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________________ अङ्क ७ ] देंगे । आठ साँकोंके मारे लोग बहुत ही तंग हैं। जब खण्डेलवाल, अग्रवाल आदि किसी भी जातिमें चार से ज्यादा साँकें नहीं मिलाई जाती हैं और फिर भी वे जातियाँ छोटी नहीं कह लातीं, तब परवार जातिको इससे अपने छोटे हो जानेके डरको चित्तसे निकाल ही देना चाहिए । ९ समैया और परवारांका सम्बन्ध | विविध प्रसङ्ग । परवार जातिके कुछ भाई तारनस्वामी के पंथको मानते हैं, इस कारण वे ' समैया ' कहलाते हैं। इनमें और परवारों में कोई भेद नहीं है । मूर गोत आदि सब दोनोंके एकसे हैं । दोनोंका भोजनव्यवहार भी होता है । बहुतसे समैया भाई ऐसे भी हैं, जो परवारोंके मन्दिरों में जाते और पूरा दिगम्बर सम्प्रदाय पालते हैं और इस पर भी उनका जो समैया भाइयोंसे बेटीव्यबहार है, उसमें अन्तर नहीं आता। समैया भाइयोंके घर बहुत थोड़े हैं, इसलिए अब उनका विवाहसम्बन्ध होना बहुत ही कठिन हो गया है, उन्हें लड़कियाँ नहीं मिलती हैं। ऐसी दशामें अब वे चाहते हैं कि हमारा परवार भाइयोंसे बेटीव्यवहार होने लगे। इसके लिए कोई कोई भाई तो अपना पन्थ छोड़ने तकको तैयार हैं । अन्यत्र छपे C कन्याकी आवश्यकता' शीर्षक विज्ञापनमें पाठकों को इस बातकी साक्षी · मिलेगी । हमारी समझमें परवार भाइयोंको इस संकट के समयमें अपने इन बिछुड़े भाइयोंको सहायता देनी चाहिए | चाहिए तो यह कि समैया भाई जबर्दस्ती अपने पंथको छोड़नेके लिए लाचार न किये जायँ; परन्तु यदि इतनी उदारता न दिखलाई जा सके, तो उन्हें अपना सम्प्रदाय स्वीकार कराके ही उनके साथ बेटीव्यवहार शुरू कर देना चाहिए । जहाँतक हम जानते हैं, परवार जातिके मुखियों को भी इसमें Jain Education International ३१३ कोई आपत्ति न होगी । गत वर्ष महाराजपुर ( सागर ) के सिंगई हजारीलालजीने, जो देवरी इलाके के मुखिया समझे जाते हैं - हमसे कहा था कि हम समैयोंसे सम्बन्ध करनेके लिए राजी हैं, यदि वे अपना पंथ छोड़ देवें तो । हमको आशा है कि हमारे और और परवार भाई भी इस ओर ध्यान देंगे और चार साँकोंके सम्बन्धके समान इस सम्बन्धको भी शीघ्र ही जायज ठहरा देंगे । १० कठनेरा जातिकी दुर्दशा | होशंगाबाद, भोपाल, मूँगावलीकी ओर 'कठनेरा ' नामकी एक दिगम्बर जैन जाति है । इसके सब मिलाकर कोई २०० घर होंगे । इस जातिके एक सज्जनके पत्र से मालूम हुआ कि उन्होंने कुछ गाँवोंके अपनी जातिके लोगों की गणना सर्वत्र घूमकर की थी, जिसके अनुसार इस समय विवाहयोग्य कुमारों की संख्या ७८ और कुमारियोंकी ४६ है, अर्थात् कुमारियोंकी संख्या कुमारोंसे ३२ कम हैं; इतने पर भी १४ पुरुष ऐसे हैं जिनकी एक एक दो दो शादियाँ हो चुकी हैं और स्त्रियोंके मरजाने के कारण फिर शादी करने के लिए तैयार हैं। नई उम्रकी विधवाओंकी संख्याजो दो चार छह वर्ष के भीतर ही विधवा हुई हैं और व्यभिचारमें प्रवृत्त हैं - १० है । इनमें ६ विधवायें इसी वर्ष में जातिसे च्युत कर दी गई हैं । शेष जो हैं, वे भी बहुत समयतक कुशलतापूर्वक नहीं रह सकतीं । जो लोग जैनोंकी अन्तर्गत जातियों में परस्पर विवाह नहीं होने देना चाहते और जो विधवाविवाह नामसे भड़क उठते हैं, उन्हें ऐसी जातियों की अवस्था पर विचार करना चाहिए । ९२ पुरुष तो विवाह करने के लिए उत्सुक हैं, पर कन्यायें कुल ४६ ही हैं । अर्थात् आधे पुरुषों को सदा अविवाहित रहना पड़ेगा और संयमहीन पापपूर्ण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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