर्यकी धूप तेज लिए भूल जाओ । फिर कल्पना करो कि “ में नहीं होती, एक वस्त्र पहनकर और बाकी शरीर इस चेतन-सागरमें गोता लगा रहा हूँ-चेतनस खुला रखकर और यदि आवश्यकता जान पड़े व्याप्त हो रहा हूँ । ” इस समय तुम अपने तो एक कपड़े द्वारा सिर ढंककर सूर्यके प्रकाशरीर और मनको कपड़ेके समान ढीला कर दो। शमें बैठ जाओ और नेत्र बंद करके ऐसी कल्पना कल्पनाको खूब सतेज करो । तुम अपने नेत्रोंके करो कि “जो सर्य-किरणें हमारे शरीर पर पड़ सन्मुख इस क्रियाको जितनी उत्तमताके साथ रही हैं और जो हमारे चारों ओर फैल रही हैं, चित्रित करोगे, उसी परिमाणमें तुम इस चेतन- उन सबमें रहनेवाली शक्ति (Energy ) हमारे रूपी अमृतको प्राप्त कर सकोगे । अब कल्पना झरीरमें प्रवेश कर रही है।" थोडी देर बाद करो कि चेतनकी लहरें एकके बाद एक चारों तम्हारा सारा शरीर किसी अलौकिक बिजलीके ओरसे तुम्हार शरीरमें प्रवेश कर रही हैं, वे समान शक्तिसे चमक उठेगा और तमको नवजीतुम्हारे शरीरकी प्रत्येक रग और परमाणुको नया वन प्राप्त होगा । तुम जीवनके सच्चे आनन्दका बनाती हैं । इस समय ऐसा विचार करो कि अनभव करने लगोगे । इस नसखेको आजमाओ तम प्रत्येक श्वासद्वारा जगत मेंसे शक्तिका आक- और इस नवविज्ञानके पक्षपाती बनो। र्वण करते हो और उसके द्वारा तुम्हारा शरीर सोनेके पहले क्या बलवान् और तेजस्वी बनता है । यह सच्चा अमृत है । इसके द्वारा ऋषिलोग दीर्घजीवी होते करना चाहिए ? थे और तुम भी हो सकते हो। यह क्रिया देखनेमें सोने के पहले निम्रलिखित क्रियाको करनेका बहुत सरल मालूम होती है । इससे इसका मूल्य अभ्यास डालो । विस्तरों पर चित्त लेट जाओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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