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________________ अङ्क ७] धर्मपरीक्षा। है । परन्तु मुनि आत्माराम ने अपने तो उसे प्रतिमाके स्थान पर एक चतुर्मुखी मनुष्य 'तत्त्वादर्श' ग्रंथके ४ थे परिच्छेदमें ' शील- दिखलाई पड़ा, जिसके मस्तक पर गधेका सिर तरंगिणी' नामक किसी श्वेताम्बरशास्त्रके था। उस गधेके सिरको बढ़ता हुआ देखकर - उसने शीघ्रताके साथ उसे काट डाला । परन्तु आधार पर, चार्वाक मतकी उत्पत्तिविषयक . वह सिर महादेवके हाथको चिपट गया, नीचे जो कथा दी है, उससे यह मालूम होता है कि नहीं गिरा। तब ब्राह्मणी विद्या महादेवको साधनाचार्वाक मत किसी राजा या क्षत्रिय पुरुषके द्वारा को व्यर्थ करके चली गई । इसके बाद रात्रिको, न चलाया जाकर केवल बृहस्पति नामके एक महादेवने श्री वर्धनमानस्वामीको स्मशानभूमिमें ब्राह्मणद्वारा प्रवर्तित हुआ है; जो अपनी बालविधवा ध्यानारूढ देखकर और उन्हें विद्यारूपी मनष्य बहनसे भोग करना चाहता था ! और इस लिए समझकर उन पर उपद्रव किया। प्रातःकाल जब बहनके हृदयसे पाप तथा लोकलज्जाकाभय निकाल- उसे यह मालूम हुआ कि वे श्रीवर्धमानजिनेंद्र थे, तब उसे अपनी कृति पर बहुत पश्चात्ताप कर अपनी इच्छा पूर्तिकी गरजसे ही उसने इस मतके • हुआ। उसने भगवान्की स्तुति की और उनके सिद्धान्तोंकी रचना की थी। इस कथनसे पद्म- चरण छए । चरणोंको छते ही उसके हाथमें सागरजीका उपर्युक्त कथन भी श्वेताम्बर शास्त्रोंके चिपटा हुआ वह गधेका सिर गिर पड़ा।" । विरुद्ध पड़ता है। ___यह सब कथन श्वेताम्बर शास्त्रोंके बिल(८) इस श्वेताम्बर 'धर्मपरीक्षा' में, पद्य नं० कुल विरुद्ध है । श्वेताम्बरोंके ‘आवश्यक' सूत्रमें ७८२ से ७९९ तक, गधेके शिरच्छेदका इति- महादेवकी जो कथा लिखी है और जिसको मुनि हास बतलाते हुए, लिखा है कि " आत्मारामजीने अपने 'तत्वादर्श' नामक ग्रंथके “ज्येष्ठाके गर्भसे उत्पन्न हुआ शंभु (महादेव) , १२ वे परिच्छेदमें उद्धृत किया है, उससे यह सब कथन बिलकुल ही विलक्षण मालूम होता सात्यकिका बेटा था । घोर तपश्चरण करके उसने है। उसमें महादेव ( महेश्वर ) के पिताका बहुतसी विद्याओंका स्वामित्व प्राप्त किया था। नाम 'सात्यकि ' न बतलाकर स्वयं महादेवका विद्याओंके वैभवको देखकर वह दसवें वर्षमें भ्रष्ट ही असली नाम ‘सात्यकि' प्रगट किया है हो गया। उसने चारित्र (मुनिधर्म) को छोड़कर और पिताका नाम 'पेढाल' परिव्राजक बतविद्याधरोंकी आठ कन्याओंसे, विवाह किया। लाया है। लिखा है कि, पेढालने अपनी विद्यापरन्तु वे विद्याधरोंकी आठों ही पुत्रियाँ महादेवके साथ रतिकर्म करनेमें असमर्थ होकर मर गई। तब * ओंका दान करनेके लिए किसी ब्रह्मचारिणीसे एक । तब पुत्र उत्पन्न करनेकी जरूरत समझकर 'ज्येष्ठा' महादेवने पार्वतीको रतिकर्ममें समर्थ समझकर उस- नामकी साध्वीसे व्यभिचार किया और उससे की याचना की और उसके साथ विवाह किया। एक सात्याक नामके महादेव पुत्रको उत्पन्न करके दिन पार्वतके साथ भोग करते हुए उसकी उसे अपनी संपूर्ण विद्याओंका दान कर दिया। 'त्रिशल ' विद्या नष्ट हो गई। उसके नष्ट होने- साथ ही यह भी लिखा है कि, वह सात्यकि पर वह ‘ब्राह्मणी' नामकी दसरी विद्याको नामका महेश्वर महावीर भगवान्का अविरत सिद्ध करने लगा। जब वह 'ब्राह्मणी' वि- . सम्यग्दृष्टि श्रावक था । इस लिए उसने किसी द्याकी प्रतिमाको सामने रखकर जप कर रहा रण किया और उससे भ्रष्ट हुआ, इत्यादि बातों चारित्रका पालन किया, मुनिदीक्षा ली, घोर तपश्चथा, तब उस विद्याने अनेक प्रकारकी विक्रिया का उसके साथ कोई सम्बंध नहीं है । महादेवने करनी शुरू की। उस विक्रियाके समय जब विद्याधरोंकी आठकन्याओंसे विवाह किया, वे महादेवने एक बार उस प्रतिमा पर दृष्टि डाली, मर गई, तब पार्वतीसे विवाह किया। पावतीसे भोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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