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________________ अङ्क १] काम करनेवालोंके लिए। मिथ्या कहिएगा तो आपको ब्रह्महत्याका पाप प्रातःकाल ही मै वहाँ पहुँच जाऊँगा।" आन.. होगा। क्या ये सब बातें सच्ची हैं ?" न्द दुलारेने बहुत कुछ आग्रह किया, किन्तु रामे डाक्टर साहबने कहा कि "हाँ, ये सब बातें श्वरने एक नहीं सुनी, इस लिए उनहीको आगे सच हैं।" तब रामेश्वर चंद्रमाकी चाँदनीसे चम- जाना पड़ा। रामेश्वर उसी नदीके तटपर बैठ कती हुई और कोमल फूलोंसे सुशोभित उस कर साध्वी पार्वतीके लिए रोने लगा। नदीके तटकी भमिपर धीरेसे बैठ गया और दूसरे दिन सबेरे पुत्रके घर पहुँचकर रामेउसने दोनों हाथोंसे अपने मखको ढाँप लिया। श्वरने उसको फिर गले लगाया । इतनेहीमें धीरे धीरे उसका शरीर काँपने लगा और क्षण- आधा घूघट डालेहुए एक स्त्री आई और रामेश्वरके भरमें जमीन पर पडकर वह ऊँचे स्वरसे 'पार्वती- पैरोंमें पड़कर ऊँचे स्वरसे रोने लगी। शब्द सुनते 'पार्वती,' कहता हुआ रोने लगा। उसकी असह्य ही रामेश्वर चौंक पड़ा- ऐं ! यह शब्द कियंत्रणा देखकर डाक्टरने उसको धीरज बंधाया, सका है ! जब दोनों हाथोंसे उसको उठाकर हाथ पकड़ कर उठाया; और कहा-"आप रोवें देखा तो मालूम हुआ कि वह पार्वती ही है। नहीं; मैं इस दुःखके समय आपको एक अच्छा रामेश्वरने पुत्रकी ओरको मुख करके संवाद दूंगा, आपका पुत्र मरा नहीं है।" कहा-“यह क्या बात है? मुझसे तो तुमने कहा था कि यह पद्माके जलमें डूब गई थी।" । रामेश्वरने बिजलीकी जैसी तेजीसे खड़े आनन्ददुलारेने कहा-“ मैंने सच ही कहाहोकर पछा-"क्या मेरा दुलारे जीता है ? था। माँ पद्मामें कद पडी थी, किन्त मरी मझे जल्दी बतलाओ कि वह कहाँ है ?” नहीं थी । जालवालोंने निकाल कर बचा "आपका पुत्र आपके चरणोंके पास ही है," लिया था।" यह कहकर डाक्टरसाहब रामेश्वरके पैरोंमें । लोटकर आँसू बहाने लगे। पहले तो रामेश्वर . तीनों आनन्दके आँसू बहाने लगे और पुराकुछ भी नहीं समझा, किन्तु धीरे धीरे समझ C नी सुखदुखकी बातें कह-कहकर सुनाने लगे गया । दोनों हाथोंसे अपने बेटेका मुख उठाकर वह देखने लगा, किन्तु आँखोंके आँसुओंने उसको काम करनेवालोंके लिए। कुछ भी देखने नहीं दिया। तब पुत्रके सिरको छातीसे लगाकर वह रोतेरोते कहने लगा,-"हाँ, (ले०-बाबू दयाचन्द गोयलीय बी. ए. । सचमुच ही यह मेरा आनन्ददुलारे है !” कुछ देर पीछे पुत्रने पिताकी छातीसे सिर हटाकर चाहे तुम्हारा काम कोई सा हो, कैसा ही कहा-"आप इस पाल्कीमें बैठकर घरको चलें, "हो, तुम्हें चाहिए कि तनिक भी उससे वहाँ मैं आपको अपने पाले जाने और लिखने भयभीत मत होओ और न इस कारण उसे छोड़. पढ़नेका हाल विस्तारपूर्वक सुनाऊँगा।" ही बैठो। चाहे तुम कितने ही दुःखमें होओ, चाहे रामेश्वरने सोचा कि यदि मैं इस समय पुत्रके लोग तुम्हारा कितना ही विरोध करते हों, तथापि साथ जाऊँगा तो पुत्रको पैदल जाना होगा। तुम उसे दृढ़तासे किये जाओ और अपने अभीष्ट इस लिए उसने कहा, “ तुम पहले चलो और स्थानपर पहुँचनेके लिए नित्य प्रति आगे बढ़ते अपने घरका पता मुझे बतलाये जाओ; कल जाओ । इसका कभी स्वममें भी ख्याल मत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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