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________________ अङ्क ५-६ ] कर्त्तव्य हैं उनको पूरा कर सकें। वे गुणी और ज्ञानी हो, साहस और दृढता में पक्के हों, बात के सच्चे हों, धर्म और देश के हितैषी हों, शुद्धाचारी हों, सत्यवती और दूरदर्शी हों और शील, संयम, शांति, संतोष आदि गुणोंसे विभूषित हो । इन शक्तियोंको एक खास केंडे पर लाना मातापिताका काम है । बागमें जो पौधा होता हैं उसके लिए भी जरूरत होती है कि समय पर उसको पानी दिया जाय, ठीक स्थान पर उसको जमाया जाय, उचित खाद डाली जाय, उसके बढ़ावको कम करनेवाली घास बूटी उसके पास से हटाई जाय और उसकी काटछाँट होती रहे । ऐसा करनेसे ही वह बढ़ता है और फल लाता है। हीरा जब खानिसे निकलता है, उस समय वह देखनेमें बड़ा भद्दा होता है। कारीगर अपनी मिहनत से उसपर से मैल उतारता है, और उसे इस योग्य बनाता है कि वह राजा महाराजाओंके मुकुटमें लगनेयोग्य होता है । यही हाल मनुष्य के स्वभावका है । उसको ठीक बनाने के लिए बड़े श्रम, उत्साह, बुद्धि, ज्ञान और दृढ़ताकी आवश्यकता है । उनके बिना मनुष्य में और पशुमें कोई अंतर नहीं रहेगा | अतएव मातापिताको उचित है कि वे बालकोंको अच्छा बनाने के लिए सदैव प्रयत्न करते रहें और शुरूसे ही करते रहें; अन्यथा वे पशुओंके सदृश जंगली और असभ्य बन जायेंगे और फिर बड़े होकर उनका ठीक करना असम्भव हो जायगा ! सन्तान सुधार । २ संतान पर मातापिताका प्रभाव | जब बच्चे बुरे निकलते हैं तो मूर्ख मातापिता अपने भाग्यको उलाहना दिया करते हैं; परंतु हम पूछते हैं कि यदि तुम्हारा कोई नौकर असावधानीसे तुम्हारा कोई वर्तन तोड़ दे और कहने लगे कि साहब, मैं क्या करूँ, यह तो भाग्यकी बात है, तो क्या आप उसकी बातको मान Jain Education International २१९ लेंगे ? कदापि नहीं । बच्चों को जैसा मातापिता बनाते हैं वैसे ही वे बन जाते हैं । उनका रूपरंग और उनकी आकृति मातापितासे बिलकुल मिलती जुलती होती है । बातचीत में भी बच्चा मातापिताकी नकल करता है । फिर वह उनके गुण और स्वभाव क्यों न सीखे ? मनुष्य अच्छे कामको इतनी जल्दी नहीं सीखता जितनी जल्दी बुरे कामोंको सीख लेता है । इस लिए यदि तुम्हारा ही चालचलन अच्छा नहीं है तो बच्चे का क्या होगा ? तुम अपने बच्चे के लिए नमूना हो । जैसा वह तुमको करते देखेगा वैसा ही वह स्वयं करने लगेगा । बच्चे पर पिताका भी इतना असर नहीं होता, जितना माताका होता है । जिस समय से बच्चा गर्भमें आता है, उसी समय से उस पर माताका असर पड़ने लगता है । जबतक बच्चा माताकी गोद में रहता है, माताका उस पर असर रहता है और जब बच्चा बड़ा हो जाता है तब उस पर माता और पिता दोनोंका असर पड़ता है । बाल्यावस्था ही ऐसी अवस्था है कि जिसमें बच्चेका चरित्र और स्वभाव बनता है । बड़े होकर केवल उस चरित्र और स्वभावका विकास होता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता । अतएव इस बातकी अत्यंत आवश्यकता है कि मातापिता दोनों इस योग्य हों कि संतानपालनके नियमोंसे भली भाँति परिचित हों । एक विद्वानने कहा है कि एक विदुषी और बुद्धिमती माता सौ शिक्षकोंसे अच्छी है । जिस बच्चेका शुरू में मूर्खा माताकी गोद में पालन होता है उसमें ऐसे अवगुण पड़ जाते हैं कि जिनका पीछे दूर होना असम्भव हो जाता है । चाहे कितनी ही शिक्षा दो, परन्तु उसके अवगुण दूर नहीं हो सकते । जब बच्चा जरा कुछ बड़ा हो जाता है और पिताका भी उस पर असर पड़ने लगता है, तब जिम्मेवारीका For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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