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अङ्क ७]
धर्मपरीक्षा।
वाग्युद्धका वर्णन था उन्हें पद्मसागरजीने अपनी उपाय करनेके लिए दो मुर्दे लानके विषयमें थी) धर्मपरीक्षासे निकाल दिया है । अस्तु; और सब बड़ी प्रसन्नताके साथ पालन किया, सच है कामी बातोंको छोड़कर यहाँ पाठकोंका ध्यान उस परि- पुरुष ऐसे कार्योंमें दुष्प्रबोध नहीं होते। अर्थात् वर्तनकी ओर आकर्षित किया जाता है, जो वे अपने कामकी बातको कठिनतासे समझनेवाले. 'रुष्टया ' के स्थानमें 'रुष्टखर्या' बनाकर, न होकर शीघ्र समझ लेते हैं । पद्मसागरजीने किया गया है । यह परिवर्तन वास्तवमें बड़ा ही यही पद्य अपनी धर्मपरीक्षामें नं० ३१५ पर विलक्षण है । इसके द्वारा यह विचित्र अर्थ घटित दिया है परन्तु साथ ही इसके उत्तरार्धको निम्न किया गया है कि जिस खरी नामकी स्त्रीने प्रकारसे बदलकर रक्खा है:-
. पहले कक्षीके उपास्य चरणको तोड़ डाला था “न जाता तस्य शंकापि दुष्प्रबोधा हि कामिनः॥" उसीने ऋक्षीको यह चैलेंज देते हुए कि 'ले! इस परिवर्तनके द्वारा यह सूचित किया गया है अब तू और तेरी मा अपने चरणकी रक्षा कर' कि 'उस बटकको उक्त आज्ञाके पालनमें शंका स्वयं अपने उपास्य दूसरे चरणको भी तोड़ भी नहीं हुई, सच है कामी लोग कठिन डाला ! परन्तु खरीको अपने उपास्य चरण पर तासे समझनेवाले होते हैं । परन्तु बटुकने क्रोध आने और उसे तोड़ डालनेकी कोई वजह तो यज्ञाकी आज्ञाको पूरी तौरसे समझकर न थी । यदि ऐसा मान भी लिया जाय तो उक्त उसे विना किसी शंकाके प्रसन्नताके साथ तुरन्त चैलेंजमें जो कुछ कहा गया है वह सब व्यर्थ पालन किया है तब वह कठिनतासे समझनेवाला पडता है। क्योंकि जब खरी कक्षीके उपास्य 'दुष्प्रबोध' क्यों ? यह बात बहुत ही खटकनेचरणको पहले ही तोड़ चुकी थी, तब उसका वाली है; और इस लिए ऊपरका परिवर्तन बडाकक्षीसे यह कहना कि, ले ! अब तु अपने ही बेढंगा मालम होता है। नहीं मालम ग्रंथचरणकी रक्षा कर, मैं उस पर णाक्रमण करती हूँ, कर्ताने इस परिवर्तनको करके पद्यमें कौनसी. बिलकुल ही भद्दा और असमंजस मालूम होता खुबी पैदा की और क्या लाभ उठाया । इस है। वास्तवमें दूसरा चरण कक्षकि द्वारा, अपना प्रकारके व्यर्थ परिवर्तन और भी अनेक स्थानों बदला चुकानेके लिए तोड़ा गया था और उसीने पर पाये जाते हैं जिनसे ग्रंथकर्ताकी योग्यता खरीको ललकार कर उपर्युक्त वाक्य कहा था। और व्यर्थाचरणका अच्छा परिचय मिलता है। ग्रंथकाने इसपर कुछ भी ध्यान न देकर विना सोचे समझे वैसे ही परिवर्तन कर डाला है, जो वताम्बर-शास्त्रविरुद्ध कथन । बहुत ही भद्दा मालूम होता है।
(५) पद्मसागर गणीने, अमितगतिके पद्यों(.४ / आमितगाति-धर्मपरीक्षाक' छठे परि- बीज्योंकी त्यो नकल करते हुए एक स्थान पर च्छेदमें, 'यज्ञा' ब्राह्मणी और उसके जारपति ये दो पद्य दिये हैं। ‘बटुक' का उल्लेख करते हुए, एक पद्य इस "क्षुधा तृष्णा भयद्वेषौ रागो मोहो मदो गदः। प्रकारसे दिया है--
चिन्ता जन्म जरा मृत्युवि दो विस्मयो रतिः ॥८९२॥ प्रपेदे स वचस्तस्या निःशेष हृष्टमानसः ।
खेदः स्वेदस्तथा निद्रा दोषाः साधारणा इमे।। जायन्ते नेदृशे कार्ये दुष्प्रबोधा हि कामिनः ॥४४॥ अष्टादशापि विद्यन्ते सर्वेषां दुःखहेतवः ॥ ८९३ ॥"
इस पयमें लिखा है कि 'उस कामी बटुकने इन पद्योंमें उन १८ दोषोंका नामोल्लेख है, यज्ञाकी आज्ञाको (जो अपने निकल भागनेका जिनसे दिगम्बर लोग अर्हन्त देवोंको रहित
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