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जैनहितैषी -
संवत् १५००) में हुई थी और उनकी उसी समय एक निषिया मनाई गई थी । मंगराज नामक कविका रचा हुआ एक शिलालेख उक्त निषया पर लगा है । आश्चर्य नहीं जो वे ही श्रुतकीर्ति कुन्दकुन्दाचार्यकी चरणपादुकाओंके स्थापक हों । ६ एक और चोरी पकड़ी गई । अन्यत्र श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी के लिखे हुए ' धर्मपरीक्षा ' शीर्षक लेखको पाठक पढ़ेंगे । उससे मालूम होगा कि यदि कुछ दिगम्बर विद्वानोंने विवेकविलासादि श्वेताम्बर ग्रन्थोंको अपना बना लिया तो श्वेताम्बर विद्वान् भी इस कर्ममें दिगम्बरोंसे पीछे नहीं रहे। उन्होंने मी अमितगतिकृत धर्मपरीक्षा के "समान और न जाने कितने ग्रन्थोंको छील छालकर अपना बना लिया है । पर हमारा श्वेतांबर ग्रंथोंसे अधिक परिचय नहीं है, इस कारण हमें ऐसी चोरियाँ पकड़नेका सुभीता कम रहा है और इल एक ही चोरीका माल ‘ बरामद’कर पाये हैं। पर हमारा विश्वास है कि इस ओर प्रयत्न किया जायगा, तो ऐसी बहुतसी चीजें मिलेंगी । बात यह है कि पिछले कई सौ वर्षोंमें हमारे यहाँ—दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में वास्तविक विद्वान् बहुत ही कम हुए हैं । जिन्हें हम मुनि और आचार्य जैसी परमपूज्य पदवियोंसे विभूषित हुए मान रहे हैं, उनमेंसे अधिकांश जन कषायों के पु झूठी प्रशंसा के अभिलाषी, अतिशय अनुदार, अपनेसे अन्य सम्प्रदायोंकी निन्दा करनेमें मन रहनेवाले और वास्तविक जैनधर्मका श्राद्ध करनेवाले हुए हैं। ऐसी दशा में उनसे इससे अधिक आशा और क्या रक्खी जा सकती है ? उन्होंने अपनी रचना में एक चोरी ही क्यों, जो अन्याय न किये हों सो थोड़े हैं । सूक्ष्मदृष्टिसे अध्ययन करने पर उन सब अन्यायोंका हमें इसी तरह धीरे धीरे पता लगता जायगा और एक दिन
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[ भाग १३
आयगा, जब हम मालूम कर लेंगे कि हमारे यहाँ वास्तविक विद्वान् कितने हुए हैं। दोनों ही सम्प्रदायके विद्वानोंको अंधविश्वासको भगाते हुए निर्भय होकर इस दिशा में प्रयत्न करनः चाहिए ।
७ दर्शनसार - विवेचनाका शेषांश । दर्शनसार के सम्बन्ध में नीचे लिखा अंश छपनेको रह गया है
" तेईसवीं गाथा में ' णिञ्चणिगोपत्ता इस वाक्यसे यह प्रकट किया गया है कि आजीवक मतका प्रवर्तक मस्करि - पूरण साधु नित्यनिगोदको प्राप्त हुआ । परन्तु यह सिद्धान्तविरुद्ध कथन है । तीनों प्रतियों में एकसा पाठ है, इस कारण इसका कोई दूसरा अर्थ भी नहीं हो सकता । नित्य निगोद उस पर्यायका नाम है, जिसे छोड़कर किसी जीवने अ नादि कालसे कोई भी दूसरी पर्याय न पाई हो, अर्थात जो व्यवहारराशि पर कभी चढ़ा ह हो । इस लिए जो जीव एकबार नित्य निगोदसे निकलकर मनुष्यादि पर्याय धारण कर लेते हैं वे ' इतर निगोद में जाते हैं; नित्य निगोदमें नहीं जाते । जान पड़ता है ' मस्करी ? को महान् पापी बतलाने की धुन में ग्रन्थकर्ता इस सिद्धान्तका खयाल ही नहीं रख सके । ”
८ चार साँकोंका विवाह । हमें समाचार मिला है कि सागर के श्रीयुत भूरेलालजी सिंगईका ब्याह नरावलीमें नन्दलाल मोदीकी लड़की के साथ चार साँकोंमें हुआ हैं। और इस विवाह में श्रीयुत मोदी धर्मचन्दजी, सिंगई रज्जीलालजी, बड़कुर जगन्नाथजी आदि परवार जातिके कई मुखिया सज्जन भी शामिल हुए थे । हम मुखियों के इस सत्साहसकी प्रशंसा करते हैं और आशा करते हैं कि अब वे अपनी जातिमें चार साँकोंके ब्याहको जायज ठहर
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