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________________ अङ्क ७] राजा हरदौल। २९७ are... .. पावे । क्या ऐसी दशामें मैं उनकी आज्ञाका था। हजारों आदमियों पर वीरताका नशा छा उल्लंघन करूँ तो वे नाराज होंगे ? कभी नहीं । गया। तलवारें स्वयं म्यानसे निकल पड़ी, भाले जब वे सुनेंगे कि मैंने कैसे कठिन समयमें तलवार चमकने लगे। जीतकी खुशीमें सैकड़ों जानें निकाली है, तो उन्हें सच्ची प्रसन्नता होगी। भेंट हो गई । पर जब हरदौल अखाड़ेसे बाहर बुन्देलोंकी आन किसको इतनी प्यारी है ? उनसे आये और उन्होंने बुन्देलोंकी ओर तेज निगाज्यादा ओरछेकी भलाई चाहनेवाला कौन होगा? होंसे देखा तो आनकी आनमें लोग सम्हल इस समय उनकी आज्ञाका उल्लंघन करना ही गये । तलवारें म्यानोंमें जा छिपी । खयाल आ आज्ञा मानना है । यह सोचकर कुलीनाने तल- गया। यह खुशी क्यों ? यह उमङ्ग क्यों और वार हरदौलको दे दी। यह पागलपन किस लिए ? बुन्देलोंके लिए यह ___ सबेरा होते ही यह खबर फैल गई कि राजा कोई नई बात नहीं हुई । इस विचारने लोगोंका हरदौल कादिरखाँसे लड़नेके लिए जा रहे हैं। दिल ठंडा कर दिया । हरदौलकी इस वीरताने इतना सुनते ही लोगोंमें सनसनी सी फैल गई उसे हरएक बुन्देलेके दिलमें मान-प्रतिष्ठाकी उस और वे चौंक उठे। पागलोंकी तरह लोग अखाड़ेकी ऊँची जगह पर जा बिठाया जहाँ न्याय और ओर दौड़े। हरएक आदमी कहता था कि, जबतक उदारता भी उसे न पहुँचा सकती थी । वह हम जीते हैं हम महाराजको लड़ने नहीं देंगे। पहलेहीसे सर्वप्रिय था; और अब वह अपनी पर जब लोग अखाड़ेके पास पहुँचे तो देखा कि जातिका वरिवर और बुन्देला दिलावरीका सिरअखाडमें बिजलियाँ सी चमक रही हैं। बुन्दे- मौर बन गया। लोंके दिलों पर उस समय जैसी बीत रही थी, राजा जुझारसिंहने भी दक्षिणमें अपनी योग्यउसका अनुमान करना कठिन है । उस समय ताका परिचय दिया । वे केवल लड़ाईमें ही वीर उस लम्बे चौड़े मैदानमें जहाँतक निगाह न थे, बल्कि राज्यशासनमें भी अद्वितीय थे। जाती थी आदमी ही आदमी नजर आते थे। उन्होंने अपने सुप्रबन्धसे दक्षिण प्रान्तको बलवान् पर चारों तरफ सन्नाटा था। हर एक आँख राज्य बना दिया और वर्षभरके बाद बादशाहसे अखाड़ेकी तरफ लगी हुई थी और हर एकका आज्ञा लेकर वे ओरछेकी तरफ चले। ओरछेकी दिल हरदौलकी मङ्गलकामनाके लिए ईश्व- याद उन्हें सदैव बेचैन करती रही। आह ओरछा! रका प्रार्थी था। कादिरखाँका एक एक वार वह दिन कब आवेगा कि फिर तेरे दर्शन होंगे। हजारों दिलोंके टुकड़े कर देता था और राजा मंजिलें मारते चले आते थे। न भूख थी, हरदौलकी एकएक काटसे मनोंमें आनन्दकी न प्यास, ओरछेवालोंकी मुहव्वत खींचे लिये लहरें उठती थीं । अखाड़ेमें दो पहलवानोंका आती थी । यहाँतक कि ओरछेके जंगलोंमें सामना था और अखाड़े के बाहर ' आशा और आ पहुँचे। साथके आदमी पीछे छूट गये । निराशा' का। आखिर घड़ियालने पहला पहर दो पहरका समय था । धूप तेज थी । बजाया और हरदौलकी तलवार बिजली बनकर वे घोड़ेसे उतरे और एक पेड़की छाँहमें जा बैठे। कादिरके सिर पर गिरी। यह देखते ही बुन्देले भाग्यवश आज हरदौल भी जीतकी खुशीमें मारे आनन्दके उन्मत्त हो गये । किसीको शिकार खेलने निकले थे । सैकड़ों बुन्देला किसीकी सुधि न रही । कोई किसीसे गले सरदार उनके साथ थे। सब अभिमानके नशेमें मिलता, कोई उछलता और कोई छलाँगे भरता चूर थे । उन्होंने राजा जुझारसिंहको अकेले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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