SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ करके उसका उत्साह नहीं बढाते । प्रायः कोंके बुरे कामोंको देखकर ही माता-पिता प्रसन्न होते हैं और यह नहीं सोचते कि आज तो लाड़ प्यारमें ये बातें कुछ हानिकर मालूम नहीं होती, परंतु कलको जब बड़ा हो जायगा तो ये ही बातें हानिकर सिद्ध होंगी। उस समय कुछ नहीं बन सकेगा । उन कामोंके करनेकी बच्चों में आदत पड़ जायगी और फिर aager छूटना कठिन है । जैनहितैषी - नहीं जिस देश और जातिमें ऐसी असावधानी से बच्चों का पालन होता है, वे यदि दिनोंदिन होनावस्थाको प्राप्त हो तो इसने कौन आकी बात है ? जिस जातिको जाति कहलाने का अभि मान है, वह अपने बच्चोंको ऐसा समझती है, जैसा साहूकार को गुलसे मल ही कुछ चला जाय परंतु व्याजमेंसे एक कौड़ी न जाने पर कारण कि यही व्याज आगे चलकर उसका मूल बननेवाला है । वह जाति बारके मालीके सदृश - जो बड़े पेड़ों की इतनी करता, जितनी छोटे ओरसे कभी असावधान नही होतील जातियाँ अपने बच्चोंको अपनी आशाओंका पूरा करनेवाले, अपने नामको कायम रखनेवाले, अपनी हानियाँको मिटानेवाले, अपने देश और धर्मका मान बढ़ानेवाले, शत्रुओं से रक्षा करनेवाले, मित्रोंको सहायता देनेवाले समझती है और इस तरहसे उनका पालन पोषण करती हैं कि वे बड़े होकर जातिक अंग बनकर उसकी रक्षा करें और उसे बल प्रदान करें ! जिन बच्चोंकी मातायें जीवित होती हैं उनका तो कहना ही क्या है, अनाथ बच्चोंतक के पालन के लिए जीवित जातियोंने सैकडों सामान कर रखे हैं। अनेक प्रकारके अनाथालय, विद्यालय, छानालय और शिल्प शालायें खोल रक्खी है, जहाँ उनका उत्तम गीतसे पालन पोषण किया जाता है और उन्हें शिक्षा दी Jain Education International की भाग १३ जाती है। स्मरण रहे कि यह प्रबंध राजाकी ओरसे नहीं है और न किसी एक व्यक्तिकी जोरसे, किन्तु जातिके चंदेसे । जातिके लोग चंदा करके इन सब कामों को चलाते हैं । य बच्चे स्वयं उनके नहीं हैं, परन्तु हैं तो जातिके बच्चे ही। उनके अच्छे होनेसे जातिको लाभ है और बुरे होनेसे जातिको हानि है । यह दशा इंग्लैंड अमेरिका आदि देशोंकी है । यही कारण है कि वे देश दिनोंदिन उन्नति कर रहे हैं : हमारी दशा इसके विपरीत है । हमारे देश अनाथोंका पालन पोषण और शिक्षण होना तो दूर रहा, जिन बच्चोंके माता पिता मौजूद हैं, अच्छे खाते-पीते हैं वे भी अपने बच्चों का ठीक तोरसे पालन पोषण नहीं करते। छोटी उमर में लाड़ प्यार करके उनकी आदतें खराब कर देते हैं । बड़े होने पर जब वे बेजा लाइप्यार के कारण न लिखते पढ़ते हैं और कोई काम धा करते हैं तो उनसे घृणा करते लगते हैं । देखिए ही बच्चे हैं, जिनको कभी माता-पिता अपनी आँख की पुतली कहा करते थे, मा बलायें लेती लेती कभी थकती न थी और बापका देखदेख कर कभी मन नहीं भरता था क्या कारण है ? यह कि माता पिताने अपने कर्त्तव्यको नहीं समझा, या समझकर उसके पूरा करनेमें आलस या ज सावधानी की । लाड़ तो जानवरोको भी अपने बच्चोंसे होता है। गाय, घोड़ी, मुर्गी, बिल्ली हर एक अपने बच्चे से लाड़ करती है । मनुष्य पशुओं श्रेष्ठ है; उसमें गाय बैल वगैरह से अधिक बुद्धि हैं। अतएव उसे उचित है कि लाइ तो अपने बच्चोंसे करे परन्तु वह लाड़ ऐसा हो कि जो बच्चोंकी भलाईका कारण हो और उनको ऐसा बना सके कि वे बड़े होकर दुनियाकी कठिनाइयोंको झेल सकें और अपने कामको सफलतापूर्वक कर सकें। भाईबंधुओं से जो सम्बन्ध है उसे अच्छी तरह निबाह सकें । दूसरोंके प्रति जो उनके For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy