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________________ अङ्क ५-६] सन्तान-सुधार। २१७ सन्तान-सधार। वे यथेष्ट स्थान पर पहुँच सकें। उनके मार्गमें जो जो विघ्न बाधायें आवे दूर कर दें और उन्हें कठिनाइयोंसे सूचित कर दें। यही माता पिताका (ले०-बाबू दयाचन्द्रजी गोयलीय, बी. ए.।) कर्त्तव्य है और इस कर्त्तव्यके वे सोलहों आने जिम्मेवार हैं । बच्चोंका अच्छा बुरा बनाना माता१ संतानपालन। . पिताके हाथमें है, इस लिए यह जिम्मेवारी भारी किसी कविने कहा है कि बाँसरीकी आवाज और नाजक है। इस जिम्मेवारीको ठीक ठीक उन्हीं लोगोंको मीठी और सुरीली मालूम होती निवाह ले जाना ही वास्तविक संतानपालन हैं । है, जिनके यहाँ बच्चोंका गुल-गपाड़ा नहीं होता। यदि विचार करके देखा जाय तो इस जिम्मेभला दुनियाँमें कोई भी ऐसी मा या कोई भी वारीको समझनेवाले सौ पीछे दो भी न निकऐसा बाप है कि जो उस खुशीको भूल गया हो लेंगे । जो समझते भी हैं, उनमें भी बहुत ही कम जो उसे अपने पहले बच्चेका मुँह देखने या ऐसे निकलेंगे कि जो उसके अनुसार प्रवृत्ति करते. छातीसे लगानेसे हुई थी। बेटा हो या बेटी, हों और संतानपालनमें उन नियमोंका प्रयोग उसे ईश्वरकी कृपा और अपना सौभाग्य समझना करते हों जिन पर सच्चे जीवनका आधार है । चाहिए । परन्तु माता पिताको याद रखना कैसे दःखकी बात है कि बच्चेका मन, बच्चेका चाहिए कि यह नन्हाँसा बच्चा केवल इस लिए मस्तिष्क और बच्चेका स्वभाव, सब कुछ माताउनके हाथोंमें नहीं दिया गया है कि अवकाशके पिताके लाडप्यार पर बलिदान कर दिया जाता समय उनके मनोरंजनका कारण हो, उससे है। उसे कपडा पहिराया जाता है तो ऐसा कि खेल तमाशा करके वे अपना जी बहला लिया मौसिकी नर्मी गर्मीका कोई विचार नहीं किया करें और जब वह बाल्यावस्थासे निकल जाय जाता। खाना खिलाया जाता है तो ऐसा कि तो उसे यों ही पशुओं की तरह छोड़ दें, उसके चाहे उसे बच्चा पचा सके या नहीं। बातें सिखाई पालन, पोषण और शिक्षणका कोई समुचित प्रबंध जाती हैं तो ऐसी जिनसे बच्चा मातान करें। बच्चों का पालन पोषण करना यह माता पिता और सगे सम्बन्धियोंके मनोरंजनका पिताकी भारी जिम्मेवारी है और इस जिम्मेवारी कारण हो । गालियाँ देना, मारना, मूंछे उखाके वे देश और समाज दोनोंके निकट उत्तर ड़ना, मुँह बनाना, गाल फुलाना, जानवरोंकी दाता हैं। आवाजोंकी नकल करना, स्वाँग उतारना इत्यादि - बच्चा मनुष्यकी भिन्न भिन्न शक्तियोंका समूह बातें बच्चोंको गोदमें ही सिखला दी जाती हैं । है, जो वास्तवमें इस लिए उसे मिली हुई हैं कि जो बच्चा इनमें उन्नति करता है, वह मा-बापका वह संसारमें सुखपूर्वक रह सके। उन शक्तियोंका लाडला बेटा होता है । पड़ोसी उससे उन्हीं कार्य जीवन है। यदि कार्य ठीक ठीक हो तो बुरी बातोंका अभ्यास कराते हैं जो माता पिताने जीवनके भी उत्तम रीतसे व्यतीत होनेकी उसे सिखला दी हैं। मित्र सम्बंधी आदि जब आते आशा है; परंतु यदि कार्यों भूल हो जाय तो हैं तो वे भी बच्चेसे उन्हीं बातोंको कराकर खुश जानो जीवन ही नष्ट हो गया। माता पिताके होते हैं । बच्चा कोई बुरा काम करता है तो यहाँ बच्चोंके पैदा होनेका गूढ रहस्य यह है कि वे उसके करनेसे उसको मना नहीं करते, यदि उनकी शक्तियोंको सन्मार्ग पर लगा दें, जिससे कोई अच्छा काम करता है तो उसकी प्रशंसा -- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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