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जैनहितैषी
[ माग १३
एक खिड़कीके सामने खड़े हो जाओ । फिर दीर्घ श्वास लो । साथ ही दोनों हाथ आगे ले अमृतमय वायुसे फेफड़ोंको मरो और तुरंत ही जाओ और मुट्ठी बाँधकर जोरसे कंधोंके पास ले खाली करो। इस प्रकार दीर्घश्वास-प्रश्वासकी आओ । इस प्रकार कई बार करो। ऐसा करते क्रिया जबतक बन सके, करो । जब फेंफड़े समय हाथोंमें खूब ताकत रक्खो, यहाँ तक कि श्रमित हुए मालूम पड़ने लगें, हृदय जोरसे वे सहज ही काँपते हुए मालूम पड़ें । फिर धड़कने लगे और रक्त खूब दौड़ने लगे तब इस हाथोंको जैसे थे वैसे करके बिलकुल ढीले कर क्रियाको बंद कर दो और आराम करो । इस दो। फिर फेंफड़ेमें रोकी हुई हवाको मुखद्वारा प्रकार नित्य सबेरे और शामके समय खुली जोरसे बाहर निकाल दो और एक शोधक हवामें दीर्घ श्वास-प्रश्वास लेनेकी कसरत प्राणायाम करो । ये कसरतें शरीरके किया करो।
ज्ञान-तंतुओंको बहुत बलवान बनाती हैं । ये दूसरी कसरत ।
तीनों कसरतें बहुत ही आवश्यक और महत्त्वकी सीधे खड़े हो जाओ। पैर और जंघाओंके
हैं । बाह्यदृष्टिसे देखनेवालेको शायद मालूम हो स्नायुओंको कड़े कर दो । एक दीर्घ श्वास लो.
कि ये कसरतें मामूली हैं, परंतु अनुभव करने पर
ये बहुत लाभकारी सिद्ध होती हैं। कसरत, और वायुको फेंफड़े रोक रक्खो । एड़ियोंको ।
। प्राणायाम और इच्छाशक्ति इन तीनोंका एकत्र ऊँची उठाकर अंगूठे और उँगलियों पर शरीरका
। उपयोग करके जो बल उत्पन्न होता है वह मारामार रखकर खड़े हो जाओ ) फिर धीरे
र अन्य किसी तरहकी कसरतसे प्राप्त नहीं हो धीरे पैरोंको नीचे आने दो और साथ-ही-साथ ।
सकता। फेंफडेमें रोकी हुई श्वासको धीरे धीरे नाकके
अमृत। नथनों द्वारा बाहर निकालते जाओ। फिर एक शोधक प्राणायाम करो। शोधक प्राणायामकी अब मैं तुम्हें एक अद्भुत चमत्कारिक और क्रिया इस प्रकार है---धीरे धीरे नाकके नथनों
। बलवर्द्धक प्रयोग सिखाता हूँ । सैकड़ों वर्षों से द्वारा एक श्वास लो और जबतक सरलतापूर्वक
" जिस अमृतको खोजनेके लिए लोग प्रयत्नशील थे उसे फेंफडॉमें रोक सको रोको । फिर जैसे सीटी और उसे प्राप्त नहीं कर सके थे, उसे मैं आज बजाते हैं इस प्रकार जोरसे मुखद्वारा श्वासको तुम्हें बतलाता हूँ। यह सच्चा अमृत कोई पेटेंट बाहर निकाल दो। * ये कसरतें और क्रियायें दवा या पौष्टिक वस्तु नहीं है, यह मंत्रित ताबीज यथाशक्ति करना चाहिए।
या डोरा भी नहीं है, परंतु यह योगकी एक
क्रिया है । यह क्रिया इतनी सरल. है कि तीसरी कसरत।
इसे हर कोई कर सकता है । तुम इसे बिलकल सीधे खड़े हो जाओ, छाती आगे आज ही प्रयोगमें लाओ । तुम अपने कमरे में निकालो, गर्दन जरा पीछे करो और कंधोंको भी प्रवेश करो और अपने मनकी व्यग्रता, चिन्ता, कुछ पीछेकी ओर हटाओ । मतलब यह कि तर्क वितर्क आदि सबको दूर कर डालो । फिर बिलकुल फौजी ढंगसे खड़े हो जाओ। फिर एक प्रसन्न चित्तसे एक आसन या आराम-कुर्सी पर . *अनेक पाश्चात्य लोगोंने श्वासको मखके द्वारा बैठ जाओ और कुछ समयतक दीर्घ श्वास निकालनेकी क्रिया कर देखी है, परंतु उससे किसी प्रश्वास लो । दशः पाँच बार जोरसे ओंकारका प्रकारका नुकसान नहीं हुआ।
उच्चारण करो और फिर ऊपर बतलाई हुई रीतिके
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