SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ जैनहितैषी [भाग १३ सिवाय यह पुस्तकालय केवल जैनोंके ही लिए तो सुदूरविश्रुत नृत्य कराये और कोट्यावधि जनखुलता नहीं है, प्रो० जौहरी जैसे अन्यधर्मी संहारक युद्धके चन्देमें जैनोंने लाखों रुपये विद्वानोंकी जिज्ञासाको शान्त करनेके मुख्य सहायतार्थ दे दिये। ऐसी दशामें यदि सेठ उद्देश्यसे ही इसकी स्थापनाका विचार हुआ है हुकमचन्दजी और उनके भाई तीनों सम्प्रदायके और ऐसे लोगोंको जैनधर्मका तुलनात्मक पद्ध- एक पुस्तकालयके लिए दशपच्चीस हजार रुपये तिसे अध्ययन करनेके लिए, उसके स्याद्वाद, दे देंगे, तो कौनसा बड़ा अनर्थ हो जायगा ? कर्मवाद, अहिंसावाद, अनीश्वरवाद आदि पर इसमें हम आपका दोष नहीं समझते। जिसिद्धान्तोंका रहस्य समझनेके लिए तीनों सम्प्र. नके मनोंमें रातदिन तीनों सम्प्रदायोंको आपयोंके ग्रन्थ उपयोगी हो सकते हैं और इस समें लड़ानेकी भावनायें उठा करती हैं और जो दृष्टिसे जैनधर्मके तीनों सम्प्रदायोंमें सामान्यतः इसी कार्यके लिए लोगोंको दान करनेकी प्रेरणा एकरूपसे मानी हुई उक्त बातोंका बोध अन्य• करते हैं, वे तीनों सम्प्रदायोंमें सौहार्द बढ़ानेधर्मियोंको हो सकता है और यह जैनधर्मका वाले ऐसे पुण्यकार्योंमें धन कैसे लगने देंगे ? साधारण उपकार नहीं है। अवश्य ही इससे ___२ आत्मघातसे सोलहवें सेठजी मिथ्यात्वके पोषक नहीं किन्तु निषेधक , बन सकते हैं। और इस पुस्तकालयमें सेठजीके स्वर्गकी प्राप्ति । सिवाय अन्य सम्प्रदायके लोग भी तो सहायता ज्येष्ठ सुदी १ के जैनगजटमें पद्मिनीजीके नाम देंगे । आपने यह कैसे समझ लिया कि केवल एक 'खुली चिट्ठी' प्रकाशित हुई है और उसमें सेठजीका ही धन लगेगा जिस पर कि आपने अपने राजपूतरानी पद्मिनीको ‘सोलहवाँ स्वर्गनिवासी तेरहपंथका एकाधिपत्य स्थिर कर रक्खा है ? अच्युतेन्द्र ' प्रकट किया है। चिटीके लेखक और महाराज, यह भी तो सोचिए कि जिन अपना नाम प्रकट नहीं किया है, इस लिए क्या सेठोंको आप इस ज्ञानवृद्धिके कामसे रोकते हैं, हम जैनगजटके धर्ममर्मज्ञ सम्पादक महाशयसे पूछ उनका धन क्या केवल सम्यक्वकी ही वृद्धिमें सकते हैं कि आप तो बिना शास्त्रप्रमाणके कोई बात खर्च होता रहा है ? जिस समय आपके इन्हीं तेरा ही नहीं करते हैं, अपने प्रत्येक ही लेखमें मौके बेपंथी सेठोंने इन्दौरके किंग एडवर्ड हास्पिटलको मौके जरूरत-गैरजरूरत गोम्मटसार आदिकी दुहाई लगभग दो लाख रुपयोंका दान किया था, उस दिया करते हैं; फिर यह पद्मिनीके सोलहवें समय आप कहाँ गये थे ? सेठ कल्याणमलजीने स्वर्गकी बातको आपने किस शास्त्रके आधारसे (आपकी दृष्टिसे) मिथ्यात्ववर्द्धक अँगरेजीका ठीक समझा है ? पद्मिनी मेवाड़के राणा भीमसिंहाईस्कुल खोला, खुर्जावाले सेठोंने एक ईसाईके हकी रानी थी, वह वीरपत्नी अवश्य थी; परन्तु द्वारा चलनेवाला अनाथालय खोला, न जाने जैनधर्मकी धारण करनेवाली नहीं थी। उसका कितने रायबहादुरसेठोंने अपने गौरांग प्रभुओंकी विश्वास उस धर्म पर था जिसे आप' मिथ्यात्व' आज्ञानुसार पब्लिकके अनेक कामों में लाखों के नामसे पुकारते हैं । उसके सिवाय वह तीत्र रुपये दिये, उधानभोज कराये और डालियाँ मोहके वशीभूत होकर आगमें जल गई थीलगवाई, आपके लाला जम्बूप्रसादजी जैसे दूसरे शब्दोंमें उसने आत्महत्या की थी और धर्ममूर्तियोंने मुकद्दमे जीतनेकी खुशियोंमें तथा 'गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमूढं निगद्यते' के दमरी खुशियोंमें गौहरजान और उसकी बहनोंके अनुसार लोकमूढताका अनुसरण किया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy