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________________ जैनहितैषी __ [भाग १३ ॥ वार करता तो लोगोंके दिल उछल कर होठोंतक कुलीना--"क्या भालदेव मारा गया ?" आ जाते थे । सूर्य्य सिरपर चढ़ा आता था और हरदौल-" नहीं, जानसे तो नहीं, पर लोगोंके दिल बैठे जाते थे। इसमें कोई सन्देह नहीं हार हो गई।" कि भालदेव अपने भाईसे फुर्तीला और तेज था। कुलीना -“ तो अब क्या करना होगा ?" उसने कई बार कादिरखाँको नीचा दिखलाया, हरदौल-" मैं स्वयं इसी सोचमें हूँ । पर दिल्लीका निपुण पहलवान हर वार सम्हल आजतक ओरछेको कभी नीचा न देखना पड़ा जाता था। पूरे तीन घंटेतक दोनों बहादुरोंमें था। हमारे पास धन न था, पर अपनी वीरतलवारें चलती रहीं । एकाएक खट्टाकेकी ताके सामने हम राज और धनको कोई चीज आवाज़ हुई और भालदेवकी तलवारके दो नहीं समझते थे । अब हम किस मुँहसे अपनी टुकड़े हो गये । राजा हरदौल अखाड़ेके सामने वीरताका घमण्ड करेंगे-ओरछेकी और बुन्देखड़े थे। उन्होंने भालदेवकी तरफ तेजीसे अपनी लोंकी लाज अब जाती है !" तलवार फेंकी। भालदेव तलवार लेनेके लिए कुलीना--" क्या अब कोई आस नहीं है?" झुका ही था कि कादिरखाँकी तलवार उसकी गर्द- हरदौल-“ हमारे पहलवानोंमें वैसा कोई नपर आ पड़ी । घाव गहरा न था, केवल एक नहीं है, जो उससे वाजी ले जाय । भालदेवकी ' चरका' था, पर उसने लड़ाईका फैसला हारने बुन्देलोंकी हिम्मत तोड़ दी है । आज कर दिया। सारे शहरमें शोक छाया हआ है। सैकडों घरोंमें .. हताश बुन्देले अपने अपने घरोंको लौटे। यद्य- आग नहीं जली । चिराग रोशन नहीं हुआ । पि भालदेव अब भी लड़नेको तैयार थे, पर हर- हमारे देश और जातिकी वह चीज अब अन्तिम दौलने समझाकर कहा कि, “भाइयो ! हमारी स्वाँस ले रही है, जिससे हमारा मान था । मालहार उसी समय हो गई, जब हमारी तलवारने देव हमारा उस्ताद था। उसके हार चुकनेके जवाब दे दिया। यदि हम कादिरखाँकी जगह बाद मेरा मैदानमें आना धृष्टता है, पर बुन्देलोंहोते तो निहत्थे आदमी पर वार न करते । और की साख जाती है तो मेरा सिर भी उसके साथ जबतक हमारे शत्रुके हाथमें तलवार न आ जायगा। कादिरखाँ बेशक अपने हुनरमें एक ही जाती हम उस पर हाथ न उठाते; पर कादिर- है, पर हमारा भालदेव कभी उससे कम नहीं। खामें यह उदारता कहाँ ? बलवान शत्रका साम- उसकी तलवार यदि भालदेवके हाथमें होती ना करनेमें उदारताको ताक पर रख देना पड़ता तो मैदान ज़रूर उसके हाथ रहता । ओरछेमें है । तो भी हमने दिखा दिया है कि तलवारकी केवल एक तलवार है, जो कादिरखाँकी तलवारलड़ाईमें हम उसके बराबर हैं और अब हमको का मुँह मोड़ सकती है । वह भैय्याकी तलवार यह दिखाना रहा है कि हमारी तलवारमें भी है। अगर तुम ओरछेकी नाक रखना चाहती वैसा ही जौहर है। " इसी तरह लोगोंको तस. हो तो उसे मुझे दे दो। यह हमारी अन्तिम ल्ली देकर राजा हरदौल रनवासको गये। चेष्टा होगी; यदि अबके भी हार हुई तो ओर'कुलीनाने पूछा-" लाला ! आज दङ्गालका छेका नाम सदैवके लिए डूब जायगा।" क्या रंग रहा ?” कुलीना सोचने लगी। तलवार इनको दूं या ___ हरदौलने सिर झुकाकर जवाब दिया- न हूँ। राजा रोक गये हैं। उनकी आज्ञा थी " आज भी वही कलकासा हाल रहा।" कि किसी दूसरेकी परछाहीं भी उस पर न पड़ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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